शरणार्थियों को मूल निवास प्रमाण पत्र देने पर कश्मीर के अलगाववादियों को एतराज क्यों? सवाल कश्मीर के हिन्दुओं का भी है।

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24 दिसम्बर को कश्मीर घाटी में एक बार फिर अलगाववादियों की ओर से सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पे हुई। इस बार अलगाववादी 1947 में देश के विभाजन के समय पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को मूल निवास प्रमाण पत्र देने के फैसले का विरोध कर रहे हैं। अलगाववादियों को लगता है कि यदि ऐसे 80 हजार शरणार्थियों को कश्मीर की नागरिकता मिल जाएगी तो उनका मकसद पूरा नहीं हो सकेगा। असल में अलगाववादी कश्मीर में उन्हीं लोगों का निवास चाहते हैं जो कश्मीर की आजादी चाहते हैं। उन्हें लगता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ के कथित फैसले पर जब कभी घाटी में जनमत संग्रह होगा तो बहुमत आजादी चाहने वालों का हो। इसलिए पूर्व में चार लाख हिन्दुओं को घाटी से भगा दिया गया और अब शरणार्थियों के मूल निवास के प्रमाण पत्र का भी विरोध किया जा रहा है। शरणार्थियों की एक्शन कमेटी के अध्यक्ष लाभाराम गांधी का कहना है कि उन्हें नागरिकता का प्रमाण पत्र इसलिए चाहिए ताकि सरकारी संस्थानों में उनके बच्चे नौकरी प्राप्त कर सके। पिछले 70 सालों से हम अपने ही देश में शरणर्थी बने हैं। समझ में नहीं आता कि अलगाववादी हमारी नागरिकता का विरोध क्यों कर रहे हैं? विभाजन के समय जिस प्रकार अन्य लोग पाकिस्तान से आए,उसी प्रकार हम भी आए हैं। जम्मू कश्मीर की पीडीपी सरकार की सीएम महबूबा मुफ्ती ने हमारी दुर्दशा को देखते हुए ही मूल निवास का प्रमाण पत्र जारी करने के आदेश दिए हैं।
कैसे सुधरेंगे हालात:
सवाल उठता है कि आखिर कश्मीर घाटी के हालात कैसे सुधरेंगे? गत आठ जुलाई को आतंकी बुरहान की मौत के बाद से ही अलगाववादी घाटी में बंद और हड़ताल करवा रहे हैं और अब अलगाववादियों को एक नया मुद्दा मिल गया है। घाटी के हालात इतने खराब हैं कि आतंकवादी आबादी क्षेत्र से निकल कर सुरक्षा बलों पर अचानक जानलेवा हमले कर रहे हैं। 24 दिसम्बर को भी प्रमाण पत्र के मुद्दे पर अलगाववादियों ने जो जुलूस निकाले, उनसे भी हालात बिगड़ हुए हैं।
(एस.पी.मित्तल) (24-12-16)
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