राजनीति केवल भाग्य की नहीं, बल्कि पुरुषार्थ की मांग भी करती है। =========

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अजमेर से जुड़े भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राज्यसभा सांसद भूपेन्द्र यादव का एक लेख 19 अगस्त को दैनिक जागरण में प्रकाशित हुआ है। भाजपा की राजनीति पर लिखा यह लेख जागरण से सफर करते हुए मेरे पाठकों के लिए भी प्रस्तुत है।
केन्द्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार आने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जहां पीएम पद को ‘प्रधानसेवकÓ का दर्जा देकर देश की जनता के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया, वहीं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने अपने तीन वर्ष के कार्यकाल में प्रधानमंत्री के इस ध्येय को संगठन के माध्यम से पार्टी में चरितार्थ करके संगठन कुशलता का परिचय दिया है। राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद बीते तीन वर्षों में अमित शाह ने एक संगठनकर्ता के रूप में अपनी कार्यप्रणाली से संगठन में कार्यकर्ता भाव को अपने आचरण एवं व्यवहार के माध्यम से जागृत करने का सफल प्रयास किया है। उन्होंने पार्टी में हाईकमान प्रणाली को कभी भी स्वीकृति नहीं दी। पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने किसी प्रकार की अनावश्यक सुविधा एवं खर्चे को अस्वीकार करते हुए आवश्यकता के अनुरूप विकल्पों का चयन किया, जैसे होटल के बजाय सरकारी गेस्ट हाउस का प्रयोग और जनसंघ की रीति-नीति के अनुसार सामान्य कार्यकर्ता एवं पार्टी पदाधिकारी के घर भोजन करना। राष्ट्रीय स्तर पर नीतियां बनाते हुए भी उन्होंने बूथ, जिला एवं प्रदेश के कार्यकर्ताओं से सीधा संवाद स्थापित करने की परंपरा का भी विकास किया है। यह भारतीय राजनीति का वह परंपरागत स्वरूप है जो वंशवाद और जातिवाद की राजनीति के बीच कहीं गौण होता गया, पर अमित शाह ने इसको न केवल फिर से विकसित किया, बल्कि भाजपा को कर्मठ कार्यकर्ताओं वाली पार्टी के रूप में मजबूती से स्थापित करने का कार्य भी किया। उन्होंने अपने साथियों और सहयोगियों को यह भी सिखाया कि एक राजनीतिक कार्यकर्ता को सत्ता के साथ समन्वय स्थापित करके सकारात्मक एवं गुणात्मक कार्य करने चाहिए। आधुनिक शासन व्यवस्था में सरकार और संगठन का बेहतर तालमेल ही नवाचार ला सकता हैए यह पिछले तीन वर्षो में प्रकट हुआ है।
सामान्यतया तालमेल के अभाव में सरकार अपने सांगठनिक वोट बैंक की बंधक बन जाती है और नए फैसले नहीं ले पाती है, परंतु मोदी सरकार के साथ ऐसा नहीं है। गत तीन साल में अमित शाह के संगठनात्मक नेतृत्व में बूथ स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पार्टी की राजनीतिक विचारधारा को कार्यकर्ताओं तक पहुंचाने की एक शृंखलाबद्ध व्यवस्था शुरू की गई है। एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में भाजपा की कार्यप्रणाली को सुव्यवस्थित ढंग से संचालित करने के लिए विभिन्न दायित्वों को आइटी एवं सोशल मीडिया, मीडिया प्रकाशन आदि विभागों में बांटकर अपने दौरों के माध्यम से प्रदेश स्तर तक इसे पहुंचाने का कार्य भी उन्होंने बखूबी किया है। इसके साथ ही उन्होंने राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में सामाजिक दायित्वों को सुनिश्चित करने के लिए बेटी बचाओ, नामामि गंगे और स्वच्छता मिशन जैसे प्रकल्पों को भी खड़ा करने का कार्य किया है। कार्यकर्ता की वैचारिक स्पष्टता को पुख्ता करने और उसके दायित्वों के सही बोध को सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने प्रशिक्षण कार्यक्रमों की व्यवस्था को भी सुनिश्चित करने पर विशेष जोर दिया है।
