तो ममता दीदी ने भी पीएम पद पर दावा ठोक दिया।
अब कांग्रेस को देखना है कि वह विपक्ष के महागठबंधन में कहां खड़ी है। अमितशाह की रैलियां 22 से।
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यूपी की 80 सीटों पर मायावती और अखिलेश यादव के एकतरफा समझौते के ऐलान के बाद 19 जनवरी को कोलकाता में पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी पीएम पद पर अपना दावा ठोक दिया है। कोई 6 लाख लोगों की भीड़ एकत्रित कर ममता दीदी ने 20 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को मंच पर जमा किया। ममता ने यह दिखाने की कोशिश की कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मो दी के खिलाफ विपक्ष का जो महागठबंधन बन रहा है, उसमें वे प्रभावशाली और दमदार नेता है। यदि लोकसभा चुनाव में महागठबंधन में शामिल दलों के सांसदों की संख्या एनडीए से ज्यादा होती है तो वे प्रधानमंत्री की दावेदार होंगी। शायद ममता के इस प्लान की जानकारी राहुल गांधी और मायावती को पहले ही हो गई थी इसलिए दोनों नेता ममता दीदी की महारैली में शामिल नहीं हुए। अब जब ममता दीदी ने भी 20 राजनीतिक दलों को अपने शहर कोलकाता में जमा कर लिया है तो फिर कांग्रेस और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को विपक्ष के महागठबंधन में स्वयं की स्थिति देखनी होगी। हलाांकि छत्तसीगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में जीत दर्ज कर राहुल गांधी ने अपनी स्थिति को मजबूत किया, लेकिन कोलकाता में हुई ममता दीदी की रैली बताती है कि विपक्ष के बुजुर्ग नेता राहुल गांधी को अपना नेता मानने को तैयार नहीं हैं। दिल्ली में जो अरविंद केजरीवाल सरेआम कांग्रेसियों को गालियां दे रहे हैं वो केजरीवाल भी 19 जनवरी को कोलकाता में ममता दीदी के साथ खड़े थे। यूं दिखाने को ममता की रैली में हार्दिक पटेल से लेकर चन्द्रबाबू नायडू तक मौजूद थे, लेकिन राहुल गांधी की गैर मौजूदगी सभी को खल रही थी। एक ओर कहा जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी को हराने के लिए विपक्ष का महागठबंधन बन रहा है, लेकिन वहीं राहुल गांधी की गैरमौजूदगी ऐसे महागठबंधन पर प्रश्न चिन्ह लगाती है। माना कि शरद पंवार, फारुख अब्दुल्ला जैसे नेताओं के सामने राहुल गांधी बच्चे हैं, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि राहुल गांधी उस कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं जिसका इतिहास सौ बरस से भी ज्यादा पुराना है। ममता दीदी जैसे नेता अपने प्रांत तक सीमित है, लेकिन कांग्रेस तो राष्ट्रव्यापी पार्टी है। अब यदि मायावती और ममता दीदी कांग्रेस को कमजारे समझें तो यह उनकी राजनीतिक समझ है। राहुल गांधी ने भले ही अपने स्थान पर मल्लिकार्जुन खड़गे और अभिषेक मनु सिंघवी को भेज दिया, लेकिन 19 जनवरी को जब ममता दीदी अपने संबोधन में नरेन्द्र मोादी की नीतियों को कोस रही थीं, तब पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष सोमेन मित्रा का कहना रहा कि तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ कांग्रेस का संघर्ष जारी रहेगा। यानि मई से होने वाले लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में ममता और राहुल गांधी आमने-सामने होंगे। ममता की 20 राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को बुलाकर कोलकाता में मजमा तो लगा लिया, लेकिन वामपंथी दलों ने रैली का बहिष्कार किया। यानि बंगाल के कम्यूनिस्ट ही ममता को अपना नेता नहीं मानते हैं। देखना होगा कि लोकसभा चुनाव तक और कितने नेता पीएम पद पर अपना दावा ठोकते हैं। सब जानते है। कि अखिलेश यादव को अवसर मिला तो वे अपने पिता मुलायम सिंह को पीएम बना पाएंगे। इसी प्रकार कर्नाटक के सीएम कुमार स्वामी को अवसर मिला तो वे अपने पिता एचडी देवगोड़ा को एक बार फिर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठाएंगे। इतना ही नहीं कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला को मौका मिलेगा तो वे अपने पिता फारुख अब्दुल्ला को वजीर-ए-आजम की कुर्सी पर देखना पसंद करेंगे।
अमितशाह की रैलियां 22 जनवरी से:
ममता दीदी भले ही पीएम पद पर दावा ठोक रही हों, लेकिन पश्चिम बंगाल में ही दीदी को मात देने के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह की रैलियों की शुरुआत 22 जनवरी से हो रही है। हालांकि अमितशाह यात्रा निकालना चाहते थे, लेकिन ममता सरकार ने अनुमति नहीं दी। अब रैलियों के स्थानों को लेकर भी अड़ंगेबाजी की जा रही है।