तो आप ने बता दिया कि भ्रष्टाचार के बगैर नहीं चल सकती राजनीति। फेल हो गई केजरीवाल की ईमानदारी की राजनीति।

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7 मई को दिल्ली सरकार के बर्खास्त मंत्री कपिल मिश्रा ने जिस तरह सीएम अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए, उससे साफ जाहिर है कि देश में भ्रष्टाचार के बगैर राजनीति चल ही नहीं सकती। साथ ही यह भी साफ हो गया कि केजरीवाल ने ईमानदार राजनीति करने का जो दावा किया था, वह भी फेल हो गया। पूरा देश जानता है कि यूपीए की सरकार में फैले भ्रष्टाचार को उजागर करते-करते ही केजरीवाल नेता बने। 3 वर्ष पहले जिस तरह केजरीवाल ने मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रियों पर आरोप लगाए, वैसे ही आरोप 7 मई को कपिल मिश्रा ने केजरीवाल और उनके मंत्रियों पर लगाए हैं। तब केजरीवाल भी नैतिकता के आधार पर मंत्रियों से इस्तीफे मांगते थे। सवाल उठता है कि क्या अब केजरीवाल स्वयं इस्तीफा देंगे? 2 करोड़ रुपए स्वयं लेने और 50 करोड़ रुपए की डील करने का आरोप कोई कम नहीं होता। केजरीवाल ने जब आम आदमी पार्टी का गठन किया था, तब दावा किया कि वह राजनीति में ईमानदारी बरतेंगे। लोगों ने केजरीवाल के इस दावे पर भरोसा भी किया और दिल्ली विधानसभा के चुनाव में 70 में से 67 सीटें केजरीवाल को दी। लेकिन मात्र 2 वर्ष की अवधि में ही केजरीवाल की दिल्ली सरकार बिखरती नजर आ रही है। सवाल सिर्फ केजरीवाल की पार्टी का नहीं है। राजनीतिक दल कोई भी हो भ्रष्टाचार के बगैर चल ही नहीं सकता। केजरीवाल ईमानदारी के कितने भी दावे करें, लेकिन पंजाब और गोवा के विधानसभा चुनाव में जिस तरह पानी की तरह पैसा बहाया गया, वह सब दिल्ली की सरकार से ही गया। यदि केजरीवाल की पार्टी की सरकार दिल्ली में नहीं होती तो पंजाब और गोवा में इतना पैसा भी खर्च नहीं होता। राजनीति करने के लिए केजरीवाल ने भी वही हथकंडे अपनाए, जो कांग्रेस और भाजपा अथवा अन्य दलों में अपनाए जाते हैं। केजरीवाल की पार्टी का जिस तेजी के साथ उदय हुआ, अब उसी तेजी के साथ अस्त भी हो रहा है। केजरीवाल को डुबोने के लिए भाजपा और कांग्रेस के नेताओं के बजाय उन्हीं की पार्टी के नेता काफी हैं। हो सकता है कि अगले कुछ ही दिनों में केजरीवाल के पास विधानसभा में बहुमत भी नहीं रहे। यानी 40 से भी ज्यादा विधायक केजरीवाल से अलग हो जाएं। इसके पीछे भले ही भाजपा और कांग्रेस का षड्यंत्र हो। लेकिन राजनीति में सब जायज होता है। क्या केजरीवाल ने ऐसी राजनीति नहीं की? केजरीवाल भले ही दिल्ली में अपनी सरकार को सफल बताते हों, लेकिन ताजा घमासान से प्रतीत होता है कि केजरीवाल जैसे नेता सत्ता की राजनीति नहीं कर सकते। केजरीवाल तो विपक्ष में बैठकर ही राजनीति में ईमानदारी की बात कर सकते हैं। अच्छा हो कि केजरीवाल सीएम के पद से इस्तीफा देकर वापस पहले वाली भूमिका में आ जाएं और इस समय देश में जो भ्रष्टाचार फैला हुआ है, उसे उजागर करें।
(एस.पी.मित्तल) (07-05-17)
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