विश्वविख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के सज्जादानशीन और दीवान सैय्यद जैनुअल आबेदीन ने कहा है कि कश्मीर के श्रीनगर में तिरंगा झण्डा फहरना ही चाहिए। मैं तिरंगा फहराने वाले देशभक्तों का नेतृत्व करने को तैयार हूं। 16 अप्रैल को अजमेर के होटल मेरवाड़ा स्टेट में डिवाइन अबोर्ड फाउंडेशन एवं कमालुद्दीन चेरिटेबल ट्रस्ट व वल्र्ड मेटा फिजिक्स रिसर्च फाउण्डेशन के सहयोग से एक ग्लोबल पीस सेमिनार आयोजित हुई। इस सेमिनार में मुख्य वक्ता के तौर पर बोलते हुए दरगाह दीवान आबेदीन ने कहा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और भारत के हर नागरिक का यह दायित्व है कि वह अपने कश्मीर की रक्षा हर स्थिति में करे। उन्होंने कहा कि आज कश्मीर के जो हालात हैं, उसके लिए अनुच्छेद (धारा) 370 जिम्मेदार हैं। जो लोग धारा 370 हटाने का वायदा कर सत्ता में आए हैं उनका यह दायित्व है कि वे कश्मीर से धारा 370 को हटाए और देश के आम नागरिक को कश्मीर में बसने दें। सरकार को उन अलगाववादी तत्वों में डरने की जरूरत नहीं है जो कश्मीर को आजाद करने अथवा पाकिस्तान में मिलाने की मांग करते हैं। दीवान आबेदीन ने कहा कि मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि कुछ दिनों के लिए कश्मीर को सेना के हवाले कर दिया जाए और आतंकियों के साथ सख्ती से पेश आया जाए। जो लोग कुरान की दुहाई देकर कश्मीर में आतंक फैला रहे हैं उन्हें फिर सऊदी अरब के कानून से सबक लेना चाहिए। सऊदी अरब में इस्लामिक कानून के अन्तर्गत चोर के हाथ काटे जाते हैं तो हत्या के आरोपी को जमीन में गाड़ कर मौत के घाट उतार दिया जाता है। उन्होंने कहा कि कश्मीर में ख्वाजा साहब के संदेश को ज्यादा से ज्यादा फैलाना चाहिए। ख्वाजा साहब ने सूफीवाद के माध्यम से भाईचारे का जो पैगाम दिया, उसकी आज सख्त जरूरत है। आतंकी संगठन आईएस के प्रतीक चिन्ह पर हजरत मोहम्मद साहब का फोटो लगाने पर अफसोस जताते हुए सज्जादानशीन आबेदीन ने कहा कि मोहम्मद साहब ने तो युद्ध में पकड़े गए बुजुर्ग, महिलाओं, बच्चों और बीमार व्यक्तियों पर रहम करने का संदेश दिया था। लेकिन आईएस तो इसके विपरीत पकड़े गए निर्दोष और मजबूर लोगों को मौत केघाट उतार रहा है। उन्होंने कहा कि राजनेताओं की वजह से ही कश्मीर में तिरंगे के बजाए आईएस और पाकिस्तान के झंडे लहरा रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि मुझे अवसर मिलेगा तो मैं अपने समर्थकों और चाहने वालों के साथ श्रीनगर में जाकर तिरंगा फहराउंगा। तब मैं यह देखूंगा कि मुझे श्रीनगर में तिरंगा फहराने से कौन रोकता है?
