तो आखिर इतने दबाव में क्यों आती है वसुंधरा सरकार? पीएम की उदयपुर यात्रा से पहले ही कर्मचारियों के सामने झुक गई सरकार।
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पिछले एक माह में यह दूसरा मौका है जब राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली सरकार को दबाव में झुकना पड़ा है। प्रदेश के मंत्रालयिक कर्मचारी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर पिछले 20 दिनों से हड़ताल पर थे। सरकार ने साफ यह कह दिया था कि मांगे नाजायज है और सरकार कर्मचारियों के दबाव में नहीं आएगी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 29 अगस्त के उदयपुर दौरे के दौरान जब हड़ताली कर्मचारियों ने हंगामा करने की धमकी दी तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने सबसे विश्वास पात्र मंत्री राजेन्द्र सिंह राठौड़ को कर्मचारियों के साथ वार्ता करने के लिए कहा। 27 अगस्त को रविवार का अवकाश होने के बाद भी राठौड़ ने हड़ताली कर्मचारियों के नेताओं से वार्ता की और शाम होते-होते अधिकांश मांगों को स्वीकार कर लिया। यानि जो सरकार कर्मचारियों की मांगों को नाजायज बता रही थी, उसी सरकार ने कर्मचारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। सवाल उठता है कि आखिर राजस्थान की वसुंधरा सरकार इतने दबाव में क्यों आती है? क्या सरकार में इतना आत्मबल नहीं है कि वह कर्मचारियों की हड़ताल का मुकाबला कर सके? जब मांगे नाजायज थी तो फिर प्रधानमंत्री को भी पहले ही बता देना चाहिए था। क्या प्रधानमंत्री के सामने किसी विवाद से सरकार इतना डरती है? सवाल यह भी है कि हड़ताल की वजह से पिछले 20 दिनों से आम जनता को परेशानी हुई उसका क्या? यानि जनता की परेशानी कोई मायने नहीं रखती और प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले नाजायज मांगों को भी मान लिया जाता है।
अमितशाह का भी था दबावः
कुख्यात अपराधी आंनदपाल के एनकाउंटर की जांच सीबीआई से कराने की मांग को भी वसुंधरा सरकार ने ठुकरा दिया था। आनंदपाल की लाश कई दिनों तक पड़ी रही और राजपूत समाज आंदोलन करता रहा। लेकिन वसुंधरा सरकार ने किसी की भी परवाह नहीं की, लेकिन जब 21 जुलाई को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह का तीन दिवसीय दौरा निकट आया तो दो दिन पहले राजपूत समाज के प्रतिनिधियों से वार्ता की और एनकाउंटर की जांच सीबीआई ्रसे कराने की मांग मान ली गई। असल में राजपूत समाज ने भी ऐलान किया था कि जब अमितशाह जयपुर में होंगे तब सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया जाएगा। सरकार नहीं चाहती थी कि अमितशाह के सामने हंगामा हो इसके कारण सरकार को न चाहते हुए भी झुकना पड़ा। जाहिर है कि वसुंधरा सरकार सिर्फ दबाव की भाषा समझती है।
एस.पी.मित्तल) (28-08-17)
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