माना कि बड़े अखबारों का सर्कुलेशन बढ़ा, लेकिन जो छोटे अखबार मर गए उनका क्या? सोशल मीडिया की चुनौती बरकरार।

#1417
माना कि बड़े अखबारों का सर्कुलेशन बढ़ा, लेकिन जो छोटे अखबार मर गए उनका क्या?
सोशल मीडिया की चुनौती बरकरार।
————————————
इन दिनों देश के प्रमुख अखबारों में यह प्रकाशित हो रहा है कि अखबारों की प्रसार संख्या बढ़ी है। यानि जो लोग यह कहते थे कि इलेक्ट्रोनिक और सोशल मीडिया की वजह से प्रिंट मीडिया की स्थिति कमजोर हुई है, वे गलत हैं। अपने प्रसार के बढऩे का दावा करने वाले देश के चुनिंदा अखबारों का यह कथन एक सीमा तक सही है, लेकिन असल बात यह है कि इन बड़े अखबारों की वजह से जिला स्तर पर निकलने वाले छोटे अखबार तो मर ही गए। कोई इन बड़े अखबार वालों से यह पूछे कि कितने छोटे अखबार मर गए तो इनके पास कोई जवाब नहीं होगा। एक बड़ा अखबार जब संभाग और जिला स्तर पर छपने लगा तो वहां पहले से निकल रहे छोटे अखबार का सूपड़ा साफ हो गया। यानि इन बड़े अखबारों की सफलता में छोटे अखबारों का बलिदान छिपा हुआ है। जहां तक ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) का सवाल है, तो यह संस्था बड़े अखबार मालिकों के इशारे पर ही डांस करती है। जागरूक पाठक यह देखते हैं कि हर बड़ा अखबार मालिक इस रिपोर्ट की अपने पक्ष में बताता है। यानि एबीसी सभी मालिकों को खुश करने का काम करती है। यह बात अलग है कि पूर्व में इन अखबारों में एबीसी में भ्रष्टाचार होने की खबरें छपीं थी यानि एबीसी में पैसा दो और रिपोर्ट अपने पक्ष में जारी करवा लो। इन खबरों के बाद ही एबीसी ने सभी बड़े अखबार मालिकों को खुश करने वाला काम शुरू कर दिया। कोई अखबार राजस्थान का पहला नम्बर का तो कोई देश में पहले नम्बर का हो गया। किसी अखबार को राजस्थान में खुश किया तो किसी को उत्तरप्रदेश, मध्यमप्रदेश आदि में।
यह सही है कि जो अखबार संभाग जिला स्तर पर अपने दम पर निकल रहे हैं, उनका मुकाबला इन बड़े अखबारों से नहीं हो सकता। जब कोई 20 पेज का रंगीन अखबार 4 रुपए में मिलेगा तो फिर जिला स्तर वाला 8-10 पृष्ठ के अखबारों की तो मौत होगी ही। एक संस्करण के बाद दूसरे संस्करण को निकालना बहुत आसान हो जाता है। हमें भले ही अपने शहर में 20 पेज का अखबार पढऩे को मिलता हो, लेकिन इसमें से 10 पृष्ठ सभी संस्करण में समान होते हैं। जबकि जिला स्तर पर एक संस्करण वाले अखबारों को पूरा अखबार तैयार करना होता है।
जहां तक सोशल मीडिया से चुनौती का सवाल है तो ऐसी चुनौती बरकरार है। अखबार मालिक माने या नहीं लेकिन यह सच है कि उनके रिपोर्टर सोशल मीडिया से ही अपडेट होते है। जो लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय है उन्हें पता है कि अगले दिन अखबार में छपने वाली खबरे किसी ना किसी तरीके से सोशल मीडिया पर एक दिन पहले ही पढ़ ली जाती है।
(एस.पी. मित्तल) (4-06-2016)
(www.spmittal.in) M-09829071511

Print Friendly, PDF & Email

You may also like...