वैष्णव सम्प्रदाय के झंडा बरदार थे निम्बार्क पीठ के आचार्य श्रीजी महाराज। 15 जनवरी को सलेमाबाद में होगा अंतिम संस्कार।

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14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन जब सूर्य देवता उत्तराण हो रहे थे तभी अजमेर के सलेमाबाद स्थित निम्बार्क पीठ के आचार्य जगद्गुरु श्रीजी महाराज ने अपना शरीर त्याग दिया। 87 वर्षीय जगद्गुरु ने रोजाना की तरह पंडित दामोदार से नव पंचाग सुना और फिर अंतिम आशीर्वाद देते हुए अपनी आंखें हमेशा के लिए बंद कर लीं। अब निम्बार्क पीठ और वैष्णव सम्प्रदाय की पंरपरा के अनुरूप श्रीजी महाराज की देह का 15 जनवरी को प्रात: दस बजे मंदिर परिसर में ही अंतिम संस्कार किया जाएगा। 14 जनवरी को देहावासन की खबर मिलते ही वैष्णव सम्प्रदाय के हजारों श्रद्धालु निम्बार्क पीठ पहुंचना शुरू हो गए हैं।
मात्र 16 वर्ष की उम्र में बने पीठ के आचार्य
श्रीजी महाराज मात्र 16 वर्ष की उम्र में श्री अखिल भारतीय जगद्गुरु निम्बाकाचार्य पीठ के पीठाधीश्वर बन गए थे। 6 वर्ष की उम्र में आपने संन्यास ले लिया था। आपने वृंदावन और बंगाल में वैदिक ज्ञान लिया। सलेमाबाद स्थित राधासर्वेश्वर मंदिर के विकास में श्रीजी महाराज ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज इस पीठ का जो विशाल स्वरूप देखा जा रहा है, उसका श्रेय श्रीजी महाराज को ही है। देशभर में निम्बार्क पीठ की सम्पत्तियों को संभालने और सुरक्षित रखने में भी श्रीजी महाराज ने कोई कसर नहीं छोड़ी। सत्ता के बड़े से बड़े नेता ने श्रीजी के चरणों में शीश नवाया, लेकिन श्रीजी हमेशा सरल स्वभाव के बने रहे। ऐसे लाखों भक्त मिल जाएंगे जो अपना सब कुछ श्रीजी को ही मानते हैं, इसे श्रीजी का सद्व्यवहार ही कहा जाएगा कि गृह प्रवेश से लेकर कंपनी की शुरुआत तक के शुभ मौकों पर श्रीजी ने अपनी ईश्वरीय उपस्थित दर्ज करवार्ई।
राष्ट्रपति सम्मान:
वेदों के अध्ययन, संस्कृत के विकास और अनेक पुस्तकें लिखने पर गत वर्ष राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने श्रीजी महाराज को एक भव्य समारोह में सम्मानित किया। हिन्दू संस्कृति पर श्रीजी ने जो पुस्तकें लिखी हैं वे देश के करीब 20 विश्व विद्यालयों में पढ़ाई जाती है। श्रीजी के जीवन और लेखन पर अब तक कोई 60 विद्यार्थियों ने पीएचडी की है।
युवाचार्य श्यामशरण है उत्तराधिकारी:
श्रीजी महाराज ने युवाचार्य श्याम शरण को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा है। पिछले कई वर्षों से युवाचार्य ही श्रीजी के स्थान पर धार्मिक समारोह में भाग ले रहे थे। युवाचार्य ने भी श्रीजी के सान्निध्य में वेदों का अध्ययन किया है।
585 वर्ष पुराना है मंदिर:
वैष्णव सम्प्रदाय के विद्वान और सामाजिक कार्यकर्ता विक्रम सिंह टापरवाल ने बताया कि सलेमाबाद में बना श्री राधा सर्वेश्वर भगवान का मंदिर 585 वर्ष पुराना है। आचार्य परशुराम देवाचार्य सर्वेश्वर भगवान की प्रतिमा को वृंदावन से लेकर आए थे। बाद में शेरशाह सूरी ने मंदिर के लिए भूमि दी और खेजडला ठाकुर ने मंदिर का निर्माण करवाया। धीरे-धीरे यह मंदिर वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र बन गया। मंदिर का इतिहास देश के स्वतंत्रता आंदोलन से भी जुड़ा हुआ है। अजमेर के खरवा क्षेत्र के क्रांतिकारी गोपाल सिंह ठाकुर ने भी निम्बार्क पीठ में शरण ली थी। यूं तो निम्बार्क पीठ का सम्पूर्ण देश में प्रभाव है, लेकिन बृज क्षेत्र तो पूरी तरह निम्बार्क पीठ का ही है। आज भी बृज में अनेक मंदिर इसी पीठ के हैं।
सीएम ने जातई संवेदना:
श्रीजी महाराज के देवलोक गमन पर मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने शोक व्यक्त किया है। राजे ने अपने शोक संदेश में कहा कि श्रीजी महाराज की प्रसिद्धि निम्बार्क सम्प्रदाय में ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत के धार्मिक एवं आध्यात्मिक जगत में थी। उन्होंने मानवता के कल्याण, धर्म के प्रसार तथा सामाजिक समरसता को मजबूत करने के साथ-साथ आचार्य परंपरा को समृद्ध किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि आचार्य श्रीजी महाराज के देवलोक गमन से निम्बार्क परिसर में ही नहीं पूरे आध्यात्मिक जगत में रिक्तता आ गई है। उन्होंने निम्बार्क सम्प्रदाय को यह दु:ख सहन करने की शक्ति प्रदान करने के लिए ईश्वर से प्रार्थना की है।
(एस.पी.मित्तल) (14-01-17)
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