मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को शाबाशी मिलनी चाहिए। 

मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा को शाबाशी मिलनी चाहिए। 
जिन्हें देश में असहिष्णुता दिख जाती है वो ही लगा रहे हैं आरोप।
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11 अप्रैल को लोकसभा चुनाव में 91 संसदीय क्षेत्रों में छुटपुट घटनाओं को छोड़ कर शांतिपूर्ण तरीके से मतदान सम्पन्न हो गया। 20 राज्यों की इन 91 सीटों में आतंक से ग्रस्त कश्मीर और नक्सलवाद से ग्रस्त राज्यों की सीटें भी शामिल थीं। देश में सात चरणों में मतदान होना है। पहले चरण का मतदान शांतिपूर्ण रहा है तो क्या मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा और उनकी टीम को शाबाशी नहीं मिलनी चाहिए? खेल का जैसे आगाज होता है समापन भी वैसा ही रहता है। सब जानते हैं कि इस विषम परिस्थितियों में लोकसभा का चुनाव हो रहा है। कोई भी दल जीत के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहा है, इसलिए मतदातन से पहले कुछ रिटायर नौकरशाहों ने एक बयान जारी कर चुनाव आयोग की निष्पाक्षता पर सवाल उठा दिए। अब जब पहले दौर का चुनाव निष्पक्ष और शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हो गया तो ऐसे नौकरशाहों की आशंकाएं भी निर्मूल साबित हो गई। असल में एक विशेष विचारधारा के लोगों को समय समय पर देश में असहिष्णुता नजर आ जाती है। ऐसे लोगों के चेहरे बदल जाते हैं। कभी स्वयं को प्रगतिशील लेखक और बुद्धिजीवी मानने वाले लोग आगे आ जाते हैं तो कभी शाहरुख खान, सलमान खान, नसीरुद्दीन शाह जैसे फिल्मी कलाकार। जोड़ तोड़ कर अवार्ड हथियाने वाली गैंग भी अवार्ड लौटाने की धमकी देती है। कभी देश की सर्वोच्च अदालत पर हमला किया जाता है तो कभी चुनाव आयोग जैसी संवैधानिक संस्था पर। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने आरोपों की परवाह किए बगैर पहले चरण का चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न करवा दिया और कोई आयुक्त होता तो शायद दबाव में आ जाता। झूठे आरोपों की वो व्यक्ति परवाह नहीं करता जो अपना काम ईमानदारी और बिना भेदभाव के करता है। सुनील अरोड़ा पश्चिम बंगाल में ममता दीदी की दादागिरी से भी नहीं डरे तो उन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दबाव भी नहीं देखा गया। आयोग ने बंगाल में निष्पक्ष चुनाव के लिए कई अफसरों को चुनाव ड्यूटी से हटाया तो दिल्ली में नमो टीवी पर राजनीति गतिविधियां की खबरों पर रोक लगाई। जबकि नमो टीवी तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह और केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के शह पर चल रहा है।
राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह के बड़बोलेपन के लिए राष्ट्रपति को पत्र लिख दिया तो अली और बजरंगी बली की बात कहने वाले यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को नोटिस जारी कर दिए। संविधान में चुनाव आयोग को जो अधिकार मिले हुए है उनका सुनील अरोड़ा भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं। ईवीएम पर हाथ का बटन दबाने पर कमल के फूल को वोट जा रहा है तथा अंगुली की स्याही मिट रही है जैसी बकवासों का जवाब देने की जरुरत चुनाव आयोग को नहीं है। देश में असहिष्णुता देखने वाले मतदान से पहले सुप्रीम कोर्ट चले गए। ईवीएम के बजाए मतपत्रों से मतदान करवाने तथा कुल मतदान की पचास प्रतिशत वीवीपेट की पर्चियों का मिलान  करवाने के कुतर्कों को कोर्ट ने नहीं माना। हालांकि अब एक विधानसभा क्षेत्र के पांच मतदान केन्द्र की पर्चियों का मिलान होगा। चुनाव आयोग की इतनी निष्पक्षता और पारदर्शिता के बाद भी बसपा प्रमुख को ईवीएम पर संदेह हो रहा है। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि पहले दौर के मतदान में सपा-बसपा का गठबंधन बेकार हो गया है। इसी प्रकार ममता बनर्जी को भी बंगाल में हार नजर आ रही है। चुनाव आयोग की प्रभावी भूमिका इससे ज्यादा और क्या हो सकती है कि जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फिल्म पर ही रोक लगा दी गई। अच्छा हो कि राजनीतिक दल निष्पक्ष चुनाव करवाने में चुनाव आयोग को सहयोग करें।
एस.पी.मित्तल) (12-04-19)
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