तो क्या राजस्थान में सरकार से हालात नहीं संभल रहे। मंत्री के सामने कुलपति पिटे, लोगों को बचाने गए एसडीएम खुद बह गए तो कलेक्टर एसपी को जान बचा कर भागना पड़ा। ==============
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तो क्या राजस्थान में सरकार से हालात नहीं संभल रहे।
मंत्री के सामने कुलपति पिटे, लोगों को बचाने गए एसडीएम खुद बह गए तो कलेक्टर एसपी को जान बचा कर भागना पड़ा।
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तो क्या राजस्थान में सरकार से हालात नहीं संभल रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठा कि प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी के बाद भी अप्रिय घटनाएं हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि सत्ता में बैठे मंत्रियों और प्रशासन में बैठे अधिकारियों का कोई महत्त्व ही नहीं रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 14 जुलाई को जोधपुर में जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.पी.सिंह का सरेआम पिट जाना है। कुलपति की पिटाई इसलिए गंभीर है कि समारोह में प्रदेश की उच्च शिक्षा मंत्री श्रीमती किरण माहेश्वरी भी मौजूद थीं। यह माना कि कुलपति को पीटने वाले निजी कॉलेज के संचालक खरताराम बाना का अपना दर्द होगा, लेकिन यह हकीकत है कि पिटाई मंत्री की मौजूदगी में की गई। यानि कानून हाथ में लेने वालों को अब सरकार के मंत्रियों का भी डर नहीं है। इससे मंत्री किरण माहेश्वरी को भी अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेने चाहिए। बांसवाड़ा के कुशलगढ़ के एसडीएम रामेश्वर दयाल मीणा का नदी में बह जाना तो प्रशासन की पोल पूरी तरह खोल देता है। बाढ़ से लोगों को बचाने के लिए ही मीणा बाकड़ी नदी की रपट के निकट गए थे। लेकिन मीणा और उनका वाहन ही रपट के पानी के तेज बहाव में बह गया। गंभीर बात तो यह है कि 14 जुलाई को सुबह हुई इस वारदात के बाद 15 जुलाई की शाम तक सरकार के एसडीएम का कोई पता नहीं चला। जब प्रशासन के बचाने वाले अधिकारी ही बह रहे हैं तो फिर आम लोगों की रक्षा कैसे होगी? जाहिर है कि प्रशासनिक तंत्र लापरवाह तरीके से काम कर रहा है। हालात नियंत्रण से बाहर का तीसरा उदाहरण भी 14 जुलाई का ही है। बीकानेर के लूनकरण में कंवरसेन लिफ्ट मोघे छोटे करने के विरोध में पिछले 10 दिनों से किसान आंदोलन कर रहे हैं। शायद किसानों के आंदोलन की गंभीरता को बीकानेर प्रशासन ने नहीं समझा और इसलिए 14 जुलाई को जब किसानों ने तहसील कार्यालय पर हंगामा किया। एडिशनल एसपी लालचंद सहित कई पुलिस अधिकारी और जवान जख्मी हो गए। प्रत्यक्षदर्शियो के अनुसार कलेक्टर और एसपी को भी अपनी जान बचाकर मौके से भागना पड़ा।
लोकतंत्र में धरना प्रदर्शन और आंदोलन होना सामान्य बात है। लेकिन जब मंत्रियों के सामने कुलपति की पिटाई और बड़े अफसरों को मौके से भागना पड़े, तो फिर सरकार और प्रशासन की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। हालातों से निपटने में प्रशासन और सत्तारुढ़ पार्टी के सांसदों, विधायकों और अन्य जनप्रतिनिधियों के बीच जो तालमेल होना चाहिए, वह भी राजस्थान में नजर नहीं आ रहा है। सवाल उठता है कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधि अपने लोगों को समझाने के लिए मौके पर क्यों नहीं जाते? हालात मंत्रियों और विधायकों के निर्णयों के कारण बिगड़ते हैं और बिगड़े हालातों से मुकाबला करने के लिए प्रशासन व पुलिस के अधिकारियों को भेज दिया जाता है। जब आम जनता में जनप्रतिनिधियों पर से भरोसा उठ जाता है, तब हालात नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं। गैंगस्टर आनंदपाल के एनकाउंटर के मामले में ही सरकार घिरी हुई है। 12 जुलाई को नागौर जिले के सांवराद गांव में हुई रैली के बाद की हिंसा को लेकर 20 हजार से भी ज्यादा लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज होना यह बताता है कि सरकार के प्रतिनिधियों और प्रदर्शनकारियों के बीच संवादहीनता थी। विरोधी तो सरकार को नीचा दिखाने का काम करेंगे ही, लेकिन नियंत्रण करने की जिम्मेदार सरकार की ही है। दूसरों पर आरोप लगा कर सरकार और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते।
एस.पी.मित्तल) (15-07-17)
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