तो आजम और अबू ने यूपी में अखिलेश को मुगल बादशाहों की परंपराओं को निभाने से रोक दिया। अब देखते हैं चुनाव के बाद क्या होता है।

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31 दिसम्बर को सुबह आजम खान और अबू आजमी जैसे प्रभावशाली मुस्लिम नेताओं के दखल से मुलायम सिंह, शिवपाल और अखिलेश यादव की एक संयुक्त बैठक हुई। इस बैठक के बाद शिवपाल ने ऐलान किया कि 30 दिसम्बर को रामगोपाल यादव और अखिलेश को जो निलंबित किया गया था, उसे रद्द कर दिया गया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि आजम खान और अबू आजमी अपने प्रभाव का इस्तेमाल नहीं करते तो यूपी के सीएम अखिलेश मुगल बादशाहों की परंपराओं को निभा जाते। इतिहास गवाह है कि मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी सत्ता की खातिर अपने माता-पिता जहांगीर और नूरजहां को कैद में डाल दिया था। यही पुनर्रावृत्ति शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने की। कहा तो यह भी जाता है कि जहांगीर ने भी अपने पिता अकबर को लेकर जो फैसले किए, उससे अंतिम दिनों में अकबर ही गमगीन रहे। कोई साढ़े चार साल पहले मुलायम सिंह ने अपने पुत्र मोह में वरिष्ठ साथियों को पीछे धकेलते हुए अखिलेश यादव को यूपी का सीएम बनाया। तब मुलायम को सपने में भी यह उम्मीद नहीं थी कि एक दिन उनका बेटा ही उनके खिलाफ बगावत कर देगा। 30 दिसम्बर को समाजवादी पार्टी से निकाले जाने के बाद अखिलेश ने अपने सरकारी निवास पर जो बैठक बुलाई उसमें सपा के 200 विधायक पहुंच गए और पिता मुलामय द्वारा बुलाई गई बैठक में मुश्किल से 15 विधायक पहुंचे। इस उपस्थिति से साफ जाहिर था कि बेटे ने पिता को मात दे दी है। अखिलेश यादव मुगल बादशाहों की परंपराओं को निभाते, इससे पहले ही आजम और अबू ने दखल दे दिया। ये दोनों मुस्लिम नेता नहीं चाहते थे कि सत्ता की वजह से बेटा अपने बाप को भी कैद में डाले अथवा राजनीतिक हत्या करवा दे। इसमें कोई दो राय नहीं कि 31 दिसम्बर को इन दोनों मुस्लिम नेताओं ने सपा के हित में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिलहाल सपा में ग्रहयुद्ध थम जाएगा। सब जानते हैं कि मुलायम ने जिन उम्मीदवारों की घोषणा की थी, उनमें से करीब 200 उम्मीदवारों पर अखिलेश की भी सहमति थी। मुश्किल से 25-30 सीटे ऐसी रही जिन पर अखिलेश को मुलायम के उम्मीदवार पसंद नहीं थे। इस मुद्दे पर भी आजम और अबू की टीम ने मोटी मोटी सहमति करवा दी है। अब माना जा रहा है कि विधानसभा चुनाव तक सपा में कोई बड़ा विवाद नहीं होगा। लेकिन परिणाम के बाद एक बार फिर हालातों में बदलाव आ सकता है।
अब भी हो सकता है कांग्रेस से समझौता:
हालांकि मुलायम सिंह कह चुके हैं कि चुनाव में सपा का कांग्रेस सहित किसी भी दल से कोई गठबंधन नहीं होगा। लेकिन अब जिस तरह अखिलेश ने अपना दबदबा साबित किया है, उससे लगता है कि कांग्रेस केसाथ गठबंधन की संभावनाएं बनी हुई हैं। अखिलेश शुरू से ही गठबंधन के पक्ष में है। लालू प्रसाद यादव का प्रयास है कि भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए बिहार में महागठबंधन का जो फार्मूला अपनाया गया वो ही यूपी में भी अपनाया जावे। लालू भी चाहते हैं कि सपा और कांग्रेस में गठबंधन हो जाए। मुलायम के कुनबे का विवाद खत्म होने के बाद लालू ने इस बात के संकेत भी दिए हैं।

(एस.पी.मित्तल) (31-12-16)
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