काश! ब्लाॅग लिखने से पहले आडवानीजी देशद्रोह वाले बयान पढ़ लेते।
आखिर मतदान से ठीक पहले राष्ट्र विरोधी तत्वों का मनोबल क्यों बढ़ा रहे हैं ?
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जब कश्मीर के पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला कश्मीर का अलग पीएम और अलग राष्ट्रपति चाहते, जब पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती अनुच्छेद 370 हटाने पर कश्मीर को फिलिस्तीन बनाने की धमकी देती हैं, जब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी उस केरल में चुनाव लड़ने जाते हैं, जहां गौ माता को सरे आम काटा जाता है, जब यूपी के एक कांग्रेसी नेता देश के प्रधानमंत्री के टुकड़े टुकड़े करने की धमकी देता है, जब फारुख अब्दुल्ला कहते हैं कि यदि कोई पाकिस्तान को एक बार गाली देगा तो मैं उसे सौ बार गाली दुंगा, जब हैदराबाद के असुद्दीन औबेसी प्रधानमंत्री के लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं, जब दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल जेएनयू प्रकरण में राष्ट्र द्रोहियों के खिलाफ मुकदमें की मंजूरी नहीं देते हैं, जब पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी सीबीआई के प्रवेश पर रोक लगा देती है, तब भाजपा के संस्थापक सदस्य लालकृष्ण आडवानी अपने ब्लाॅग में लिखते हैं कि जो हमसे सहमति नहीं था, उन्हें हमने कभी भी दुश्मन या देशद्रोही नहीं माना। आडवानी की ऐसी भावनाएं तब सामने आई है, जब 11 अप्रैल को पहले चरण का मतदान होना है। इस बार गुजरात के गांधीनगर से उम्मीदवार नहीं बनाए जाने को लेकर आडवानी नाराज हो सकते हैं, लेकिन आडवानी को यह नहीं भूलना चाहिए कि जिस पार्टी की स्थापना की उस पार्टी के खिलाफ देश का पूरा विपक्ष एकजुट है। माना कि भाजपा को मजबूत करने में आडवानी की भी भूमिका है, लेकिन अब उसी पार्टी को आडवानी कमजोर क्यों कर रहे हैं। आडवानी ऐसा रवैया तब भी अपनाया था, जब पंाच वर्ष पहले नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया गया था। आडवानी के मीठे विरोध के बाद भी मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पूर्ण बहुमत मिला। यानि आडवानी का विरोध बेकार गया। पांच वर्ष पहले आडवानी ने जो गलती की उसे ही अब देाहरा रहे हैं, जबकि पूर्व की गलती की वजह से आडवानी के हाथ से राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति जैसे कई महत्वपूर्ण पद निकल गए। आडवानी की उम्र अब 80 के पार हो गई है, ऐसे में उन्हें बेहद सतर्कता बरतने की जरुरत है। यदि आडवानी को अपने ही लगाए पेड़ को काटने की इच्छा है तो फिर उन्हें विपक्ष के खेमे में खड़ा हो जाना चाहिए। आडवानी को यह तथ्य भी समझना चाहिए कि चुनाव जीतने के मकसद से राहुल गांधी उस वायनाड़ संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जहां हिन्दू आबादी पचास प्रतिशत से भी कम है। वायनाड़ राहुल के लिए इसलिए सुरक्षित है क्योंकि वहां 29 प्रतिशत मुस्लिम और 22 प्रतिशत ईसाई आबादी है। आडवानी को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अपने ब्लाॅग लिखने चाहिए। खुलेआम देश के विभाजन की बात करने वाले नेताओं को भी आडवानी यदि देशद्रोही नहीं मानते है तो यह उनकी समझ है।