बहुत मायने रखता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीनों सेनाओं के कमांडरों की काॅन्फ्रेंस को संबोधित करना।

बहुत मायने रखता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीनों सेनाओं के कमांडरों की काॅन्फ्रेंस को संबोधित करना। सैन्य इतिहास में हो सकता है बड़ा बदलाव।
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मैं कोई रक्षा विशेषज्ञ नहीं हंूं और न ही मैंने कभी सेना में काम किया है, लेकिन पत्रकारिता के चालीस वर्ष के अनुभव में मुझे पहली बार पता चला कि देश के प्रधानमंत्री हमारी सेना के तीनों अंगों के चीफ और प्रमुख क्षेत्रों के कमांडरों की संयुक्त काॅन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे हैं। हो सकता है कि आजाद भारत में किसी मौके पर ऐसा पहले भी हुआ हो, लेकिन यह तो पहली ही बार है कि ऐसी काॅन्फ्रेंस दिल्ली से बाहर वायु सेना के किसी प्रमुख स्थान पर हो। 28 सितम्बर को प्रधानमंत्री ने हमारी पश्चिमी सीमा के जोधपुर सैन्य क्षेत्र के वायु सेना के प्रमुख स्टेशन पर जिस काॅन्फ्रेंस को संबोधित किया, उसमें रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के साथ-साथ थल सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत, वायुसेना अध्यक्ष एयर चीफ मार्शल बीएस धनोआ तथा नौ सेना प्रमुख एडमिरल सुनील लाम्बा उपस्थित थे। साथ ही तीनों सेनाओं के 19 आॅपरेशन कमान के कमांडर भी उपस्थित रहे। देश में अभी ऐसी कोई आपात स्थिति नहीं है, जिसमें इतनी बड़ी काॅन्फ्रेंस प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हो, लेकिन आगे के हालातों का अंदाजा लगाते हुए की जा रही इस काॅन्फ्रेंस के बहुत मायने हैं। कहा तो यह गया है कि यह काॅन्फ्रेंस 27-28 सितम्बर 2011 को की गई सर्जिकल स्ट्राइक की दूसरी वर्षगांठ पर हुई है, लेकिन सब जानते है। कि हमारे देश में तीनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर राष्ट्रपति माने जाते हैं। इसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सैन्य राणनीति का हिस्सा ही कहा जाएगा कि जोधपुर की काॅन्फ्रेंस में वे स्वयं उपस्थित रहे हैं। सीमाओं पर देश की सुरक्षा की जिम्मेदारी सेना की ही होतीे है। यदि सेना मजबूत हो तो नरेन्द्र मोदी जैसा प्रधानमंत्री बड़ा फैसला भी कर सकता है।
हालांकि अभी यह तय नहीं है कि तीनों सेनाओं का एक सेनापति बनाया जाए, लेकिन 28 सितम्बर की काॅन्फ्रेंस में यह भी सहमति बनी है कि साबइर, एयर स्पेस आदि के क्षेत्रों में संयुक्त रूप से कार्य किया जाए। इसके लिए तीनों सेनाओं के जवानों की एक सर्विस एजेंसी का गठन हो। हालांकि देश की सुरक्षा के मुद्दे पर तीनों सेनाएं एकजुट हैं, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि तीनों सेनाओं का एक कमांडर होना चाहिए, ताकि रणनीति में एक नजरिया बना रहे। अमरीका और चीन जैसे शक्तिशाली देशों में भी राष्ट्रापति ही सेना के कमांडर इन चीफ होते हैं। हमारे यहां की व्यवस्था प्रधानमंत्री शासन के प्रमुख होते हैं। ऐसे में सेनाध्यक्षों और प्रमुख कमांडरों की काॅन्फ्रेंस में नरेन्द्र मोदी का उपस्थित रहना बहुत मायने रखता है। 28 सितम्बर को मोदी ने न केवल काॅन्फ्रेंस को संबोधित किया, बल्कि दोपहर का भोजन भी अपने कमांडरों के साथ किया। प्रधानमंत्री की इस पहल का सैन्य अधिकारियों ने स्वागत किया। प्रधानमंत्री को भी सेना के काम काज को और नजदीक से समझने का अवसर मिला है। जब एक टेबल पर सब लोग मिलकर भोजन करते हैं तो मित्रवत संबंध भी कायम होते हैं। जानकारों की माने तो 28 सितम्बर को सैन्य अधिकारियों के साथ प्रधानमंत्री ने बेहद ही मित्रतापूर्ण प्रकट किया। आने वाले दिनों में इस काॅन्फ्रेंस के परिणाम देश की जनता के सामने आएंगे।
एस.पी.मित्तल) (28-09-18)
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