अजमेर के नगर निगम के चुनाव में भाजपा के ज्ञान सारस्वत और कांग्रेस के नौरत गुर्जर को मिल रहा है लोकप्रियता का फायदा। भाजपा के जेके शर्मा और कांग्रेस के निवर्तमान पार्षद समीर शर्मा अपनी लोकप्रियता के दम पर पत्नियों को पार्षद बनाना चाहते हैं। भाजपा के देवेन्द्र सिंह शेखावत, नीरज जैन, अजय वर्मा को करना पड़ रहा है संघर्ष। पत्रकार चंद्रशेखर शर्मा भी चुनावी मैदान में। निगम के उपायुक्त रहे गजेन्द्र रलावता भी कांग्रेस के उम्मीदवार।

अजमेर नगर निगम के 80 वार्डों के चुनावों को लेकर इन दिनों घमासान मचा हुआ है। वार्ड संख्या 29 में भाजपा का खाता खुल गया है। इस वार्ड में भाजपा की हेमलता ने ही नामांकन दाखिल किया, इसलिए निर्विरोध चुनाव हो गया। शेष 79 वार्डों में भाजपा, कांग्रेस, रालोपा और निर्दलीय उम्मीदवार अपना भाग्य आजमा रहे हैं। वार्ड संख्या 4 से भाजपा के ज्ञान सारस्वत और वार्ड संख्या 65 से कांग्रेस के नौरत गुर्जर ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें अपनी लोकप्रियता का फायदा मिल रहा है। हालांकि किस वार्ड से कौन सा उम्मीदवार पार्षद बनेगा यह तो 31 जनवरी को मत गणना के बाद ही पता चलेगा, लेकिन सारस्वत और गुर्जर ऐसे उम्मीदवार हैं, जो अन्य उम्मीदवारों से ज्यादा लोकप्रिय हैं। सारस्वत का कोटड़ा क्षेत्र तथा गुर्जर का सिविल लाइन में खासा प्रभाव है, इसलिए सारस्वत गत तीन बार चुनाव जीत चुके हैं, जबकि सिविल लाइन क्षेत्र की पार्षदी नौरज गुर्जर के परिवार में ही रहती है। ये दोनों नेता अपने अपने क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहते हैं। इन दोनों नेताओं के वार्डों के मतदाताओं को अपने काम के लिए नगर निगम के चक्कर नहीं काटने होते हैं,क्योंकि मतदाताओं के काम घर बैठे हो जाते हैं। खुशी और गम के मौके पर घर के बाहर साफ सफाई से लेकर स्ट्रीट लाइट तक का ध्यान ये पार्षद रखते हैं। ये दोनों नेता जो सक्रियता दिखाते हैं उसका फायदा अब चुनाव में मिल रहा है। सारस्वत की लोकप्रियता का अंदाजा तो पड़ौसी वार्ड 3 की भाजपा उम्मीदवार श्रीमती प्रतिभा पाराशर के प्रचार से लगाया जा सकता है। प्रतिभा ने अपने फ्लैक्सों में पति अरविंद शर्मा और क्षेत्रीय विधायक वासुदेव देवनानी से बड़ा फोटो ज्ञान सारस्वत का लगाया है। प्रतिभा को अपनी ही पार्टी की बागी उम्मीदवार श्रीमती संध्या काबरा से ज्यादा खतरा है, इसलिए ज्ञान सारस्वत के फोटो का इस्तेमाल किया जा रहा है। यानि सारस्वत की लोकप्रियता दूसरे वार्डों में भी है। पार्षद की जो भूमिका होनी चाहिए, वह सही मायने में सारस्वत और नौरत गुर्जर की है। भाजपा के निवर्तमान पार्षद जेके शर्मा की पत्नी श्रीमती डिम्पल शर्मा वार्ड संख्या 60 तथा कांग्रेस के पार्षद समीर शर्मा की पत्नी श्रीमती शिवांगी शर्मा वार्ड संख्या 56 से उम्मीदवार हैं। चूंकि इन दोनों नेताओं के वार्ड महिलाओं के लिए आरक्षित हो गए, इसलिए दोनों ने अपनी अपनी पत्नी