अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों ने नसीरुद्दीन शाह के लिए सुरक्षा की मांग नहीं की। 

अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल के आयोजकों ने नसीरुद्दीन शाह के लिए सुरक्षा की मांग नहीं की। 
तो फिर कौन हुआ जिम्मेदार?
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अजमेर में लिटरेचर फेस्टिवल के दौरान 21 दिसम्बर को फिल्म अभिनेता नसीरुद्दीन शाह के भाग नहीं लेने का मामला इन दिनों देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। यहां तक की राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत तक को शाह के समर्थन में बयान जारी करना पड़ा है। लेकिन सवाल उठता है कि शाह को फेस्टिवल में आने से रोकने के लिए कौन जिम्मेदार हैं? फेस्टिवल के आयोजकों का कहना है कि भाजपा की युवा शाखा के कार्यकर्ताओं के हंगामे की वजह से शाह को आने से रोक दिया गया। हालांकि फेस्टिवल में भाग लेने के लिए शाह अपनी पत्नी रत्ना पाठक के साथ अजमेर आ गए थे। इस पूरे प्रकरण में अजमेर के सिटी मजिस्ट्रेट अशोक नाथ योगी ने साफ कहा है कि फेस्टिवल के आयोजकों ने नसीरुद्दीन शाह की सुरक्षा के लिए कोई मांग नहीं की। यदि आयोजक प्रशासन से मांग करते तो शाह को सुरक्षा उपलब्ध करवा कर समारोह में लाया जाता। आयोजकों ने हंगामे के बारे में नहीं बताया। नसीरुद्दीन शाह को लिटरेचर फेस्टिवल में नहीं बुलाने का निर्णय आयोजकों का स्वयं का है। इसके लिए प्रशासन दोषी नहीं है। उन्होंने कहा कि शाह को समारोह में कोई खतरा था तो आयोजकों को प्रशासन को बताना चाहिए था। सिटी मजिस्ट्रेट योगी के इस बयान से सवाल उठता है कि शाह के फेस्टिवल में नहीं आने के लिए कौन जिम्मेदार है? यह सही है कि यदि शाह को कोई खतरा था तो फेस्टिवल के आयोजकों को प्रशासन को सूचना देनी चाहिए थी। प्रशासन को सूचना दिए बगैर ही शाह को नहीं बुलाने का निर्णय लेने का मतलब यही है कि फेस्टिवल के आयोजक जो चाह रहे थे वो ही हो रहा था। इस मामले में सीएम अशोक गहलोत ने भी ट्वीट कर कहा है कि अजमेर प्रशासन शाह के कार्यक्रम को शांतिपूर्ण तरीके से करवाने के लिए पूरी तरह तैयार था, लेकिन विरोध के चलते उन्हें आने से रोक दिया गया। सीएम के बयान से भी प्रतीत होता है कि फेस्टिवल के आयोजकों ने प्रशासन से कोई मदद नहीं मांगी। जहां तक भाजयुमो के कार्यकर्ताओं के प्रदर्शन का सवाल तो सभी कार्यकर्ता निहत्थे थे और उनका मसकद सिर्फ शाह के बयान का विरोध करना था। यह विरोध भी शाह के आने से पहले किया गया। विरोध हिंसक नहीं था, इसलिए पुलिस ने शांतिभंग के आरोप में चार कार्यकर्ताओं को चैबीस घंटे बाद गिरफ्तार किया और सिटी मजिस्ट्रेट ने हाथों हाथ जमानत पर रिहा कर दिया। यदि विरोध हिंसक होता तो आरोपियों को रिमांड पर या जेल भेजा जाता। सवाल उठता है कि क्या सिर्फ नारेबाजी और कालेझंडे दिखाने से ही फेस्टिवल के आयोजक डर गए? अच्छा होता कि फेस्टिवल के आयोजक युवामोर्चे के कार्यकर्ताओं के हंगामे पर तत्काल उच्च अधिकारियों को सूचना  देते और मौके पर ही गिरफ्तारी करवा कर शाह से ही अपने फेस्टिवल का उद्घाटन करवाते। लेकिन आयोजक अपने मकसद में कायम रहे, क्योंकि शाह के आए बगैर ही फेस्टिवल की चर्चा देशभर में हो गई।
एस.पी.मित्तल) (23-12-18)
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