सुप्रीम कोर्ट के लिए मुसीबत बने कोलकाता हाईकोर्ट के जज सी.एस. करनन। अब जमानती वारंट से किया तलब।
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10 मार्च को देश के न्यायिक इतिहास में यह पहला अवसर होगा जब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ वारंट जारी किया है। चीफ जस्टिस जे.एस. खेहर की अध्यक्षता वाली सात सदस्य संविधान पीठ ने कोलकाता हाईकोर्ट के जज सी.एस. करनन के खिलाफ जमानती वारंट जारी कर 31 मार्च को पेश होने के आदेश दिए हैं। 10 मार्च को जस्टिस करनन के खिलाफ जो कार्यवाही हुई, उससे प्रतीत होता है कि जस्टिस करनन अब सुप्रीम कोर्ट के लिए मुसीबत बन गए हैं। जस्टिस करनन जिस तरह लगातार आरोप लगा रहे हैं, उसका मुकाबला सुप्रीम कोर्ट शायद नहीं कर पा रहा। यदि कोई नेता अथवा अधिकारी मुंसिफ न्यायालय के खिलाफ आंख भी दिखा दे तो उसे अवमानना के आरोप में जेल भेजने में कोई देरी नहीं की जाती है। लेकिन जस्टिस करनन ने हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के 20 जजों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। आरोप भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चिट्टी भेज कर लगाए गए। प्रधानमंत्री कार्यालय ने जस्टिस करनन की चिट्टी को सुप्रीम कोर्ट के पास भिजवा दिया। इस चिट्टी के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस करनन के विरूद्व अवमानना का मामला दर्ज किया। लेकिन बार-बार बुलाने के बाद भी जस्टिस करनन सुप्रीम कोर्ट में पेश नहीं हो रहे हैं। असल में जस्टिस करनन को भी पता है कि भारतीय संविधान के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट के किसी जज के विरूद्व कोई कार्यवाही नहीं कर सकता। हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए संसद में ही महाअभियोग चलाना होगा। इसलिए जस्टिस करनन ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वह मामले को लोकसभा अध्यक्ष के पास भिजवा दे। जस्टिस करनन का आरोप है कि दलित होने के कारण सुप्रीम कोर्ट उन्हें परेशान कर रहा है। जस्टिस करनन अपने आरोप की जांच की भी मांग कर रहे हैं। अब देखना है कि सुप्रीम कोर्ट इस मुसीबत से किस प्रकार सामना करता है।
(एस.पी.मित्तल) (10-03-17)
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