तो क्या सचिन पायलट लगा सकते हैं दांव? अजमेर लोकसभा के उपचुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारी का मामला। =========

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सांसद सांवरलाल जाट के निधन के बाद होने वाले अजमेर लोकसभा के उपचुनाव में उम्मीदवारी को लेकर भाजपा और कांग्रेस दोनों में ही मंथन शुरू हो गया है। भाजपा के उम्मीदवार का मामला तो ऊपर तक जाएगा, लेकिन कांग्रेस के उम्मीदवार के मामले में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट की ही मुख्य भूमिका रहेगी। पायलट यदि स्वयं उपचुनाव लडऩा चाहते हैं तो कांग्रेस हाईकमान को भी ऐतराज नहीं होगा। लेकिन असल सवाल यही है कि क्या पायलट इस उपचुनाव में अपनी राजनीति को दांव पर लगाएंगे? कोर्ट भी राजनीतिक दल जातिवाद नहीं करने का दावा करें लेकिन हकीकत में जाति के हिसाब से मतदाताओं की संख्या देखते हुए ही उम्मीदवार का चयन किया जाता है। स्वयं पायलट ने वर्ष 2009 में दौसा छोड़कर अजमेर से चुनाव इसीलिए लड़ा कि यहां उनकी जाति के गुर्जर मतदाताओं की संख्या अधिक है। वर्ष 2009 में पायलट ने अजमेर से चुनाव जीता भी, लेकिन 2014 में पायलट को मात देने के लिए भाजपा ने जातिय समीकरण देखते हुए ही जाट समुदाय के लोकप्रिय नेता सांवरलाल जाट को उम्मीदवार बनाया। इस बार जाट ने पायलट को मात दे दी। लेकिन आज भी अजमेर में सचिन पायलट की लोकप्रियता बनी हुई है। वर्ष 2009 से 2014 के बीच केन्द्रीय मंत्री रहते हुए पायलट ने अजमेर में विकास के जो कार्य करवाए, उन्हें जनता आज भी याद करती है। हालांकि 2014 में पायलट की हार का एक कारण मोदी लहर भी थी। उस लहर में कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज चुनाव हार गए। लोकसभा का चुनाव हारने के बाद पायलट प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बन गए। इसीलिए अजमेर से पायलट का सम्पर्क लगातार बना रहा। पायलट के नेतृत्व में ही कांग्रेस ने अजमेर जिले के नसीराबाद विधानसभा का उपचुनाव भी जीता। यानि आज भी अजमेर में सबसे मजबूत उम्मीदवार सचिन पायलट ही हैं। सब जानते हैं कि राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनने पर पायलट को ही मुख्यमंत्री का प्रबल दावेदार माना जा रहा है। कांग्रेस के पूर्व प्रभारी गुरुदास कामत ने तो पायलट के नेतृत्व में ही विधानसभा का चुनाव लडऩे की घोषणा कर दी थी। ऐसे में अब यह पायलट को तय करना है कि अजमेर से उपचुनाव लड़ें या नहीं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राजस्थान में अगले वर्ष नवम्बर में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं। यदि उपचुनाव में पायलट जीत जाते हैं तो उनके राजनीतिक कद में और बढ़ोत्तरी होगी। अजमेर जिले में कांग्रेस में ऐसा दमखम वाला नेता नहीं है, जो उपचुनाव में सत्ता का मुकाबला कर सके। यह बात अलग है कि कांग्रेस के उम्मीदवार को अजमेर जिले के भाजपा विधायकों के प्रति व्याप्त नाराजगी का लाभ मिलेगा। पायलट की उम्मीदवारी से इस संसदीय क्षेत्र के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में भी नई ऊर्जा का संचार होगा। यह उपचुनाव कांग्रेस के लिए ही नहीं बल्कि सत्तारुढ़ भाजपा के लिए भी महत्त्वपूर्ण है। इस उपचुनाव के परिणाम अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव पर असर डालेंगे।
एस.पी.मित्तल) (12-08-17)
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