एनडीटीवी पर सीबीआई के छापे। अब मीडिया को भी साफ-सुथरा रहना पड़ेगा।

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एनडीटीवी पर सीबीआई के छापे। अब मीडिया को भी साफ-सुथरा रहना पड़ेगा।
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5 जून को सीबीआई ने एनडीटीवी न्यूज चैनलों के संस्थापक प्रणय रॉय के दिल्ली स्थित आवास और तीन अन्य स्थानों पर छापामार कार्यवाही की। एनडीटीवी से जुड़ी आर.आर.पी.आर. हार्डिंग्स के दिल्ली और देहरादून के ठिकानों पर भी तलाशी ली गई। एनडीटीवी ने सीबीआई की इस कार्यवाही को परेशान करने वाला बताया है। चैनल का कहना है कि हम भारत में लोकतंत्र और बोलने की स्वतन्त्रता को पूरी तरह से कमजोर कर देने के इन प्रयासों के आगे घुटने नहीं टेकेंगे। आरोप है कि एनडीटीवी के प्रमोटरों ने आईसीआईसीआई बैंक को 48 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाया है। सीबीआई की जांच में क्या निकलता है? यह आने वाले दिनों में पता चलेगा, लेकिन इतना जरूर है कि अब मीडिया घरानों को भी साफ-सुथरा रहना पड़ेगा। यूपीए के शासन में एनडीटीवी के प्रमोटरों, पत्रकारों और चैनल से जुड़े अन्य लोगों के मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों, अफसरों आदि से कैसे सम्बन्ध थे, यह किसी से भी छिपा नहीं है। यह माना कि सत्ता में मीडिया घरानों की दखल होती ही है, लेकिन पांच जून को एनडीटीवी के साथ जो कुछ भी हुआ है, उससे दूसरे मीडिया घरानों को सबक लेना चाहिए। यह किसी से भी छिपा नहीं है कि जब सत्ता के साथ हाथ मिले होते हैं तब मीडिया घरानों को रियायती दरों पर बेशकीमती जमीनें आसानी के साथ मिल जाती हैं। बाद में इन जमीनों को बड़ी कंपनियों को किराए पर दे दिया जाता है। सवाल उठता है कि जो जमीन देश सेवा के लिए पत्रकारिता के नाम पर ली गई है, उसे लाखों रुपए प्रतिमाह किराए पर क्यों दे दिया जाता है? इतना ही नहीं, जब कोई मीडिया सत्ता की गोदी में बैठा होता है तो उसे विज्ञापन भी दिल खोलकर मिलते हैं, लेकिन अब समय आ गया है जब मीडिया को साफ-सुथरा रहना पड़ेगा। ऐसा नहीं हो सकता कि मौका मिलने पर मीडिया घराना सत्ता की मलाई खाए और जब कोई सत्ता जांच पड़ताल कराए तो लोकतंत्र और पत्रकारिता की दुहाई दी जाए। आज शायद ही कोई मीडिया घराना होगा, जो देश सेवा के लिए पत्राकारिता को एक मिशन के तौर पर कर रहा है। सभी घरानों का व्यवसायिक दृष्टिकोण रहता है। जब व्यवसायिक दृष्टिकोण है तो फिर मीडिया को समाज में अलग क्यों माना जाए। जिस प्रकार साबुन अथवा तेल बनाने वाली कोई कम्पनी काम करती है, उसी प्रकार मीडिया भी अब कमाई का उद्देश्य लेकर चलता है। मीडिया घरानों को अब यह भी समझना चाहिए कि आने वाला समय सोशल मीडिया का है और जिस व्यक्ति के पास मोबाइल फोन है, वह स्वयं पत्रकार है। व्हाट्सएप और फेसबुक के माध्यम से तो खबरों का आदान-प्रदान बहुत तेजी से और अधिक संख्या में हो रहा है।
(एस.पी.मित्तल) (05-06-17)
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