भारत में मायने रखता है प्रधानमंत्री मोदी म्मांयार में बाहदुर शाम जफर की मजार पर सजदा करना। ======

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नरेन्द्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बने हुए तीन वर्ष से भी ज्यादा का समय हो गया। लेकिन मोदी ने देश में किसी भी सूफी संत की दरगाह में जाकर जियारत नहीं की। अजमेर स्थित विश्व विख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह से जुड़े अनेक खादिम दिल्ली जा कर प्रधानमंत्री को जियारत का दावातनाम तक दे आए। लेकिन मोदी ने अभी तक भी किसी दरगाह का जियारत का दावातनामा कबूल नहीं किया है। ऐसे माहौल में म्यांमार की यात्रा के दौरान मोदी का भारत के अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की मजार पर जाना मायने रखता है। सब जानते हैं कि अंग्रेजों ने बहादुर शाह जफर को देश निकाल दे दिया था, तब जफर ने रंगून अब म्यांमार में शरण ली थी, बाद में जफर का इंतकाल रंगून में ही हो गया। हालांकि बहादुर शाह जफर कोई सूफी संत या धर्म गुरु नहीं थे। लेकिन फिर भी उनकी छवि भारत में उदारवादी मानी जाती है। इतिहासकारों के अनुसार बादशाह बनते ही जफर ने गौ हत्या पर रोक लगाई थी। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर रहे। वे उर्दू के शायर भी थे। उनकी शायरी में हिन्दू-मुस्लिम एकता की झलक भी मिलती है। अब देखना है कि बहादुर शाह जफर की मजार पर जाने के बाद भारत में प्रधानमंत्री को लेकर क्या प्रतिक्रिया आती हैं। अलबत्ता अपनी म्यांमार यात्रा में मोदी ने रोहिंया मुसलमानों की घुसपैठ का मुद्दा उठाया है। म्यांमार से चालीस हजार से भी ज्यादा रोहिंया मुसलमान भारत में शरण लिए हुए हैं। हालांकि अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, लेकिन भारत शुरू से ही रोहिंया मुसलमानों की मौजूदगी में का विरोध करता रहा है। म्यांमार में आपराधिक घटनाओं में भी इसी समुदाय के कुछ लोगों की भूमिका है।
एस.पी.मित्तल) (06-09-17)
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