पंडित दीनदयाल जन्म शताब्दी वर्ष में भाजपा द्वारा 15 दिन से एक साल तक एक विस्तारक कार्यकर्ता के लिए अन्य क्षेत्रों में कार्य करने की योजना तैयार की गई है। अमित शाह जब इस योजना पर कार्यकर्ताओं से संवाद करते हैं तो उनका स्पष्ट संदेश यही होता है कि हम जब पार्टी के लिए समय दे रहे हैं तो पार्टी इसका माध्यम हो सकती है, लेकिन इसका उद्देश्य देश की उन्नति की दिशा में समर्पित भाव से कार्य करने का ही होना चाहिए। उनके साथ कार्य करने वाले लोग यह जानते हैं कि वे परिश्रम की पराकाष्ठा दिखाते हैं। उनके साथ कार्य करके यह अनुभव आया है कि राजनीति केवल भाग्य की नहीं, बल्कि पुरुषार्थ की मांग भी करती है। मैंने महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड और यूपी से लेकर गुजरात के राज्यसभा चुनाव तक उनके साथ कार्य किया है। मैंने देखा है कि पार्टी की प्रतिष्ठा के लिए वे बूथ कार्यकर्ता के साथ जुझारू व्यक्तित्व के तौर पर खड़े दिखाई देते हैं। वे कई बार पार्टी के लोगों से अनुशासन का हिसाब भी मांगते हैंए क्योंकि वे खुद कठोर अनुशासन के अनुपालक हैं। आमतौर पर बहुत छोटी और सामान्य सी लगने वाली बात के पीछे उनका दृष्टिकोण बेहद गहरा और व्यापक होता है। वे मानते हैं कि हमें अपने सार्वजनिक जीवन में ऐसी किसी वस्तु या विषय के प्रति लगाव का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए जो अनावश्यक लाभ लेने की प्रवृति अथवा उपहार संस्कृति को बढ़ावा दे, क्योंकि इससे कार्यकर्ता का नेतृत्व के प्रति भटकाव होता है। इस भटकाव से संगठन एवं देश के हितों की उपेक्षा कर निजी स्वार्थ की प्रवृति को बढ़ावा मिलता है। इस सामान्य से अनुशासन के माध्यम से उन्होंने शुद्ध राजनीतिक मिशन का एक संदेश प्रस्तुत किया है। पार्टी में भी वे पारदर्शिता को लेकर बेहद आग्रही हैं और इसीलिए अपने प्रवास में वे आजीवन सहयोग निधि का जिक्र करते हैं। उनका मानना है कि पार्टी का संचालन शुद्ध कोष व्यवस्था से ही होना चाहिए।
राजनीतिक क्षेत्र में एक बड़ा विषय समाज के हर स्तर पर संवाद स्थापित करने का है। अमित शाह की कार्यशैली कार्यकर्ताओं में प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता के भाव को जागृत करने का कार्य करती है। इसी वजह से तीन वर्ष के कार्यकाल में उनके नाम अनेक उपलब्धियां अर्जित हैं। इन वर्षो में पार्टी 10 करोड़ सदस्यों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी है तो 18 राज्यों में भाजपा एवं सहयोगी दलों की सरकार चलाने का गौरव भी इसी कालखंड में पार्टी को हासिल हुआ है। गौर करने वाली बात यह है कि अमित शाह की दृष्टि से शासन का विस्तार महज शासकीय मानसिकता के साथ नहीं होना चाहिए, बल्कि उसका उद्देश्य लोक कल्याण में सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने का भी होना चाहिए। पार्टी आधुनिकता से संपन्न हो, परंतु विचारों और परंपरागत मूल्यों का ह्रास न होने पाए, यह भी उनके द्वारा कार्यकर्ताओं के बीच अक्सर कहा जाता है। संवाद को स्पष्टता से रखना और अपनी वैचारिक निष्ठा के प्रति खुला दृष्टिकोण रखना उनकी कार्यशैली का हिस्सा है और इसीलिए वे अपनी बात बेहद स्पष्टता से रखते हैं। सामाजिक न्याय, सर्वधर्म समभाव आदि को लेकर भाजपा के खिलाफ जो दुष्प्रचार किया जाता रहा है, उसके तर्कसंगत और तथ्यात्मक जवाब से अमित शाह सदैव लैस रहते हैं। वे कहते हैं कि हमने सिर्फ भाषण नहीं दिए हैं, बल्कि हमने ठोस रूप में इन आदर्शो के प्रति कदम उठाए हैं।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय और डॉ.श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आदर्शो पर जिस जनसंघ की बुनियाद रखी गई थीए भाजपा आज उसी मजबूत बुनियाद पर खड़ी है। पिछले सात दशकों में अनेक नेताओं और कार्यकर्ताओं ने अपने त्याग और बलिदान से भाजपा को देश की राजनीति के द्र में स्थापित किया है। समर्पण भाव और ध्येय के बिना वर्तमान राजनीति में आगे नहीं बढ़ा जा सकताए यह अमित शाह बखूबी जानते हैं और इसीलिए एक कुशल रणनीतिकार, संगठक, अनुभवी प्रशासक और प्रभावी व्यक्तित्व के तौर पर उनकी पहचान होने के बावजूद वे भाजपा मिशन के कार्यकर्ता के रूप में अधिक दिखते हैं। वस्तुत: यही उनकी सबसे बड़ी ताकत है।
एस.पी.मित्तल) (19-08-17)
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