13 साल की जैन बालिका के 68 दिन के उपवास और फिर मौत। अंतिम यात्रा नहीं, शोभायात्रा निकली। कितने उचित हैं नाबालिग बालिका के उपवास।
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जैन धर्म में निराहार रहकर उपवास का धार्मिक महत्व है। जो युवक-युवती, बालक-बालिका जितने अधिक दिनों तक उपवास करते हैं, उसके समाप्त होने पर उतना ही बड़ा जश्न भी मनाया जाता है। हैदराबाद में 8वीं कक्षा में पढऩे वाली 13 वर्षीय बालिका आराधना के 68 दिनों के उपवास के बाद मौत हो गई तो अंतिम यात्रा के बजाए शोभायात्रा निकालकर भावनाओं को प्रकट किया गया। अब इस नाबालिग बालिका को त्याग और तपस्या की मूर्ति बताया जा रहा है। हो सकता है कि जैन समाज के अधिकांश लोगों को आराधना की मौत पर कोई एतराज नहीं है। धर्म के अनुरूप इस मौत को त्याग और तपस्या माना जा रहा है, लेकिन यह सवाल भी अपने आप में महत्व रखता है कि आखिर एक नाबालिग बालिका से 68 दिनों तक उपवास करवाना कितना उचित है? लड़कों के मुकाबले लड़कियों को शारीरिक दृष्टि से वैसे ही प्रतिकूल परिस्थितियों से गुजरना होता है। ऐसे में यदि कोई लड़की 68 दिनों तक निराहार उपवास करें तो उसकी शारीरिक कठिनाईयों को समझा जा सकता है। आराधना के घर वालों का कहना है कि वह पहले भी 41 दिनों तक उपवास कर चुकी है। इस बार जब जैन संतों का चातुर्मास शुरू हुआ तो आराधना ने भी उपवास शुरू कर दिए। 41 दिनों का पिछला रिकार्ड तोडऩे के बाद भी आराधना उपवास करती रही, जब शरीर ने जवाब दे दिया तो 68वें दिन उपवास समाप्त करवा दिया, लेकिन तबीयत बिगडऩे के बाद आराधना को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा और दो दिन बाद ही उसकी मौत हो गई। कुछ लोगों का सवाल है कि आराधना को स्कूल छुड़वाकर उपवास पर क्यों बैठाया गया? इसके जवाब में दादा माणकचंद समदरिया का कहना है कि हमने कुछ भी नहीं छिपाया है। आराधना जब उपवास पर थी, तो लोग हमारे घर आकर सेल्फी ले रहे थे। इतना ही नहीं उपवास समाप्ति पर आयोजित समारोह में प्रदेश के मंत्री और सांसद भी उपस्थित थे। काचीगुडा स्थानक के रविन्द्र मुनि का कहना है कि संथारा ज्यादातर उन बुजुर्ग लोगों के लिए होता है जो अपनी पूरी जिदंगी जी चुके होते हैं और वे मुक्ति की इच्छा रखते हैं। तपस्या या उपवास रखने में किसी भी प्रकार का दबाव नहीं होना चाहिए। आराधना की मौत एक त्रासदी है, हमें इससे सबक लेना चाहिए। यह भी चर्चा है कि व्यापार में लाभ प्राप्त करन के लिए पिता ने ही अराधना से उपवास करवाए। किसी जैन मुनि ने कहा बताया कि घाटे में चल रही सर्राफा की दुकान बेटी के उपवास से लाभ में आ जाएगी। बेटी ने भी पिता की खातिर अपनी जिन्दगी दावं पर लगा दी।
(एस.पी. मित्तल) (09-10-2016)
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