आखिर भाजपा में रासासिंह रावत की उपेक्षा क्यों की जा रही है ? 18 साल संसद में बैठने की वजह से कान तक खराब हो गए।
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नरेन्द्र मोदी और अमित शाह तथा राजस्थान में वसुन्धरा राजे के नियंत्रण वाली भाजपा में ऐसे अनेक नेता हैं जो एक या दो बार सांसद रहे, लेकिन आज वे किसी प्रांत के राज्यपाल हैं अथवा अन्य किसी सरकारी पद पर बैठे हुए सत्ता का सुख प्राप्त कर रहे हैं। लेकिन अजमेर से पांच बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले 77 वर्षीय रासासिंह रावत आज किसी मंत्री अथवा मुख्यमंत्री के आने पर लाइन में माला लेकर खड़े नजर आते हंै। रावत ने 6 बार अजमेर और एक बार भाजपा के टिकट पर राजसमंद से चुनाव लड़ा और पांच बार विजयी हुए। पांच बार चुने जाने की वजह से ही रावत ने करीब 18 साल अजमेर का लोकसभा में प्रतिनिधित्व किया। यह रावत का दुर्भाग्य रहा कि जब वे अजमेर से चुनाव जीते तो केन्द्र में कांग्रेस की सरकार बनी, इसलिए कोई बड़ा प्रोजेक्ट तो रावत अजमेर में नहीं ला सके। लेकिन रेल्वे कारखाने का आधुनीकीकरण, ब्राडगेज की लाइन, बीसलपुर का पानी आदि उपलब्धियां रावत के खाते में गनाई जा सकती हैं। वर्तमान में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट जब केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री थे तब अजमेर के सीआरपीएफ के एक ग्रुप सेंटर को दौसा जिले में ले जाना चाहते थे, लेकिन तब रावत ने संसद में पायलट के प्रयासों का पुरजोर विरोध किया। आज दोनों ग्रुप सेंटर अजमेर में चल रहे हैं। अजमेर संभवत देश में एक मात्र शहर होगा, जहां सीआरपीएफ के दो सेंटर संचालित हैं। चूंकि एक सेंटर में हजारों जवान मौजूद रहते हंै, इसलिए इसका असर अजमेर शहर की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। चूंकि रावत शिक्षाविद हैं इसलिए संसद में हर विषय पर बोलने की क्षमता रखते हंै। भाजपा की राजनीति में जब अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आड़वाणी, मुरली मनोहर जोशी का दखल था तब प्रखर वक्ता के तौर पर रावत ही संसद में सत्तापक्ष को जवाब देते थे। रावत की संसद में कितनी प्रभावी भूमिका रही इस बात को आडवाणी और जोशी जैसे नेता अच्छी तरह जानते हैं, लेकिन भाजपा में अब दोनों ही नेताओं का कोई वजूद नहीं है, इसलिए पांच बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले रासासिंह रावत मंत्रियों के स्वागत के लिए माला लेकर खड़े हुए हैं।
कान भी हो गए खराब:
संसद में रावत की सौ प्रतिशत उपस्थिति रही है। चूंकि पूरे समय रावत संसद में सक्रिय रहते थे इसलिए अपने कान पर ईयर फोन लगा कर रखते थे। ईयरफोन के लगातार लगे रहने से रावत की सुनने की क्षमता भी आज कम हो गई है। यही वजह है कि उन्हें दोनों कानों में सुनने की मशीन लगाकर रखनी पड़ती है, लेकिन उनकी कार्यक्षमता पर कोई असर नहीं है। स्वास्थ्य खराब होने के बाद भी कल्याण सिंह राजस्थान के राज्यपाल बने हुए है तो रासासिंह तो अभी फर्राटा दौड़ में भाग ले सकते हैं। जो लोग इस समय भाजपा के कर्णधार बने हुए है वे माने या नहीं, लेकिन रासासिंह रावत ने राजस्थान में विपरीत परिस्थितियों में अजमेर से भाजपा का झंडा बुलंद रखा था। बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि 1977 में जब पहली बार रावत ने चुनाव लड़ा तब जन्म लेने वाले भाजपा के आज के नेता भी रावत की राजनीतिक यात्रा को नहीं देख रहे हंै। राजस्थान भाजपा में रावत अकेले ऐसे नेता हैं जो पांच बार सांसद रह चुके हैं।
उपचुनाव में दावेदार:
अजमेर संसदीय क्षेत्र में इसी वर्ष लोकसभा के उपचुनाव होने हैं। रावत ने एक बार फिर पुरजोर तरीके से अपनी दावेदारी प्रस्तुत की है। सीएम वसुंधरा राजे ने अजमेर जिले के सातों विधानसभा क्षेत्रों में जनसंवाद किया। सातों जगह रावत ने सीएम को गुलदस्ता भेंट किया। नसीराबाद के अंतिम जनसंवाद में तो सीएम को भी कहना पड़ा कि रासासिंह जी आप तो अभी भी जवान हो। यह टिप्पणी सीएम ने रावत की राजनीतिक सक्रियता पर की। रावत अब इस बात से बेहद उत्साहित हैं कि सीएम ने अपनी आफिशियल फेसबुक पर रावत के स्वागत वाला फोटो पोस्ट किया है। रावत का भी मानना है कि यदि सीएम राजे चाहे तो उपचुनाव में भाजपा का उम्मीदवार बनवा सकती हैं। रावत ने अपनी उम्मदवारी के लिए सीएम राजे को 6 पेज का बायोडेटा भी दे दिया है। यदि इस बायोडेटा को कोई नेता पढ़े तो वाकई प्रभावित होगा। उम्र के लिहाज से भले ही रावत को उपचुनाव में उम्मीदवार न बनाया जाए, लेकिन कम से कम गोवा जैसे छोटे प्रांत का राज्यपाल तो बनाया ही जा सकता है। लेकिन रावत का मानना है कि यदि उन्हें उम्मीदवार बनाया जाता है तो वे बड़ी आसानी से उपचुनाव में भाजपा की जीत करवा सकते हैं। ब्यावर विधानसभा क्षेत्र भले ही अजमेर ससंदीय क्षेत्र में न आता हो, लेकिन उनकी जाति के डेढ़ लाख रावत मतदाता आज भी हंै। चूंकि पचास साल के राजनीतिक सफर में आज तक भी उन पर भष्ट्चार का कोई दाग नहीं लगा है, इसलिए सर्व समाज में उनकी इमेज साफ सुथरी है। किसी समय जब टेलिफोन और रसोई गैस कनेंशन संासद कोटे में मिलते थे तब उन्होंने पार्टी के कार्यकत्र्ताओं और आमजनों को यह सुविधा उपलब्ध करवाई। उपचुनाव में अपनी उम्मीदवारी को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मिल चुके हंै और अब उनका प्रयास राष्ट््ीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने का है। विदेशमंत्री श्रीमति सुषमा स्वराज ने भी रावत को अमित शाह से मिलने की सलाह दी।
एस.पी.मित्तल) (20-10-17)
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