इधर जुम्मे की नमाज उधर ख्वाजा साहब की दरगाह के बाहर शव की बेकदरी।

इधर जुम्मे की नमाज उधर ख्वाजा साहब की दरगाह के बाहर शव की बेकदरी। कहां चली गई दरगाह कमेटी और पुलिस।

इसे अफसोसनाक ही कहा जाएगा कि 6 जुलाई को जब अजमेर स्थित विश्वविख्यात सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के अंदर जुम्मे की नमाज हो रही थी, तब दरगाह के बाहर एक लावारिस शव को घसीटा जा रहा था। गंभीर बात यह थी कि तीन बच्चे शव को घसीट कर पुलिस थाने में ले जा रहे थे। लेकिन किसी ने भी इन बच्चों की मदद नहीं की। असल में दरगाह के लंगर खाना गली स्थित बाबूल गेट के बाहर पिछले कई दिनों से एक बुजुुर्ग रह रहा था। 6 जुलाई को सुबह इस बुजुर्ग की मृत्यु हो गई। आसपास के दुकानदारों ने तीन बच्चों को प्रोत्साहित कर शव को पुलिस स्टेशन ले जाने के लिए कहा। हालांकि बच्चों की उम्र इतनी नहीं थी कि वे शव को उठाकर ले जाते। बच्चे शव को घसीटते हुए आधा किलोमटीर दूर मोती कटला स्थित दरगाह पुलिस स्टेशन तक ले गए। आमतौर पर दरगाह के बाहर बड़ी संख्या में पुलिस जवान मौजूद रहते हैं, लेकिन जब बच्चे शव को घसीट कर ले जा रहे थे, तब किसी भी पुलिसकर्मी ने शव को वाहन में ले जाने की मदद नहीं की। दरगाह के अंदर और आसपास के क्षेत्र में लावारिस शव को दफनाने की जिम्मेदारी दरगाह कमेटी की है। दरगाह कमेटी का स्टाफ भी दरगाह के आसपास पर मौजूद रहता है। वैसे भी दरगाह का बाबूल गेट दरगाह कमेटी के गेस्ट हाउस के सामने है, लेकिन इसके बावजूद भी दरगाह कमेटी के किसी भी स्टाफ ने शव को सम्मान नहीं दिया। इस संबंध में कमेटी के नाजिम आईबी पीरजादा का कहना है कि शव के बारे में दरगाह कमेटी को कोई जानकारी नहीं है। जबकि सीआई विजेन्द्र सिंह गिल का कहना है कि 6 जुलाई को शव थाने के बाहर लावारिस अवस्था में मिला। जिसे अब पहचान के लिए मुर्दाघर में रवाना दिया गया है। नाजिम और सीआई का कहना है कि यदि शव के बारे में दी जाती तो वे सम्मानपूर्वक किसी वाहन में शव को ले जाते। इस मामले में जहां दरगाह कमेटी और संबंधित पुलिस की जवाब देही बनती है, वहीं आमलोगों की संवेदनहीनता भी नजर आती है। सवाल उठता है कि क्या लंगर खाना गली से मोती कटला स्थित पुलिस स्टेशन तक के मार्ग में किसी भी व्यक्ति की संवेदना नहीं जागी? दरगाह के बाहर बड़ी संख्या में खादिम समुदाय के लोग भी खड़े रहते हैं।

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