बैंगलुरू की पार्टी में लड़कियों के साथ छेड़छाड़। आखिर दोषी कौन?

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कर्नाटक के बैंगलुरू महानगर में 31 दिसंबर की रात को एक होटल में नए वर्ष के जश्न का समारोह आयोजित किया गया। चूंकि बैंगलुरू की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में देशभर के लड़के-लड़कियां नौकरी करते हैं, इसलिए इस जश्न में उन लड़के-लड़कियों की संख्या ज्यादा थी, जो अपने माता-पिता के बगैर ही इस पार्टी में शरीक हुए थे। जब लड़कियां अपने दोस्त के साथ डांस कर रही थीं, तब कुछ मनचलों ने छेड़छाड़ कर दी। आरोप तो यहां तक है कि लड़कियों को मनचलों से बड़ी मुश्किलों से बचाया गया। पुलिस को मनचलों को खदेडऩे के लिए लाठियां भी चलानी पड़ी। कर्नाटक के गृहमंत्री जी.परमेश्वर का कहना है कि इस घटना के लिए युवाओं के बीच पनपती पश्चिम की संस्कृति है। उन्होंने लड़कियों के कपड़ों पर भी सवाल उठाए हैं। कर्नाटक में कांग्रेस का शासन है और केन्द्र में भाजपा की सरकार है, इसलिए राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ललिता कुमार मंगलम ने कर्नाटक के गृहमंत्री के बयान को खेदजनक बताते हुए रिपोर्ट भी तलब की है। मैं गृहमंत्री परमेश्वर के बयान पर तो कोई टिप्पणी नहीं कर रहा, लेकिन यह सवाल जरूर खड़ा कर रहा हूं कि आखिर इस घटना में दोषी कौन है? जिन अभिभावकों ने अपने बच्चों को बैंगलुरू में नौकरी करने अथवा पढऩे के लिए भेजा है, वे माता-पिता क्या यह चाहेंगे कि उनकी जवान बेटी रात को 12 बजे अपने पुरुष दोस्तों के साथ डांस करे? शायद ही कोई मां अथवा पिता होगा जो अपनी बेटी को ऐसी छूट दे। माना कि महिलाओं को पुरुषों के बराबर स्वतन्त्रता होनी चाहिए। महिलाएं भी अपनी मर्जी से जीवन जीने के लिए स्वतन्त्र है, इसलिए उन पर कोई पाबन्दी नहीं लगाई जानी चाहिए। लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि हम भारतीय संस्कृति में पले होते हैं। हमारे यहां पश्चिम की तरह किसी मर्यादा को भंग नहीं किया जाता। हमारे यहां महिलाओं के रहन-सहन का अपना सलीका है। हर माता-पिता ईश्वर से यह प्रार्थना करता है कि उसका बेटा और बेटी किसी महानगर में रहते हुए बुराई में न फंसे। उसकी ईश्वर से यही प्रार्थना होती है कि उसका पुत्र अथवा पुत्री नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करे और रात के समय पश्चिमी शैली की पार्टीयों में भी न जाए। सवाल सिर्फ लड़कियों का ही नहीं है बल्कि लड़कों का भी है। जिन माता-पिता को यह पता है कि उनका बेटा बाहर रहकर सिगरेट और शराब पीता है, उनकी पीड़ा भगवान ही जानता है। बैंगलुरू की घटना पर जो लोग महिलाओं की स्वतंत्रता की हिमायत कर रहे हैं, उन्हें यह बताना चाहिए कि क्या वे अपने पुत्र और पुत्री को रात्री को किसी पार्टी में भेजने के पक्षधर हंै? दूसरे की बेटी की स्वतंत्रता की बात करना आसान होता है, लेकिन जब खुद की बेटी अथवा बेटे की बात आएगी तो हर माता-पिता यही चाहेगा कि सब लोग परिवार के साथ कोई जश्न मनाएं। यह सच्चाई है कि यदि लड़कियां अपने अभिभावकों के साथ किसी पाटी पार्टी में मौजूद हों तो किसी भी मनचले की इतनी हिम्मत नहीं कि वह छेड़छाड़ कर दे। असल में होता यह है कि जब कोई लड़की छोटे और टाइट कपड़ों के साथ डांस आदि करती है तो पार्टी का माहौल अपने आप उत्तेजना भरा हो जाता है। अच्छा हो कि महानगरों में रहने वाले युवा अपने माता-पिता की अपेक्षाओं के अनुरूप रहन-सहन करें।
(एस.पी.मित्तल) (03-01-17)
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