घर का पूत कंवारां डोले, पड़ौसियां रां फेरां। यह कहावत चरितार्थ हो रही है राजस्थान की ग्राइंडिंग यूनिटों पर। फेल्सपार की निकासी पर रोक क्यों नहीं लगाती वसुंधरा सरकार।
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राजस्थान में ग्राइंडिंग यूनिटें बंद होने के कगार पर हैं। यूनिटों के मालिक बिजली का बिल भी चुकाने की स्थिति में नहीं है। इससे हजारों श्रमिकों के सामने रोजगार की समस्या उठ खड़ी हुई है। ग्राइंडिंग यूनिटों के श्रमिकों के नुकसान के साथ राज्य सरकार को भी करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है। राजस्थान मिनरल उद्योग संघ के प्रदेश संयोजक सुरेन्द्र सिंह राजपुरोहित ने बताया कि टाइल्स आदि बनाने के काम आने वाला फेल्सपार खनिज पूरे देश में सबसे ज्यादा राजस्थान में निकलता है। देश का कोई 60 प्रतिशत फेल्सपार राजस्थान में ही निकलता है। लेकिन राज्य सरकार ने इस खनिज से जुड़े उद्योगों को कभी भी संरक्षण नहीं दिया, जबकि पड़ौसी राज्य गुजरात में सरकार ने टाइल्स बनाने वाली फैक्ट्रियों को अनेक रियायतें दी। आज हालात यह है कि गुजरात तथा अन्य प्रदेशों की टाइल्स निर्माता कंपनियां राजस्थान के खान मालिकों से सीधे ही फेल्सपार, चिप्स आदि खनिज पदार्थ खरीद रही हैं, इससे राजस्थान की ग्राइंडिंग यूनिटें बंद हो रही है। सरकार से कई बार आग्रह किया है कि फेल्सपार, लाम्स, चिप्स आदि खनिज की निकासी पर रोक लगाई जाए, ताकि प्रदेश के लघु उद्योग पनप सकें। साथ ही इन खनिजों पर आधारित लघु उद्योगों को सरकारी सुविधाएं दी जाएं। आज राजस्थान के खनिज से गुजरात के उद्यमी मालामाल हो रहे हैं और हमारे उद्यमी भूखों मरने की स्थिति में हैं। यदि इन खनिजों की निकासी पर रोक लग जाए तो हजारों श्रमिकों को रोजगार भी मिलेगा। चूंकि गुजरात के उद्यमी सीधे ही खान मालिकों से खनिज ले रहे हैं, इसलिए ग्राइंडिंग यूनिटों में पाउडर बनाने का कार्य भी बंद हो गया है। सरकार के राजस्व में कटौती का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि पहले ब्यावर क्षेत्र से प्रतिदिन 17 लाख रुपए मिलते थे, लेकिन अब मात्र 6 लाख रुपए का ही राजस्व मिलता है। निकासी पर रोक लगाने के लिए सीएम वसुंधरा राजे का भी ध्यान आकर्षित किया गया है, लेकिन अभी तक भी आदेश जारी नहीं हुए हैं। इससे प्रदेशभर की ग्राइंडिंग यूनिटों और लघु उद्यमियों में भारी रोष है। अनेक औद्योगिक क्षेत्रों में तो श्रमिक अशांति होने की भी आशंका है।