काबिल अफसर का इस तरह चले जाना अच्छा नहीं। एएसपी आशीष प्रभाकर की खुदकुशी से सबक लें।
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23 दिसंबर को जब मैंने यह सुना कि राजस्थान एटीएस के एएसपी आशीष प्रभाकर ने गत रात्रि को खुदकुशी कर ली है तो मैं सन्न रह गया। मुझे वो दिन याद आए, जब आशीष ने मेरे साथ दैनिक भास्कर के अजमेर संस्करण में कार्य किया था। आशीष जिस तरह रात को एक-एक, दो-दो बजे तक प्रेस में काम करता था तब भी मुझे अफसोस होता था। मैंने आशीष को कई बार कहा भी कि तुम योग्य और काबिल हो। ऐसे में अखबार की नौकरी क्यों कर रहे हो? तुम्हें तो एक बड़ा अधिकारी होना चाहिए। तब आशीष मेरे कथन को हंसकर टालता रहा, लेकिन जब उसका चयन आरपीएस में हुआ तो उसने मेरे पैर छूते हुए कहा कि सर आपने जो आशीर्वाद दिया, वह सफल हो गया है। मुझे भी इस बात की खुशी हुई कि आशीष को अपना मुकाम मिल गया। मेरा आशीष के प्रति इसलिए भी स्नेह रहा कि उसके पिता प्रफुल्ल प्रभाकर शिक्षाविद् और साहित्यकार हैं। प्रफुल्ल प्रभाकर ने बड़े लाड और प्यार से आशीष को पाला। अब जब आशीष अपने पिता के सामने ही चला गया है तो एक संवेदनशील साहित्यकार प्रफुल्ल प्रभाकर की मनस्थिति की कल्पना की जा सकती है। मैं इस ब्लॉग को लिखते समय बेहद दुखी हूं, लेकिन मैंने आशीष पर यह ब्लॉग लिखने की हिम्मत इसलिए जुटाई ताकि आशीष की दुखद मौत से सबक लिया जा सके। आशीष ने अपने खुदकुशी के नोट में अपनी पत्नी से माफी मांगते हुए लिखा है कि वह गलत रास्ते पर चला गया। यानि आशीष ने इस बात को स्वीकार किया कि महिला मित्र का होना ही खुदकुशी का कार्य बना है। हालांकि पुलिस अभी जांच कर और परिणाम निकालेगी, लेकिन इतना जरूर है कि आशीष अपनी पत्नी और दोनों बच्चों से बेहद प्यार करता था। वह नहीं चाहता था कि उसके गलत रास्ते की जानकारी पत्नी और बच्चों को लगे। उसे अपने पद और परिवार के मान-सम्मान का भी ख्याल था। आशीष ने इस बात का प्रयास किया ही होगा कि वह जिस गलत रास्ते पर चल पड़ा है, उससे लौट आए। लेकिन जब लौटने के सारे रास्ते बंद हो गए तो उसने खुदकुशी के कुएं में छलांग लगा ही दी। असल में हमारा समाज आज भी भारतीय संस्कृति से बंधा हुआ है। भारतीय संस्कृति में लोकलाज का अपना महत्व है। जो लोग भारतीय संस्कृति में रहकर गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं, उन्हें कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है, जो लोग समाज में सम्मानित पदों पर हैं और जिनका जीवन सार्वजनिक है, उन्हें तो भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही रहना होगा।
एस.पी.मित्तल) (23-12-16)
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