राजस्थान पत्रिका ने भी किया सरकार की सख्ती का समर्थन। रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल का मामला।
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राजस्थान पत्रिका ने भी किया सरकार की सख्ती का समर्थन।
रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल का मामला।
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राजस्थान के रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल से निपटने के लिए भाजपा सरकार ने जो सख्ती का रूख अपनाया है, उसका समर्थन 2 जून को राजस्थान पत्रिका ने भी किया है। कोई भी अखबार सरकार की आलोचना करने में कसर नहीं छोड़ता है, लेकिन जनहित के मामलों में सरकार के रूख का समर्थन किया जाए ,जो यह स्वस्थ पत्रकारिता का उदाहरण है। पत्रिका ने 2 जून के अपने व्यू में रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल को जनता के खिलाफ माना है। पत्रिका ने सरकार द्वारा की गई सख्ती का खुला समर्थन किया है। पत्रिका के इस व्यू से वसुंधरा राजे सरकार की हौंसला अफजाई होगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल से मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में सरकार की सख्ती को उचित ही माना जाएगा। सब जानते है कि एक विद्यार्थी को डॉक्टर बनाने पर सरकार लाखों रुपया खर्च करती है। यदि इसके बाद भी अध्ययन काल में ही हड़ताल की शुरूआत कर दी जाए तो इससे बुरी बात हो नहीं सकती। प्रदेश के चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने सही कहा कि रेजीडेंट का काम सिर्फ पढ़ाई का है। रेजीडेंट सरकारी अस्पतालों के वार्डो में जो ड्यूटी देते हैं, वह भी पढ़ाई ही है। डॉक्टर बनने वालों ने कभी सोचा कि यदि ये सरकारी अस्पताल नहीं होते तो फिर डॉक्टर की डिग्री कैसे मिलती। हम सब जानते हैं कि सरकारी अस्पतालों में गरीब व्यक्ति का इलाज किस प्रकार से होता है। कई बार तो लापरवाही की वजह से मरीज की मौत हो जाती है। यदि परीक्षा देने वाला विद्यार्थी यह मांग करें कि उसकी उत्तर पुस्तिका उसकी मर्जी के मुताबिक जंचनी चाहिए तो फिर ऐसी परीक्षा का कोई मतलब नहीं है। रेजीडेंट डॉक्टरों की परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं दूसरे राज्य में जंचने के लिए जाएं। यह निर्णय वसुंधरा राजे और राजेन्द्र सिंह राठौड़ का नहीं है, यह निर्णय मेडिकल कौंसिल ऑफ इंडिया का है और यह नियम सिर्फ राजस्थान में नहीं बल्कि देशभर में लागू किया गया है। एमसीआई को यह शिकायत मिली थी कि अपने ही प्रदेश में उत्तर पुस्तिकाएं जंचने से अधिकांश विद्यार्थियों को 100 में से 90-95 अंक मिल जाते हैं।
(एस.पी. मित्तल) (2-06-2016)
(www.spmittal.in) M-09829071511