पैगम्बर मोहम्मद साहब तक रहा इस्लामिक इतिहास, बाद में हुआ मुसलमानों का इतिहास। शिक्षाविद् असलम खान ने कहा कि कश्मीर में हिन्दू भी अमन से रहें।
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25 जनवरी को मेरी मुलाकात मुस्लिम इतिहासकार और शिक्षाविद् डॉ. असलम खान से हुई। यह मुलाकात अजमेर स्थित सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के दरगाह के सहायक नाजिम डॉ. आदिल की पहल पर हुई। डॉ. असलम ने मुस्लिम संस्कृति, इतिहास और देश के ताजा हालातों पर खुलकर अपने विचार रखे। डॉ. असलम की विद्वता का इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे इस समय आस्ट्रेलिया, नाइजीरिया और इथोपिया की यूनिवर्सिटी में विजिटिंग प्रोफेसर हंै। विदेशों में पढ़ाने के कारण डॉ. असलम अलीगढ़ विश्वविद्यालय में अवकाश पर चल रहे हैं। डॉ. असलम ने बताया कि पैगम्बर मोहम्मद साहब के जीवनकाल तक इस्लामिक इतिहास है, लेकिन इसके बाद मुसलमानों का इतिहास हो गया। पैगम्बर मोहम्मद साहब ने इस्लाम की जो शिक्षाएं दीं, वे भारतीय संस्कृति से मेल खाती हैं। जिस प्रकार कुरान शरीफ में मां के चरणों में जन्नत बताई गई है। उसी प्रकार हिन्दू संस्कृति में मां को देवी का रूप दिया गया है। यदि पड़ौसी भूखा रहे और मुसलमान भरपेट खाना खाए तो वह मुसलमान नहीं है। इसी प्रकार भारतीय संस्कृति में अतिथि देवो भव: की मान्यता है। डॉ. असलम ने माना कि पैगम्बर मोहम्मद साहब के बाद मुसलमानों ने अपने नजरिए से इस्लाम का निर्धारण कर लिया और आज इस्लामिक स्टेट, बोकोहरम जैसी विचारधारा अपना प्रभाव जमा रही है। उन्होंने कहा कि जब हम भारत को धर्म निरपेक्ष राष्ट्र मानते हैं तो फिर कश्मीर में हिन्दुओं को भी अमन के साथ रहना चाहिए। जम्मू-कश्मीर विधानसभा में हाल ही में हिन्दुओं को पुन: बसाने का जो प्रस्ताव पास हुआ है, वह सही है। सरकार को चाहिए कि जल्द से जल्द हिन्दुओं को अपने घरों में दुबारा से बसाया जाए।
कॉमन सिविल कोड और तीन तलाक जैसे मुद्दों पर डॉ. असलम का मानना रहा कि मुलसमानों के लिए अपना शरिया कानून बना हुआ है। यह बात अलग है कि कुछ लोग शरिया कानून का पालन नहीं करते हैं। मोबाइल पर तीन बार तलाक, तलाक, तलाक कह देने से तलाक नहीं होगा। कुरान में तलाक को लेकर पूरी व्यवस्था दे रखी है। यदि कुरान की शिक्षाओं के अनुरूप तलाक की प्रक्रिया अपनाई जाती है तो मुस्लिम धर्म में तलाक बहुत कठिन है। डॉ. असलम का मानना रहा कि तीन तलाक के मुद्दे पर सरकार को कोई दखल नहीं देना चाहिए। हो सकता है कि कुछ मुस्लिम महिलाएं सुप्रीम कोर्ट में चली गई हों, लेकिन आम मुस्लिम महिला शरिया कानून के तहत ही अपना जीवन व्यतीत करना चाहती हैं। उन्होंने कहा कि उपभोक्तावादी संस्कृति के पनपने की वजह से लोगों के व्यक्तित्व में गिरावट आई है। यह गिरावट समाज के सभी वर्गों के लोगों में है। उन्होंने कहा कि भारत एक खुबसूरत देश है, जिसकी जड़ें वैदिक संस्कृति से जुड़ी हुई है।
एस.पी.मित्तल) (25-01-17)
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