कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना हिन्दुओं को वापस बसाना होगा, तभी आतंकवाद समाप्त होगा।
आज कश्मीर में एक तरफा माहौल है, इसलिए 45 जवान एक साथ शहीद हो जाते हैं।
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14 फरवरी को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी जब अजमेर में नरेन्द्र मोदी और भाजपा को हराने के लिए प्यार मोहब्बत का भाषण दे रहे थे, तब शाम को हमारे ही प्रांत कश्मीर में आतंकियों ने सुरक्षा बलों पर हमला कर 45 जवानों की जान ले जी। यह सही है कि इस समय केन्द्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा सरकार है और विपक्षीदल केन्द्र व मोदी की नीतियों की आलोचना करेंगे ही, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि कश्मीर घाटी के इन हालातों के लिए कौन जिम्मेदार है। आजादी के बाद से ही कश्मीर में कांग्रेस, नेशनल कान्फ्रंेस और पीडीपी की सरकारें रही हैं। नेशनल कान्फ्रेंस को चलाने वाले अब्दुल्ला परिवार की तो तीन पीढ़ियां राज कर चुकी हैं। 14 फरवरी को पुलवामा हमले के बाद भी पूर्व सीएम फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि इसमें पाकिस्तान की कोई भूमिका नहीं है और यह हमला कश्मीरियों ने ही किया है। यह बात अलग है कि हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान में बैठे जैश-ए-मोहम्मद के सरगनाओं ने ले ली। असल में कश्मीर में जिन दलों ने राज किया, उन्हीें की नीतियों ने कश्मीर घाटी को भारत की धर्मनिरपेक्षता की नीति से अलग किया है। पूरे देश में कांग्रेस और उनके सहयोगी दल धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटते हैं, लेकिन कश्मीर में ऐसे लोगों की बोलती बंद हो जाती है। आज कश्मीर घाटी हिन्दू विहीन है। कांग्रेस और नेशनल काॅन्फ्रेंस की सरकारों में चार लाख हिन्दुओं को घाटी से डरा धमका कर भगा दिया। आज भी ऐसे हिन्दू कश्मीरी दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। आतंकियों की समर्थक पीडीपी के साथ तीन वर्ष तक सरकार चलाने के बाद भी भाजपा हिन्दुओं की वापसी नहीं करा पाई। आज पूरे कश्मीर घाटी के हालात एक तरफा हैं। इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है कि जब सुरक्षा बल आतंकियों से मुकाबला कर रहे होते हैं, तब कश्मीरी युवा पत्थर फेंकते हैं। यही फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती पत्थरबाजों के पैरोकार बन कर खड़े हो जाते हैं। हद तो तब होती है जब यही लोग कहते हैं कि कश्मीरी तो आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसलिए उन्हें आतंकी नहीं कहा जा सकता। जब हमारे राजनीतिक दलों के नेता आतंकियों की इस तरह हिमायत करेंगे तो फिर आतंक पर काबू कैसे पाया जाएगा। फारुख अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती यह स्पष्ट करें कि क्या वे कश्मीर को भारत से अलग देखना चाहते है? पुलवामा हमले के बाद 15 फरवरी को केबिनेट की सुरक्षा समिति की बैठक भी हो गई और नरेन्द्र मोदी से लेकर अरुण जेटली तक ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने की घोषणा भी कर दी। ऐसा पहले भी कई बार किया जा चुका है। 16 फरवरी को सर्वदलीय बैठक भी बुलाई गई है तथा पाकिस्तान का मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा भी समाप्त कर दिया गया है। इन सबसे कुछ नहीं होगा। मुम्बई के 26/11 हमले के बाद भी ऐसा ही किया गया था। नरेन्द्र मोदी के शासन के पांच वर्ष भी गुजर गए, लेकिन कश्मीर के हालातों में कोई सुधार नहीं हुआ। मोदी के शासन में तो पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक भी हो गई। असल में जब तक कश्मीर से अनुच्छेद 370 नहीं हटाया जाता, तब तक हालात नहीं सुधरेंगे। घाटी के एक तरफा माहौल को समाप्त करने के लिए हिन्दुओं खास कर सिक्ख परिवारों को वापस बसाना होगा। 14 फरवरी के पुलवामा हमले में भी यह बात सामने आई है कि विस्फोटक पदार्थ से भरी कार के बारे में सुरक्षा बलों को भनक तक नहीं लगी। भनक कैसे लगती, पूरा माहौल एक तरफा है यदि हमारे सुरक्षा बलों की चिंता करने वाले देशभक्त नागरिक होते तो सूचना मिल भी जाती। कोई भी सरकार पाकिस्तान पर कितनी भी कार्यवाही कर ले कुछ नहीं होगा। असर तभी होगा जब कश्मीर घाटी का माहौल सुधरेगा और कश्मीर घाटी का माहौल सुधारने के लिए अनुच्छेद 370 को हटाना और हिन्दुओं को वापस बसाना होगा। यदि पांच वर्ष में 370 को हटाने और हिन्दुओं को बसाने का काम हो जाता तो आज नरेन्द्र मोदी को दोबारा से प्रधानमंत्री बनने में कोई परेशानी नहीं होती। देश का आम मुसलमान भी कश्मीर में शांति चाहता है। सरकार को कश्मीर में शांति के लिए मुसलमानों का भी सहयोग मिलता। कोई मुसलमान नहीं चाहता कि आतंकी हमारे सुरक्षा बलों के 45 जवानों को एक साथ शहीद कर दें। लेकिन इसे अफसोसानाक ही कहा जाएगा कि नरेन्द्र मोदी ने भी उसी महबूबा मुफ्ती के साथ कश्मीर में गठबंधन की सरकार बनाई जो आतंकियों की समर्थक है। नरेन्द्र मोदी भी यह अच्छी तरह समझ लें कि जब 45 जवान एक साथ शहीद होते हैं तो सारा विकास धरा रह जाता है। कश्मीर की वजह से देश बहुत कुर्बानी दे चुका है।
कांग्रेस सरकार के साथ:
15 फरवरी को कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और पूर्व पीएम डाॅ. मनमोहन सिंह ने एक प्रेस काॅन्फ्रेंस कर केन्द्र सरकार का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि पूरा देश सुरक्षा बलों के शहीद जवानों के परिवारों तथा सरकार के साथ खड़ा है।
प्रेस क्लब में श्रद्धांजलि:
पुलवामा हमले में शहीद हुए जवानों को 15 फरवरी को अजमेर के वैशाली नगर स्थित अजयमेरु प्रेस क्लब में भी श्रद्धांजलि दी गई। प्रेस क्लब के अध्यक्ष सुरेश कासलीवाल और महासचिव नवाब हिदायतउल्ला ने उपस्थित पत्रकारों के साथ दो मिनट का मौन रखकर श्रद्धांजलि अर्पित की।