चैनलों और अखबारों में कथित संत रामपाल के विज्ञापन कितने उचित? क्या पैसा ही सब कुछ है?
=====
29 अक्टूबर को देश के प्रमुख अखबारों में हरियाणा के कथित संत रामपाल का एक विज्ञापन प्रकाशित हुआ है। इस विज्ञापन में बताया गया कि किन किन चैनलोें पर रामपाल के प्रवचन प्रसारित हो रहे हैं। फोटो में रामपाल को ईश्वर के तौर पर प्रस्तुत किया गया और उन्हें धरती को स्वर्ग बनाने वाला बताया गया। सब जानते है। कि रामपाल हत्याओं के संगीन आरोपों में इस स मय हरियाणा की रोहतक जेल में बंद हैं। विगत दिनों ही अदालत ने रामपाल को दो अलग-अलग मुकदमों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। यानि जो व्यक्ति धरती को स्वर्ग बना रहा है, वह मरते दम तक जेल में रहेगा। रामपाल के अपराध और सजा की कहानी अपनी जगह है, लेकिन जिन अखबारों में विज्ञापन छपे हैं उन्हीं में आए दिन पत्रकारिता को लेकर प्रवचन दिए जाते हैं। यह दावा किया जाता है कि उनका अखबार ही सच्ची और ईमानदार पत्रकारिता करता है। खबर को सच की कसौटी पर खरा उतारने के लिए मापदंड भी निर्धारित किए गए हैं, लेकिन सवाल उठता है कि सजा मिलने के पांच दिन बाद ही हत्यारे रामपाल के विज्ञापन प्रकाशित करना कैसी पत्रकारिता है? क्या पैसा ही सब कुछ है? क्या पैसा देकार अखबारों में कुछ भी छपवाया जा सकता है? और जब अखबार से पैसा कमाना ही एक मात्र उद्देश्य हो तो फिर पत्रकारिता की दुहाई नहीं दी जानी चाहिए। किसी भी पाठक में इतनी हिम्मत नहीं है कि अखबार के मालिक को पैसा कमाने से रोक सके। जो लोग अखबार प्रबंधन को जानते हैं, उन्हें पता है कि अखबार अब जिला स्तर पर निकलने लगे हैं और सम्पादक के साथ-साथ मैनेजर की भी नियुक्ति होती है। मैनेजर का काम ही अखबार की आड़ में पैसा कमाना होता है। जो सम्पादक ईमानदारी से पत्रकारिता करने का प्रयास करता है। उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। मोटी तनख्वाह के लालच में सम्पादक भी वो ही करता है जो मैनेजर कहता है। अखबार में मैनेजरों को रख कर वसूली करने वाले अखबार के मालिक जब अग्रलेख लिखकर पत्रकारिता की दुहाई देते हैं तो पाठकों को हंसी आती है। लेकिन मालिक को लगता है कि वह पाठक को बेवकूफ बना रहा है। पाठक भी अब अखबार को एक उत्पाद समझ कर ही खरीदता है। पाठक को भी पता है कि अखबार में क्या हो रहा है।