अजमेर में कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए सबक हंै छात्र संघ के चुनाव परिणाम। मुगालते में न रहे नेता।
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11 सितम्बर को अजमेर जिले में काॅलेजों के छात्र संघों के जो चुनाव परिणाम आए हैं वे भाजपा और कांग्रेस के लिए सबक हैं। नवम्बर में होने वाले विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों का चयन सही प्रकार से नहीं हुआ तो दोनों ही दलों को खामियाजा उठाना पड़ेगा। इस बात के संकेत छात्रसंघ चुनाव में युवा मतदाताओं ने दे दिए हैं। हाल ही में लोकसभा उपचुनाव में जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में जीत से उत्साहित कांग्रेस को युवा मतदाताओं ने करारा झटका दिया है। जिलेभर में संस्कृत काॅलेज को छोड़कर कांगे्रस समर्थित एनएसयूआई का पैनल भी नहीं जीता है। सांसद रघु शर्मा के गृह क्षेत्र केकड़ी के काॅलेज में अध्यक्ष पद पर एनएसयूआई का उम्मीदवार जीता है, लेकिन शेष तीनों महत्वपूर्ण पदों पर विद्यार्थी परिषद को सफलता मिली है। इससे कांग्रेस को जिले भर में युवा मतदाताओं के बीच अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। असल में कांग्रेस के नेताओं को यह भ्रम हो गया था कि जिस प्रकार लोकसभा के चुनाव में जीत मिली, उसी प्रकार छात्रसंघ के चुनाव में हमारे उम्मीदवारों को सफलता मिल जाएगी, भले ही टिकिट किसी को भी मिले। लेकिन युवा मतदाताओं ने कांग्रेस के इस भ्रम को तोड़ दिया। यदि विधानसभा के चुनाव में उम्मीदवारों का चयन सही नहीं हुआ तो कांग्रेस को खामियाजा उठाना पड़ेगा। यह माना कि अधिकांश काॅलेजों में विद्यार्थी परिषद के उम्मीदवार जीते हैं, लेकिन अजमेर के गल्र्स काॅलेज में निर्दलीय उम्मीदवारों की जीत ने दर्शा दिया है कि जीत में उम्मीदवार का चयन कितना मायने रखता है। गल्र्स काॅलेज और किशनगढ़ काॅलेज के विजयी उम्मीदवार विद्यार्थी परिषद से जुड़े रहे और टिकिट की मांग भी की, लेकिन राजनीतिक दखलंदाजी के चलते इन्हें विद्यार्थी परिषद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया। जाहिर है कि भाजपा में टिकिट मनमाने तरीके से दिए गए। अजमेर के सम्राट पृथ्वीराज चैहान राजकीय महाविद्यालय में अध्यक्ष पद निर्दलीय अब्दुल फरहान की जीत एनएसयूआई के साथ-साथ विद्यार्थी परिषद के लिए भी झटका है। एनएसयूआई में बगावत के बाद भी विद्यार्थी परिषद अपने उम्मीदवार को नहीं जीतवा सकी, इससे परिषद को युवाओं के बीच अपनी स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए। भाजपा सरकार का बार-बार दावा है कि आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों को अनेक सुविधा दी जा रही है, लेकिन 8 हजार विद्यार्थियों वाले काॅलेज में हार से प्रतीत हो रहा है कि ऐसे योजनाआंे का युवा मतदाताओं पर कोई असर नहीं है।