महामहिम राष्ट्रपति की यात्रा से जयपुर-अजमेर के बेरोजगार और आम लोग परेशान। क्या रामनाथ कोविंद लोकतंत्र में इस राजशाही को कम नहीं कर सकते?
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महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 13 और 14 मई को राजस्थान के जयपुर और अजमेर के दौरे पर हैं। कोविंद कानपुर के एक गांव के गरीब परिवार के सदस्य हैं। इसलिए उन्हें आम आदमी की परेशानी पता है। कानपुर से लखनऊ तक के सफर में ऐसे कई मौके आए होंगे, जब किसी वीआईपी के आगमन के दौरान जाम हुए मार्गों में कोविंद भी फंसे होंगे। तब कोविंद को संबंंिधत वीआईपी के प्रति कितना गुस्सा आया होगा, इसका भी अहसास है। 13 मई को कोविंद के लिए जयपुर में तब रास्ते जाम किए, जब हजारों बेरोजगार पीटीईटी की परीक्षा देने जा रहे थे। प्रदेशव्यापी इस परीक्षा में साढे़ तीन लाख युवाओं ने आवेदन किया है। उधर, जयपुर में राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए कई घंटों तक रास्ते रोके गए तो इधर अजमेर में 13 मई को ही रिहर्सल किया गया। महामहिम 14 मई को अजमेर आएंगे। पीटीईटी के बेरोजगारों को ही नहीं आम नागरिकों को भी इन दोनों महानगरों में भीषण गर्मी में चैराहों पर खड़ा रहना पड़ा।
लकीर की फकीर पुलिस ने बीमार नागरिकों को भी नहीं जाने दिया। बेचारे परीक्षा देने वाले की तो बिसात ही क्या थी? भले ही अनेक युवा परीक्षा केन्द्र पर देर से पहुंचे या कुछ तो परीक्षा दे ही नहीं सके, इससे महामहिम को कोई मतलब नहीं है। कोविंद को तो यह पता भी नहीं होगा कि 13 मई को राजस्थान में साढ़े तीन लाख युवा परीक्षा दे रहे हैं। यह माना कि राष्ट्रपति के सुरक्षा के कड़े इंतजाम होते हैं, लेकिन कोविंद जैसे महामहिम से यह उम्मीद की जाती है कि उनकी वजह से लोगों को कम से कम परेशानी हो। कोविंद कोई खानदानी महामहिम नहीं है, बल्कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत कानपुर के गरीब परिवार से निकल राष्ट्रपति भवन तक पहुंचे हैं। राष्ट्रपति बनने के मौके पर कोविंद ने कहा था कि मैं उन करोड़ों लोगों का प्रतीक हंू जिनके घर की छत बरसात में टपकती है। कोविंद उन गरीब लोगों को सीमेंट की छत तो नहीं दिलवा सकते , लेकिन अपनी वजह से होने वाली परेशानी से तो बचा ही सकते हैं। कोविंद को पता होना चाहिए कि 14 मई को पुष्कर यात्रा के मद्देनजर पुष्कर को अभी से ही पुलिस छावनी बना दिया गया है। 24 घंटे पहले ही सरोवर के ब्रह्म घाट पर श्रद्धालुओं का प्रवेश बंद कर दिया गया है। इसी प्रकार अजमेर में ख्वाजा साहब की दरगाह में सुरक्षित जियारत के लिए 14 मई की सुबह ही सम्पूर्ण दरगाह परिसर को खाली करवा लिया जाएगा। यानि आम जायरीन जियारत नहीं कर सकेगा। जो जायरीन जियारत के लिए बाहर से आए हैं उनकी पीड़ा का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब कोविंद यह दावा करते हैं कि वे आम आदमी के प्रतीक हैं तो फिर वैसे दिखने भी चाहिए। फिलहाल तो कोविंद राजा-महाराजाओं और अंग्रेजी शासन के प्रिंस से भी ज्यादा की सुविधा भोग रहे हैं।