तो अब जस्टिस रंजन गोगई के सामने होगी मास्टर आॅफ रोस्टर की चुनौती।
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2 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के पद से रिटायर हो रहे जस्टिस दीपक मिश्रा ने उत्तराधिकारी के तौर पर जस्टिस रंजन गोगई की सिफारिश की है। उम्मीद है कि केन्द्र सरकार भी जस्टिस मिश्रा की इस सिफारिश मंजूर कर लेगी। यानि 2-3 अक्टूबर को जस्टिस गोगई देश के चीफ जस्टिस की शपथ ले लेंगे। ये जस्टिस गोगई वो ही है जिन्होंने 12 जनवरी 2018 को चार अन्य न्यायाधीशों के साथ दिल्ली में जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ प्रेस काॅन्फ्रंेस की थी। पूरे देश ने देखा कि इन पांचों न्यायाधीशों ने मास्टर आॅफ रोस्टर को लेकर चीफ जस्टिस पर गंभीर आरोप लगाए। तब यह भी कहा गया था कि मास्टर आॅफ रोस्टर का मतलब चीफ जस्टिस को कोई विशेषाधिकार नहीं है। महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई का निर्णय चीफ जस्टिस को वरिष्ठ न्यायाधीशों के समूह की राय से करना चाहिए। तब यह भी कहा गया कि चीफ जस्टिस मिश्रा अपनी मर्जी से मुकदमों की सुनवाई का निर्धारण करते हैं और कई मौकों पर सुनवाई करने वाले जज को भी बदल देते हैं। यहां तक कि मुकदमों का ट्रांसफर भी सुनवाई के दौरान ही कर दिया जाता है। इसके बाद ही कांग्रेस ने भी चीफ जस्टिस मिश्रा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यहां तक कि राज्य सभा में महाभियोग चलाने के लिए सभापति वेंकेया नायडू को प्रस्ताव तक दिया गया। हालांकि जस्टिस मिश्रा ने चीफ जस्टिस के पद पर रहते हुए मास्टर आॅफ रोस्टर के सिद्धांत का उपयोग अपने विशेषाधिकार से ही किया। जस्टिस मिश्रा का मानना रहा कि चीफ जस्टिस को पूरा अधिकार है कि वे किस मुकदमे की सुनवाई किस पीठ में करवावे। लेकिन अब जस्टिस गोगई ही चीफ जस्टिस बनने जा रहे हैं। देखना होगा कि 12 जनवरी को जस्टिस गोगई ने मास्टर आफ रोस्टर का जो मुद्दा उठाया था उस पर क्या निर्णय लेते हैं। क्या जस्टिस गोगई वरिष्ठ न्यायाधीशों का समूह बनाकर मुकदमों की सुनवाई निर्धारित करेंगे?