आखिर कैसे चल रही है राजस्थान में वसुंधरा राजे की सरकार? प्राइवेट कंपनी के अफसर ने नियुक्ति का प्रस्ताव ठुकराया तो रेजीडेंट से बिगड़ गई बात।
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4 जून को सरकार और हड़ताली रेजीडेंट डॉक्टरों के बीच वार्ता सफल होने के बाद प्रदेश के चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ ने भी हड़ताल खत्म होने की पुष्टि कर दी थी, लेकिन हड़ताल के दौरान हुई कार्यवाही को तत्काल वापस लेने को लेकर देर रात को फिर बात बिगड़ गई। इसी प्रकार 2 जून को सरकार ने अजमेर डिस्कॉम के एमडी के पद पर अरूण कंचन को नियुक्त करने का निर्णय लिया। इसकी सरकारी स्तर पर घोषणा भी कर दी गई, लेकिन 4 जून को कंचन ने वसुंधरा सरकार के इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया। इसलिए राजस्थान की वसुंधरा सरकार के कामकाज को लेकर सवाल उठने लगे हैं। क्या सरकार के मंत्री और अफसर इस काबिल नहीं कि वे सोच समझ कर निर्णय लें। अजमेर डिस्कॉम के एमडी का पद कोई मामूली नहीं है। इस डिस्कॉम में प्रदेश के 13 जिले आते हैं यानि करीब आधे प्रदेश में बिजली की सप्लाई का काम यह डिस्कॉम करता है। डिस्कॉम के एमडी के चयन के लिए खुले बाजार से आवेदन मांगे गए थे। इसमें निजी क्षेत्र की कंपनी हिन्दुस्तान पॉवर के सीईओ अरूण कंचन ने भी आवेदन किया था। सरकार ने आवेदकों के इंटरव्यू भी लिए। सरकार एक चपरासी को भी नियुक्त करती है तो उसकी विस्तृत जांच पड़ताल कराई जाती है। पचास बार पूछा जाता है कि वह नौकरी करने का इच्छुक है या नहीं। वसुंधरा सरकार ने अजमेर डिस्कॉम के एमडी के लिए भी यह सब कार्यवाही की होगी। लेकिन इसके बाद भी अरूण कंचन ने सरकार के एमडी का पद ठुकरा दिया। इससे प्रतीत होता है कि सरकार में बैठे मंत्री और अधिकारी गंभीरता के साथ अपना कार्य नहीं कर रहे हैं। यदि एक प्राइवेट कंपनी का सीईओ वसुंधरा सरकार के चयन को ठुकरा रहा है तो इससे सरकार को अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। सरकार माने या नहीं, लेकिन इससे सरकार की जगहसांई हुई है। कहा जा रहा है कि अरूण कंचन की रूचि अजमेर के बजाय जयपुर डिस्कॉम का एमडी बनने की थी, लेकिन सरकार ने जयपुर के बजाय अजमेर का एमडी बना दिया। कुछ लोग अरूण कंचन पर भी अंगुली उठा रहे हैं। कंचन वर्तमान में हिन्दुस्तान पावर में 2 करोड़ 20 लाख के सालाना पैकेज पर हैं,जबकि राजस्थान में तो उन्हें सालाना पचास लाख से ज्यादा का वेतन नहीं मिलता। सवाल यही हैं कि 2 करोड़ 20 लाख का वेतन छोड़कर 50 लाख का वेतन अरूण कंचन क्यों स्वीकार कर रहे थे? श्रीमती अरूण कंचन भी यह सवाल पूछ सकती हंै कि शेष एक करोड़ 70 लाख रुपए की राशि की भरपाई कहां से की जाएगी? सब जानते है कि वसुंधरा सरकार बिजली का काम निजी कंपनियों को देने के लिए आतुर है। इसलिए सरकार निजी कंपनियों के अधिकारियों को ला रही है।
जानकार सूत्रों की माने तो राजस्थान में अपने चयन को लेकर अरूण कंचन हिन्दुस्तान पावर के मालिकों से भी सौदेबाजी कर रहे बताए। हो सकता है कि अब कंचन का पैकेज 2 करोड़ 20 लाख से ज्यादा का हो जाए। असल में अरूण कंचन जो काम हिन्दुस्तान पावर में कर रहे हंै वह शायद दूसरा सीईओ नहीं कर सकता। हिन्दुस्तान पावर में अरूण सौर ऊर्जा प्लांट लगाने का काम देखते है। मुंबई के फिल्म उद्योग में दो नम्बर की कमाई करने वाले स्टार और अन्य कारोबारी अपने धन को सौर ऊर्जा जैसे प्रोजेक्ट में ही लगाते हंै। अरूण कंचन की इस काम में होशियारी है कि बड़े-बड़े धनाढ्य लोगों से प्रोजेक्ट में पैसा लगवा ले। सौर ऊर्जा प्लांट के घोटालों की कहानी अलग है।
एमडी के पद का प्रस्ताव ठुकरा कर जिस प्रकार अरूण कंचन ने वसुंधरा सरकार की जगहंसाई करवाई है, उसी प्रकार रेजीडेंट डॉक्टरों की हड़ताल में भी सरकार की नाकामयाबी उजागर हुई है। समझौता वार्ता के सफल होने के बाद रेजीडेंट मुकर जाए, सरकार के लिए इससे ज्यादा विफलता की कोई बात नहीं हो सकती। क्या वसुंधरा सरकार में ऐसे काबिल लोग नहीं है जो परिस्थितियों को समझदारी के साथ हैण्डिल कर सकें। यह तब और महत्वपूर्ण हो जाता है जब राजस्थान में भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार के दो वर्ष के कार्यकाल का गुणगान हो रहा है। केन्द्रीय मंत्री जिलों में जाकर गुड गवर्नेन्स के बारे में बता रहे हैं।
(एस.पी. मित्तल) (5-06-2016)
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