सरकार के लिए शर्मनाक है मरीजों की आंखों में संक्रमण होना। आखिर कैसे हो सरकारी अस्पतालों पर भरोसा। ======================

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12 फरवरी को भी अजमेर के जवाहरलाल नेहरू अस्पताल में उन 7 मरीजों की आंखों का ईलाज जारी रहा, जिनकी आंखों के मोतियाबिन्द का ऑपरेशन जिले के ब्यावर उपखंड के राजकीय अमृतकौर अस्पताल में हुआ था। ऑपरेशन के बाद जब आंखों की पट्टी खोली गई तो मरीजों की रोशनी बढऩे के बजाय बंद हो गई। प्राथमिक जांच में यह माना गया कि ऑपरेशन के दौरान लापरवाही बरतने के कारण ही मरीजों की आंखों में संक्रमण हो गया। किसी भी सरकार के लिए यह बेहद ही शर्मनाक बात है कि सरकारी अस्पताल में ऑपरेशन के दौरान आंखों की रोशनी चली जाए। सरकार अस्पतालों पर करोड़ों रुपया खर्च करती है। इसके बाद भी यदि सरकारी डॉक्टर लापरवाही बरते तो फिर जनता को गुस्सा आएगा ही। आमतौर पर गरीब परिवार के लोग ही सरकारी अस्पतालों में ईलाज के लिए जाते हैं। यदि कोई परिवार थोड़ा सा भी आर्थिक दृष्टि से सक्षम होता है तो उसका सदस्य प्राइवेट अस्पताल में ही ईलाज के लिए जाता है। चूंकि प्राइवेट अस्पताल मंहगे होते हैं, इसलिए गरीब व्यक्ति तो सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर रहता है। ब्यावर के अस्पताल में ऑपरेशन डॉक्टर मंजू नागरानी ने किए थे। डॉक्टर मंजू के द्वारा पूर्व में किए गए ऑपरेशन के दौरान भी मरीजों की आंखों में संक्रमण होने की बात सामने आई थी। तब डॉक्टर मंजू को निलंबित भी किया गया, लेकिन राजनीतिक संरक्षण की वजह से डॉक्टर मंजू जल्दी ही बहाल भी हो गई। जानकारों की माने तो राजनीतिक संरक्षण की वजह से ही डॉक्टर मंजू नागरानी को एक बार फिर बचाने की कोशिश की जा रही है। हो सकता है कि डॉक्टर नागरानी को निलंबित कर दिया जाए, लेकिन थोड़े ही दिनों में उनकी बहाली हो जाएगी। संरक्षण देने वाले नेता उन 7 मरीजों के दर्द को नहीं समझ रहे, जिनकी आंखों की रोशनी खतरे में है। अजमेर के अस्पताल के नेत्र रोग विभाग के प्रभारी डॉक्टर संजीव बेनीवाल का कहना है कि अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इन 7 मरीजों की आंखों की रोशनी रहेगी या नहीं।
एस.पी.मित्तल) (12-02-17)
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