पोते के मोह में फंस गए राजस्थान के विश्वविद्यालयों के चांसलर। अब दीक्षान्त समारोह में विद्यार्थियों को क्या सीख देंगे?
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राजस्थान के गवर्नर होने के नाते कल्याण सिंह इस प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के चांसलर भी हैं, लेकिन इसे राजनीति का चरित्र और पोते का मोह ही कहा जाएगा कि कल्याण सिंह पिछले चार दिनों से उत्तर प्रदेश के अतरोली में डेरा जमाए हैं। 17 जनवरी को भाजपा ने यूपी चुनाव के उम्मीदवारों की जो सूची जारी की है, उसमें कल्याण सिंह के पोते संदीप सिंह को अतरोली से उम्मीदवार घोषित किया गया है। अतरोली से कल्याण सिंह राजस्थान कब आएंगे? यह कोई नहीं जानता क्योंकि पहले टिकिट दिलवाने के लिए अतरोली में खूंटा गाड़ा तो अब पोते को जितवाने की चिंता है। कल्याण सिंह ने अपने पोते को तब टिकिट दिलवाया है, जब पीएम नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि नेताओं को अपने रिश्तेदारों को टिकिट नहीं दिलवाना चाहिए। सब जानते हैं कि कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह भी यूपी से भाजपा के सांसद हैं। यानि पहले बेटे को सांसद बनवाया, अब पोते को विधायक बनवा रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी कहा जाता है कि गवर्नर का पद निष्पक्ष और संवैधानिक होता हैं।
सवाल सीख का
गवर्नर होने के नाते कल्याण सिंह राजस्थान के विश्वविद्यालयों के चांलसर भी हैं, इसलिए दीक्षान्त समारोहों में मुख्य अतिथि के तौर पर उपस्थित रहते हैं। कल्याण सिंह दीक्षान्त समारोहों में विद्यार्थियों को अपने बलबूते पर आगे बढऩे की सीख देते हैं। जो कल्याण सिंह अपने पोते को आगे बढ़ाने के लिए राजस्थान के राजभवन को अतरोली ले गए, वो ही कल्याण सिंह विद्यार्थियों को अपनी योग्यता पर भरोसा रखने की बात कहते हैं। पता नहीं विद्यार्थी गवर्नर की सीख को कितनी गंभीरता से लेते हैं, लेकिन इतना जरूर है कि कल्याण सिंह अपने पोते को विधायक बनवाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं।
चलना भी मुश्किल है
सब जानते हैं कि कल्याण सिंह का स्वास्थ्य बेहद खराब रहता है, उन्हें चार कदम चलने में भी परेशानी होती है। सीढिय़ां तो पकड़कर चढ़ाई जाती है। इतना स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी कल्याण सिंह चाहते हैं कि उन्हें यूपी में मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाए। यदि केन्द्र में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह का दमखम नहीं होता तो कल्याण सिंह को काबू में रखना भाजपा के लिए मुश्किल होता।
एस.पी.मित्तल) (18-01-17)
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