सेमीनार में जम्मू-कश्मीर रूरल डवलपमेन्ट सोसाइटी की अध्यक्ष और टीवी पत्रकार कोमल सिंह ने कहा कि आज कश्मीर के हालात बद से बदतर हो गए हैं। एनआईटी के ताजा प्रकरण के बाद पिछले 3 दिनों से कश्मीर में इन्टरनेट की सेवाएं बंद हैं। धारा 370 के प्रावधानों की वजह से ही कश्मीर में आईएस और पाकिस्तान के झंडे फहराने पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती और जब कोई देशभक्त तिरंगा फहराता है तो कश्मीर की पुलिस उसे पीटती है। अलगाववादियों ने अपने स्तर पर अनन्तनाग का नाम पाकिस्तान के इस्लामाबाद के शहर पर कर दिया है। जो लोग कश्मीर को आजाद करने की मांग कर रहे हैं उन्हें यह समझना चाहिए कि कश्मीर में जो खाद्य सामग्री पहुंचती है वह जम्मू से ही होकर जाती है। यदि जम्मू वालों ने खाद्य सामग्री कश्मीर में नहीं भेजी तो कश्मीर के लोग भूखे मर जाएंगे। मैंने कश्मीर में रिपोर्टिंग करते समय यह भी देखा कि कश्मीरी युवकों को सेना पर पत्थर फैंकने के लिए रुपए दिए जाते हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कश्मीर में निदेशी ताकतें किस हद तक काम कर रही हैं।
सेमीनार में एक ब्लॉगर के तौर पर मुझे भी अपने विचार रखने का अवसर मिला। मैंने कहा कि ख्वाजा साहब की दरगाह के सज्जादानशीन और दीवान आबेदीन ने देशभक्ति का जो जज्बा दिखाया है यदि ऐसा जज्बा देश का काम नागरिक प्रकट कर दे तो कश्मीर की समस्या का समाधान तत्काल हो जाएगा। भारतीय संविधान के अनु्छेद 370 को कश्मीर से हटाए जाने पर देश के आम मुसलमान और नागरिक की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन राजनेताओं ने अनुच्छेद 370 और कश्मीर को वोट बैंक मान लिया है। यानि अब अनुच्छेद 370 का समर्थन और विरोध करने पर भी देश के दूसरे हिस्सों में वोट की प्राप्ति होती है। जो लोग कश्मीर को भारत से अलग करना चाहते हैं उन्हें एक बार पाक अधिकृत कश्मीर का जायजा ले लेना चाहिए। वहां पाकिस्तान की सरकार मुसलमानों पर बेवजह जुल्म करती है और यहां हमारे कश्मीर में स्थानीय नागरिकों को हर चीज रियायती दर पर मिलती है। अनुच्छेद 370 की वजह से ही भारत के सुप्रीम कोर्ट के आदेश कश्मीर पर लागू नहीं होते। कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है। इसके विपरीत यदि कश्मीर की महिला किसी पाकिस्तानी से निकाह कर ले तो पाकिस्तानी को भी कश्मीर की नागरिकता मिल जाती है। आरटीआई, आरटीई, केग जैसे कानून कश्मीर पर लागू नहीं होते हैं। जहां देश के अन्य हिस्सों में महिलाओं को बराबर के अधिकार मिले हुए हैं वहीं कश्मीरी महिलाओं को शरियत के अनुसार जीवन व्यतीत करना होता है। सेमीनार में एमडीएस यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे प्रो. टी.के. माथुर ने कहा कि 1037 ईस्वी में कल्हन की राजतरंगी नामक एक पुस्तक प्रकाश में आई थी। इस पुस्तक में कश्मीर की संस्कृति, सभ्यता, रिवाज आदि का जो चित्रण किया गया है वह काबिले तारीफ है। देश के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल यदि थोड़े समय और जीवित रह जाते तो कश्मीर समस्या का समाधान हो जाता। प्रो. माथुर ने ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में बताया कि प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पटेल में आपसी सहमति हो गई थी, लेकिन यह देश का दुर्भाग्य रहा कि सरदार पटेल की अचानक मौत हो गई। पटेल के बाद उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द वल्लभ पंथ को गृहमंत्री बनाया गया। चूंकि पंथ को बेमन से गृहमंत्री बनाया इसलिए पटेल की योजना पर अमल नहीं हो सका।
सेमीनार में सूफी और वेदान्ता स्कॉलर डॉ. संदीप अवस्थी ने कहा कि कश्मीर की कुल आबादी एक करोड़ 15 लाख की है, जबकि कश्मीर पर प्रतिवर्ष करोड़ों रुपया खर्च किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक भारत सरकार एक कश्मीरी नागरिक पर प्रतिवर्ष 20 लाख रुपए खर्च करती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान केन्द्र सरकार कश्मीर की परिस्थितयों से सही प्रकार से मुकाबला कर रही है। अगले वर्ष जब राज्यसभा में भी भाजपा का बहुमत हो जाएगा, तब अनुच्छेद 370 को हटाने का प्रयास हो सकता है। कश्मीर में अशांति का सबसे बड़ा कारण 370 ही है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार धर्मगुरुओं की उपस्थिति में यह सेमीनार हुई, वैसी ही सेमीनार कश्मीर में आयोजित की जाए।
