चार दिनों तक रोडवेज की पांच बसों के चक्का जाम का जिम्मेदार कौन? हाईकोर्ट के आदेश से बसें मुक्त।
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राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश से अजमेर स्थित अजयमेरु डिपो की रोडवेज की पांच बसों को 16 अगस्त की रात को ही सीज मुक्त कर दिया गया है। यह सारी कार्यवाही कलेक्टर के निर्देश पर हुई। रोडवेज की इन बसों को 13 अगस्त को श्रम न्यायालय के आदेश से सीज किया गया था। श्रम न्यायालय को आदेश था कि रोडवेज से सेवा निवृत्त 8 कर्मचारियों की बकाया राशि का भुगतान इन बसों को बेचकर किया जाए। किसी लोकतांत्रिक सरकार के लिए यह अच्छी बात नहीं है कि सार्वजनिक सम्पत्ति को इस तरह नीलाम हो। वैसे तो श्रम न्यायालय के आदेश की नौबत नहीं आनी चाहिए, क्योंकि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को बकाया भुगतान तत्काल मिलना चाहिए। लेकिन यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि चार दिनों तक रोडवेज की पांच बसों के चक्के जाम का जिम्मेदार कौन है? बसें नहीं चलने से रोडवेज को हजारों रुपए का घाटा हुआ है। ऐसा नहीं कि रोडवेज कर्मियों का बकाया अजमेर में ही है। ऐसी बकाया राशि राजस्थान भर में है। लेकिन हाईकोर्ट ने पूर्व में भी आदेश दे रखा है कि रोडवेज प्रशासन सेवा निवृत्ति की वरिष्ठता के आधार पर बकाया राशि का भुगतान करे। यानि जो कर्मचारी पहले रिटायर हुआ है उसे पहले भुगतान किया जावे। इसी आधार पर 16 अगस्त को हाईकोर्ट ने अजमेरु डिपो की बसों को सीज मुक्त करने के आदेश दिए। अब ये बसें फिर से सड़कों पर दौडने लगी है। सरकार को चाहिए कि वह रोडवेज के सेवानिवृत्त कर्मचारियों की पीड़ा को समझे। प्रत्येक कर्मचारी सेवानिवृत्त पर अनेक सपने संजोता है। मकान खरीदने से लेकर बच्चों की शादी ब्याह तक की योजना बनाई जाती है। ऐसे में यदि कर्मचारी को अपने हक का पैसा नहीं मिले तो यह दुःखद है। अब हाईकोर्ट ने भी कह दिया कि वरिष्ठता के आधार पर भुगतान किया जाए। ऐसे में बेचारा रिटायर कर्मचारी कहां जाए? रोडवेज घाटे में इसकी जिम्मेदारी भी सरकार की ही है। क्योंकि सरकार की नीतियों से रोडवेज की बसों का संचालन होता है। अब जब अनुबंध पर प्राइवेट बसों को भी लगाया जा रहा है, तब तो हालात सुधरने चाहिए।