क्या रलावता और हेमंत भाटी अजमेर शहर में देवनानी और भदेल को रिकाॅर्ड बनाने से रोक पाएंगे?

क्या रलावता और हेमंत भाटी अजमेर शहर में देवनानी और भदेल को रिकाॅर्ड बनाने से रोक पाएंगे? मसूदा में पलाड़ा की जीत कय्यूम के वोटों पर निर्भर।
=======
7 दिसम्बर को होने वाले विधानसभा चुनाव में अजमेर शहर के उत्तर क्षेत्र के भाजपा उम्मीदवार वासुदेव देवनानी और दक्षिण से श्रीमती अनिता भदेल चुनाव जीतते हैं तो यह अजमेर शहर के इतिहास में एक रिकाॅर्ड बन जाएगा। क्योंकि यह चैथा अवसर होगा, जब यह दोनों विधायक बनेंगे। पुराना रिकाॅर्ड को देखा जाए तो किशन मोटवानी ही एक मात्र ऐसे राजनेता रहे हैंे जो अजमेर से तीन बार विधायक बने। कांगेस ने देवनानी के सामने महेन्द्र सिंह रलावता और भदेल के सामने हेमंत भाटी को उम्मीदवार बनाया है। रलावता पहली बार विधायक का चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि  भाटी 2013 में भी भदेल के सामने कांग्रेस के उम्मीदवार थे। उत्तर क्षेत्र को सिंधी बहुल्य माना जाता है, इसलिए भाजपा ने सिंधी को ही उम्मीदवार बनाती आ रही है। लेकिन कांग्रेस के वर्ष 2008 और 2013 में गैर सिंधी उम्मीदवार के तौर पर डाॅ. श्रीगोपाल बाहेती को उतारा। इसे कांग्रेस की हिम्मत ही कहा जाएगा कि लगाता दो बार हारने के बाद भी गैर सिंधी रलावता को उम्मीदवार बनाया है। अजमेर शहर का दक्षिण क्षेत्र एससी के लिए आरक्षित है तो यह माना जाता है कि उत्तर क्षेत्र सिंधी समुदाय के लिए। हालांकि वर्ष 2008 में डाॅ. बाहेती मात्र 600 मतों से पराजित हुए, अब कांग्रेस के उम्मीदवार रलावता के पास ऐसे तर्क है कि उत्तर क्षेत्र से गैर सिंधी उम्मीदवार आसानी से जीत सकता है। रलावता अपनी जीत का मुख्य आधार मुस्लिम, राजपूत, रावणा राजपूत, गुर्जर और वैश्य समुदाय के मतों को मानते हैं,तो देवनानी सर्वसमाज की बात करते हैं। फिलहाल इस क्षेत्र से सिंधी और गैर सिंधी का मुद्दा उछला नहीं है। लेकिन सात दिसम्बर के आते आते यह मुद्दा गरम होगा। देखना होगा कि रलावता कांग्रेस उम्मीद के तौर पर देवनानी को रिकाॅर्ड बनाने से रोक पाते है या नहीं? रलावता को तीस वर्षों तक शहर कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे। अध्यक्ष बनने पर ही रलावता की नजर उत्तर क्षेत्र पर लगी थी। रलावता के पास बूथ स्तर तक की तैयारी पूर्व में ही रही, जबकि देवनानी इस क्षेत्र से लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं,  ऐसे में उन्हें चुनाव को लेकर अनुभव है। देवनानी ने तीन बार चुनाव लड़ा, वहीं तीन बार लोकसभा के चुनाव में भी अपने क्षेत्र से भाजपा की जाजम बिछाई।
अजमेर दक्षिणः
दक्षिण क्षेत्र की भाजपा उम्मीदवार श्रीमती अनिता भदेल ने विधानसभा का पहला चुनाव 2005 में इसी क्षेत्र से लड़ा था। तब बीड़ी उद्योगपति हेमंत भाटी उनके साथ थे, तब भदेल की जीत से हेमंत भाटी इसलिए खुश थे कि उनके बड़े भाई ललित भाटी कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर चुनाव हार गए। राजनीति में कब क्या हो जाए, कहा नहीं जा सकता। 2013 में हेमंत भाटी कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में भदेल के सामने हो गए। इस बार भदेल ने हेमंत को भी हरा दिया। अब 2018 में भदेल और हेमंत का एक बार फिर आमने सामने हंै। हालांकि गत नगर निगम के चुनावों में भाजपा को इस क्षेत्र के अधिकांश वार्डों में हार का सामना करना पड़ा। जनवरी में हुए लोकसभा के उपचुनाव में भी दक्षिण क्षेत्र की कमान हेमंत भाटी के पास थी, उपचुनाव में भी कांग्रेस को बढ़त मिली। निगम और उपचुनाव की जीत से हेमंत भाटी उत्साहित हैं। भाटी के समर्थकों का दावा है कि इस बार 2013 की हार का बदला ले लिया जाएगा। भदेल और भाटी दोनों ही कोली समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस समुदाय की अधिकांश महिलाएं बीड़ी बनाने का काम करती है। जबकि हेमंत भाटी बीड़ी उद्योगपति हैं। इस नाते महिला श्रमिकों के सामाजिक सरोकारों से भी भाटी जुड़े हुए हैं। पारिवारिक ट्रस्ट के माध्यम से महिला श्रमिकों की मदद बड़े पैमाने पर की जाती है। हालांकि इस क्षेत्र में रैगर समुदाय के लोग भी बड़ी संख्या में रहते हैं। इसके अलावा सिंाध्ी समुदाय की संख्या भी अधिक है भदेल के समर्थकों का मानना है कि उत्तर में देवनानी की उम्मीदवारी की वजह से सिंधी मतदाताओं का लाभ मिलेगा। श्रीमती भदेल ने भी पिछले 15 वर्षों में अपने निवास पर जनसुनवाई कर लोकप्रियता को बनाए रखा है।
पलाड़ा की जीत कय्यूम पर निर्भरः
अजमेर जिले के मसूदा विधानसभा क्षेत्र से भाजपा उम्मीदवार श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा का मुकाबला कांग्रेस के उम्मीदवार राकेश पारीक से हो रहा है। यहां से हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के पूर्व विधायक कय्यूम खान भी मैदान में हैं। कय्यूम खान भाजपा और कांग्रेस के मजबूत उम्मीदवारों के बीच अपनी जीत को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता अहमद पटेल और गुलामनबी आजाद तक को दरकिनार कर दिया। नाम वापसी के लिए अशोक गहलोत, सचिन पायलट के साथ-साथ पटेल और आजाद ने भी कय्यूम से कहा था, लेकिन मतदाताओं की दुहाई देकर कय्यूम ने चुनावी मैदान में बने रहने की बात कही। कय्यूम जीतेंगे या नहीं यह तो 11 दिसम्बर को मतगणना वाले दिन पता चलेगा, लेकिन चुनावी आंकड़े बताते हैं कि कांग्रेस और भाजपा की हार जीत में कय्यूम की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। चूंकि इस विधानसभा क्षेत्र में कोई 40 हजार मुसलमान मतदाता माने जाते हैं, इसलिए भाजपा को लगता है कि कय्यूम खान जितने ज्यादा वोट लेंगे, उतना ही फायदा भाजपा को होगा। कय्यूम की उम्मीदवार कांगे्रस को नुकसान पहुंचाएगी, इसलिए बड़े बड़े नेताओं ने कय्यूम पर दबाव डाला था। कय्यूम इसी क्षेत्र से कांग्रेस के विधायक रह चुके हैं। इसलिए गैर मुस्लिमों से भी कय्यूम के संबंध हैं। पिछले दो वर्षों से कय्यूम विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय रहे, जहां तक भाजपा उम्मीदवार श्रीमती पलाड़ा का सवाल है तो उन्होंने भी अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में मसूदा के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी। ग्राम पंचायत स्तर पर समस्या समाधान शिविर लगा कर ग्रामीणों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान करवाया। सरकारी योजनाओं के अलावा स्वयं के खर्च से हजारों जरुरतमंद ग्रामीणों को कम्बल और आटे के कट्टे वितरित किए। हालांकि कांग्रेस उम्मीदवार राकेश पारीक के लिए मसूदा विधानसभा क्षेत्र नया है। लेकिन समर्थकों का दावा है कि जातीय समीकरण पक्ष में हैं। सेवादल के प्रदेश अध्यक्ष के पद पर रहते हुए पारीक राजनीति में सक्रिय हैं। चूंकि पारीक इसी क्षेत्र के रहने वाले हैं, इसलिए उन्होंने केकड़ी से दावेदारी जताई थी। लेकिन पार्टी ने केकडी से सांसद रघु शर्मा को ही उम्मीदवार बना दिया। इसलिए पारीक को मसूदा से उम्मीदवार बनाया गया। मसूदा में गुर्जर मतदाताओं की संख्या भी अधिक हैं। पारीक के चुनाव प्रचार में अजमेर डेयरी के अध्यक्ष रामचन्द्र च ौधरी भी सक्रिय हैं।
एस.पी.मित्तल) (24-11-18)
नोट: फोटो मेरी वेबसाइट www.spmittal.in
https://play.google.com/store/apps/details? id=com.spmittal
www.facebook.com/SPMittalblog
Blog:- spmittalblogspot.in
M-09829071511 (सिर्फ संवाद के लिए)
=========
Print Friendly, PDF & Email

You may also like...