मुस्लिम मतदाताओं पर टिकी है लोकसभा चुनाव की रणनीति।

मुस्लिम मतदाताओं पर टिकी है लोकसभा चुनाव की रणनीति।
मुस्लिम बहुल्य क्षेत्रों से चुनाव नहीं लड़ना चाहते भाजपा के नेता, जबकि विपक्षी दलों के नेता उत्सुक।
चुनाव में ही खुलती है धर्म निरपेक्ष्ज्ञता की पोल।
=========
25 मार्च को लोकसभा चुनाव के मद्देनजर देश में ऐसी घटनाएं हुई, जिससे प्रतीत होता है कि यह चुनाव मुस्लिम मतदाताओं की रणनीति के तहत ही हो रहा है। जिन संसदीय क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा है, वहां भाजपा के दिग्गज नेता भी चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं, जबकि ऐसे क्षेत्रों से कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेता चुनाव लड़ने के लिए उत्सुक हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 25 मार्च को भाजपा के फायर ब्रांड नेता और केन्द्रीय मंत्री गिर्राज प्रसाद की बेगूसराय (बिहार) से चुनाव लड़ने से इंकार करना पड़ा। असल में गिर्राज के मौजूदा क्षेत्र नवादा को समझौते में लोजपा को दे दिया गया है, इसलिए गिर्राज को बेगूसराय से उम्मीदवार घोषित किया, लेकिन अब गिर्राज ने बेगूसराय से चुनाव लड़ने से इंकार करते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह से मिलने का समय मांगा है। गिर्राज का बेगूसराय से पीछे हटने का कारण मुस्लिम मतदाताओं की संख्या ज्यादा होना माना जा रहा है। गिर्राज को लगता है कि मुस्लिम मतदाता उन्हें हरवा देंगे। मुस्लिम मतदाताओं की राजनीति से भाजपा के नेता ही नहीं बल्कि कांगे्रस के दिग्गज नेता भी डरे हुए हैं। कांगे्रस का टीवी चैनलों पर प्रभावी तरीके से पक्ष रखने वाले वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने भी अमरोहा (यूपी) से चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है। अमरोहा में मुस्लिम मतदाताओं की संख्या को ध्यान में रखते हुए अल्वी ने पहले सहमति दे दी थी, लेकिन अल्वी की घोषणा के बाद सपा-बसपा के गठबंधन ने भी अमरोहा से मुस्लिम उम्मीदवार उतार दिया। अब अल्वी को लगता है कि मुस्लिम मतों में विभाजन हो जाने से उनकी हार हो जाएगी। ऐसे में अब अल्वी अमरोहा से चुनाव नहीं लड़ना चाहते हैं। यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव की आजमगढ़ और पूर्व मेंत्री आजम खान की रायपुर से उम्मीदवारी भी मुस्लिम मतों को देख तय हुई है; माना तो यह जाता है कि भारत धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और यहां के लोगों में धर्म के नाम पर कोई भेदभाव नहीं होता; भले ही धर्म के आधार पर 1947 में देश का विभाजन हो गया हो, लेकिन भारत में रहने वाले मुसलमानों को भी उतने ही अधिकार है, जितने हिन्दुओं को। कश्मीर जैसे प्रांत में मुसलमानों को ज्यादा अधिकार मिले हुए हैं। लेकिन लोकतंत्र की यह सच्चाई है कि मुस्लिम बहुल्य संसदीय क्षेत्रों से भाजपा का उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सकता है। देश में ऐसे कई संसदीय क्षेत्र हैं, जहां सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवार को ही जीत होती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैदराबाद से अस्सुद्दीन औवेसी की लगातार जीत है। औवेसी का राम मंदिर और पीएम नरेन्द्र मोदी पर क्या नजरिया यह पूरा देश जानता है। जहां हिन्दू मतदाताओं की संख्या ज्यादा है, वहां विपक्षी दलों के नेता धर्म निरपेक्षता की दुहाई देते हैं। धर्मनिरपेक्षता की वजह से कांग्रेस को फायदा भी होता है, लेकिन ऐसी धर्मनिरपेक्षता हैदराबाद जैसे संसदीय क्षेत्रों में देखने को नहीं मिलती। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से गठबंधन इसलिए करना चाहते हैं कि मुसलमानों के वोटों का विभाजन न हो। केजरीवाल को पता है कि यदि कांग्रेस दिल्ली की सभी सातों सीटों पर उम्मीदवार उतारती है तो आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को मुसलमानों का एकमुश्त वोट नहीं मिलेगा। मुस्लिम वोटों के खातिर केजरीवाल कांग्रेस से अपनी पुरानी दुश्मनी भी खत्म करना चाहते हैं। कांग्रेस से गठबंधन के लिए केजरीवाल इतने उतावले है कि बार -बार दुत्कार दिए जाने के बाद भी वे कांग्रेस के दरवाजे पर जाकर खड़े हो जाते हैं। अब शरद पवार को मध्यस्थ बना कर कांग्रेस से गठबंधन करना चाहते हैं। धर्मनिरपेक्षता का दावा करने वाले नेता माने या नहीं लेकिन राजनीति की सारी जोड़ तोड़ मुस्लिम मतदाताओं के नजरिए से होती है। इस चुनाव में पीएम नरेन्द्र मोदी का सबका साथ, सबका विकास का नारा भी धरा गया है।
एस.पी.मित्तल) (25-03-19)
नोट: फोटो मेरी वेबसाइट www.spmittal.in
https://play.google.com/store/apps/details? id=com.spmittal
www.facebook.com/SPMittalblog
Blog:- spmittalblogspot.in
M-09829071511 (सिर्फ संवाद के लिए)
===========
Print Friendly, PDF & Email

You may also like...