कितना जरूरी था कश्मीर में सीज फायर?
जवानों की शाहदत पर आतंकियों को खुश करने की यह कौन सी नीति है?
आॅपरेशन आॅल आउट शुरू हुआ तो पहले ही दिन दो आतंकी ढेर।
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18 जून को थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत ने जम्मू कश्मीर पहुंच कर सेना के शहीद जवान औरंगजेब के परिजन से मुलाकात की और उन्हें भरोसा दिलाया कि औरंगजेब के हत्यारों को बख्शा नहीं जाएगा। वहीं 18 जून से ही सेना का आॅपरेशन आॅल आउट शुरू होते ही दो आतंकी ढेर हो गए हैं। सरकार के एक फैसले के बाद सुरक्षा बलों ने रजमान माह में सर्च आॅपरेशन रोक दिया था। ऐसे सीजफायर को रोकने की मांग सीएम महबूबा मुफ्ती ने की थी। सब जानते हैं कि हमारे जवानों के हाथ बंध जाने से रमजान माह में अनेक शाहदत हो गई। इन्ही में जवान औरंगजेब और पत्रकार शुजात बुखारी भी शामिल है। सवाल उठता है कि आतंकियों और अलगाववादियों के कब्जे वाले कश्मीर में सीजफायर कितना जरूरी था? दिल्ली में बैठे हुक्मरानों ने तो आतंकियों और अलगाववादियों को खुश करने के लिए एक तरफा सीजफायर की घोषणा कर दी, लेकिन उन परिजन से दर्द पूछा जाए जिनका बेटा, पिता, भाई और पति रजमान माह में शहीद हो गए।
कौन समझेगा, शहीदों के परिजन की पीड़ा कोः
पाकिस्तान में बैठा हाफिज सईद तो खुश हो रहा है कि एक तरफा सीजफायर करवा कर भारतीय सुरक्षा बलों के अनेक जवानों की हत्या कर दी गई। क्या हमारे हुक्मरान हाफिज सईद की खुशी और शहीदों के परिजन के दर्द को समझेंगे। महबूबा ने जिस उद्देश्य से रमजान में सीजफायर करवाया वह पूरी तरह फैल हो गया। अब महबूबा ही बताए कि कश्मीर में शांति के लिए किससे बात की जाए? हुक्मरानों ने कश्मीर में सुरक्षा बलों को एक माह पीछे नहीं ढकेला है, बल्कि एक वर्ष पीछे कर दिया है। रममान माह में आतंकियों ने घाटी में अपने पैर और मजबूत किए हैं। सुरक्षा बलों को अब कड़ी मशक्कत करनी पड़ेगी। अच्छा हो कि महबूबा भी अपनी सोच में बदलाव लाएं। महबूबा अक्सर अलगाववादियों के साथ ही खड़ी नजर आती हैं। सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने वालों का समर्थन करती है। महबूबा ने रमजान माह में देख लिया कि पाकिस्तान के इशारे पर कश्मीर के हालात कैसे बिगाड़े जा रहे है। अच्छा हो कि महबूबा केन्द्र सरकार से मिल कर आॅपरेशन आॅल आउट को सफल बनाने में सहयोग करें। जो लोग कश्मीर की आजादी की मांग कर रहे हैं वे पहले पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के हालात देख लें।