देश के प्रमुख स्वतंत्रता सैनानी स्व. ज्वाला प्रसाद के पौत्र कर्नल राकेश शर्मा भी कश्मीर में लम्बे समय तक तैनात रहे। कर्नल शर्मा ने कहा कि गत वर्ष बाढ़ के दौरान यदि सेना मदद नहीं करती तो हजारों कश्मीरी मर जाते। उन्होंने कहा कि कश्मीर में राजनेताओं को हटाकर सेना, धर्मगुरुओं और शिक्षाविदें के सहयोग से काम किया जाए। कश्मीरियों में योग्यता की कोई कमी नहीं है लेकिन देशविरोधी ताकतों ने कश्मीर के युवाओं को गुमराह कर दिया है।
अजमेर के डीएवी कॉलेज के प्रिंसिपल रहे डॉ. सुधीर भार्गव ने कहा कि 12वीं शताब्दी के ग्रन्थों से पता चलता है कि कश्मीर में सिर्फ हिन्दू ही रहते थे। इसलिए अधिकांश समय कश्मीर में हिन्दू राजा ही रहे। उन्होंने सुझाव दिया कि जम्मू कश्मीर राज्य को जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया जाए। साथ ही एलओसी को अन्र्तराष्ट्रीय सीमा बनाया जाए। आज भी पाकिस्तान के राजनेता कश्मीर को टेडीबियर के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। कभी पाकिस्तान के नेता तो कभी भारत के नेता टेडीबियर समझकर कश्मीर से खेलते हैं।
सेमीनार में संसार प्रसिद्ध ब्रह्मा मंदिर के महन्त सोमपुरी की ओर से उनके प्रचार अधिकारी अरुण पाराशर ने कहा कि कश्मीर की समस्या का समाधान आध्यात्म और सूफीवाद से हो सकता है। विदेशी ताकतें अपने स्वार्थों की वजह से कश्मीर के हालात बिगाड़ती है। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और हमेशा रहेगा। कश्मीर के वर्तमान हालातों के लिए राजनेता जिम्मेदार हैं। ब्रह्मकुमारीज संस्थान की बहन योगिनी ने कहाकि आत्म से परमात्मा का जब मिलन होता है तभी सुख और शांति की प्राप्ति होती है। कश्मीर के नागरिकों के मन को जागृत करना होगा जिसके माध्यम से सुख और शांति की प्राप्ति होगी।
सेमीनार में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव महेन्द्र सिंह रलावता ने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने से कश्मीर में एक नई समस्या खड़ी हो जाएगी। यूएन में जो समझौता हो रखा है उसके अनुसार यदि अनुच्छेद 370 को हटाया जाता है तो फिर कश्मीर में जनमत संग्रह करवाना होगा और यदि आज की परिस्थितियों में कश्मीर में जनमत संग्रह होता है तो अधिकांश नागरिक भारत से अलग होना चाहेंगे। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 की वजह से ही कश्मीर आज भारत के साथ जुड़ा हुआ है। सेमीनार में सुप्रसिद्ध कवि रासबिहारी गौड़ ने कहा कि कश्मीर में आज रोजगार और शिक्षा की सख्त जरूरत है, यदि हम कश्मीरी युवकों को रोजगार उपलब्ध करवा दें तो फिर आतंकवादी उनका इस्तेमाल नहीं कर सकते। इसके लिए जरूरी है कि सम्पूर्ण कश्मीर में शिक्षा का जाल बिछाया जाए। उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 को हटाने से कश्मीर की स्थिति पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। पीयूसीएल के उपाध्यक्ष कामरेड डीएल त्रिपाठी ने कहा कि अनुच्छेद 370 जैसे प्रावधान देश के दूसरे प्रान्तों में भी लागू हैं लेकिन हर बार कश्मीर को ही निशाना बनाया जाता है। आज कश्मीर में मानवाधिकारों की रक्षा करने की सख्त जरूरत है। हमें कश्मीरियों का दिल जीतना चाहिए। सेमीनार में सर्वधर्म मैत्री संघ के प्रमुख प्रकाश जैन ने कहा कि कश्मीर में हिन्दू और मुसलमान का सवाल नहीं है। कश्मीर में एक ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, जिसमें सभी विचारधारा के लोग अमन-चैन के साथ रह सकें। इसके लिए धर्मगुरुओं को आगे आना चाहिए। सेमीनार में श्रीमती सबा खान, मेजर मारफतिया, नितिन शर्मा, डॉ. मेघना शर्मा, डॉ. बृजेश माथुर, डॉ. संदीप रॉय, सैय्यद कमरुद्दीन चिश्ती आदि ने भी अपने विचार प्रकट किए।
केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा प्रस्ताव:
सेमीनार की आयोजक गुलशा बेगम ने कहा कि अजमेर अन्र्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शहर है यदि अजमेर में कोई सेमीनार होती है तो उसके संदेश पूरी दुनिया में जाता है। इसलिए यह सेमीनार अजमेर में की गई है। उनकी ख्वाहिश है कि ऐसी सेमीनार अगली बार जम्मू अथवा कश्मीर में हो। इसके लिए वे निरन्तर प्रयास करती रहेंगी। उन्होंने बताया कि इस सेमीनार में प्राप्त सुझावों के अनुसार कश्मीर में शांति के लिए एक प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा जाएगा। इस प्रस्ताव में कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, युवाओं को रोजगार देने, शिक्षा उपलब्ध करवाने, केन्द्र सरकार के शिक्षण संस्थाओं में देशभर के विद्यार्थियों को भयमुक्त वातावरण देने आदि की मांग की जाएगी।