को उम्मीदवार बनवा दिया। पार्षद रहते हुए इन दोनों की जो लोकप्रियता रही, उसी का फायदा अब पत्नियों के लिए उठाया जा रहा है। दोनों नेताओं के अपनी अपनी पार्टी में जो राजनीतिक कद है उसमें पत्नी के लिए टिकिट लाना मुश्किल नहीं रहा। इसमें कोई दो राय नहीं कि इन दोनों नेताओं की छवि साफ सुथरी रही है। वार्ड 5 से भाजपा के उम्मीदवार अजय वर्मा, वार्ड 38 से देवेन्द्र सिंह शेखावत तथा वार्ड 66 से नीरज जैन भाजपा के बड़े नेता है। जैन तो युवा मोर्चे के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं तथा मौजूदा समय में भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता हैं। लेकिन वार्ड बदलने के कारण जैन को दोबारा से पार्षद बनने के लिए जोर लगाना पड़ रहा है। देवेन्द्र सिंह शेखावत भी प्रदेश यूथ बोर्ड के सदस्य रह चुके हैं। इसी प्रकार अजय वर्मा पूर्व में पार्षद रहे हैं और गत भाजपा के शासन में अजमेर के लोक अभियोजक भी रहे। हालांकि वर्मा का कद पार्षद से बड़ा है, लेकिन राजनीति में अपने वजूद को कायम रखने के लिए पार्षद बनना चाहते हैं। वर्मा का कांग्रेस उम्मीदवार श्रीमती प्रेमकंवर जोधा से संघर्ष है। जोधा के पति महेन्द्र सिंह पूर्व में इसी क्षेत्र से पार्षद रहे हैं। वर्मा को अपनी ही पार्टी के बागी और निवर्तमान पार्षद राजेन्द्र पंवर से भी जुझना पड़ रहा है। न्यूज चैनल आज तक के अजमेर के संवाददाता और एक प्रादेशिक अखबार के रिपोर्टर चन्द्रशेखर शर्मा भी भाजपा उम्मीदवार के तौर पर वार्ड संख्या 58 से अपना भाग्य आजमा रहे हैं। शर्मा का कांग्रेस के मनीष सेठी और 8 निर्दलीयों से मुकाबला है, लेकिन शर्मा ने अपनी मिलन सारिता की वजह से पूरे वार्ड में अपनी लोकप्रियता बना रखी है। पत्रकारों का एक दल भी शर्मा के प्रचार में जुटा हुआ है। पाल बीसला क्षेत्र को जब नो कन्ट्रेक्शन जोन घोषित किया गया, तब लोगों के घरों को बचाने के संघर्ष में शर्मा भी शामिल रहे। वार्ड संख्या 72 से गजेन्द्र सिंह रलावता कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर अपना भाग्य आजमा रहे हैं। रलावता गत तीस नवम्बर को ही नगर निगम के उपायुक्त से सेवानिवृत्त हुए हैं। हालांकि रलावता को अनुबंध पर उपायुक्त पद पर पुनर्नियुक्ति मिल गई थी, लेकिन एक मंत्री की शिकायत पर रलावता को उपायुक्त पद से हटा दिया गया। रलावता अब पार्षद निर्वाचित होकर पुन: नगर निगम में पहुँचना चाहते हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता महेन्द्र सिंह रलावता के छोटे भाई गजेन्द्र सिंह रलावता को निगम के काम काज का लम्बा अनुभव रहा है। रलावता का मुकाबला भाजपा के गोपाल शर्मा से है। उपायुक्त के पद पर रहते हुए रलावता भाजपा पार्षदों के पसंदीदा अधिकारी भी रहे। मेयर धर्मेन्द्र गहलोत ने तो रलावता को कई बार आयुक्त का चार्ज भी दिलवा दिया।
S.P.MITTAL BLOGGER (20-01-2021)
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