आखिर मतदान वाले दिन कहां चला जाता है राजनीतिक दलों का बूथ प्रबंधन।
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Sp mittal
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April 28, 2019
आखिर मतदान वाले दिन कहां चला जाता है राजनीतिक दलों का बूथ प्रबंधन।
क्या बूथवार धन राशि देकर होता है प्रबंधन?
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अजमेर संसदीय क्षेत्र में 29 अप्रैल को प्रात: 7 बजे से मतदान होना है। इसके लिए प्रशासन के साथ साथ प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा और कांग्रेस ने भी पूरी तैयारी कर ली है। संसदीय क्षेत्र में 1950 मतदान केन्द्र हैं। इन्हीं पर कोई साढ़े 18 लाख मतदाता अपने मताधिकार का उपयोग करेंगे। जिस प्रकार प्रशासन प्रत्येक मतदान केन्द्र पर कर्मचारी और सुरक्षाकर्मी तैनात करता है, उसी प्रकार भाजपा और कांग्रेस भी अपने अपने कार्यकर्ताओं की नियुक्ति करते हैं। प्रशासन तो अपने कर्मचारियों को चुनाव ड्यूटी का अलाउंस आदि देता है, लेकिन यह माना जाता है कि भाजपा और कांग्रेस के कार्यकर्ता समर्पण भाव से मतदान केन्द्र पर नियुक्त रहते हैं। यानि मतदान केन्द्र के बाहर लगने वाली टेबल पर बैठने वाले कार्यकर्ता, मतदान केन्द्र के अंदर एजेंट की भूमिका निभाने वाले तथा मतदाताओं को घरो ंसे निकालने वाले सभी कार्यकर्ता कोई धनराशि लिए बगैर पार्टी के लिए कार्य करते हैं। यह भी माना जाता है कि कोई भी प्रत्याशी मतदान केन्द्र पर सक्रिय कार्यकर्ता को कोई राशि नहीं देता। चुनाव आयोग ने एक संसदीय क्षेत्र में मात्र 70 लाख रुपए का खर्च करने की सीमा निर्धारित कर रखी है। ऐसे में कोई भी प्रत्याशी अजमेर संसदीय क्षेत्र के 1950 केन्द्रों पर राशि खर्च कर ही नहीं सकता। इसलिए चुनाव प्रचार के दौरान हर राजनीतिक दल बूथ प्रबंधन का ढिंढोरा पीटता है। हर दल यह दावा करता है कि एक मतदान केन्द्र पर 15 से लेकर 25 कार्यकर्ताओं की टीम उनके पास है। भाजपा में अमितशाह से लेकर प्रदेशाध्यक्ष मदनलाल सैनी और कांग्रेस में राहुल गांधी से लेकर प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट तक ऐसी टीम के सदस्यों के नाम और मोबाइल नम्बर तक भेजे जाते हैं। मतदान से पहले बूथ के ऐसे कार्यकर्ताओं की मीटिंग भी होती है। अखबारों में बड़ी बड़ी खबरें भी छपती है। अजमेर संसदीय क्षेत्र के भाजपा प्रत्याशी भागीरथ चौधरी और कांगे्रस के रिजु झुनझुनवाला से कोई सवाल करेगा तो यही जवाब मिलेगा कि बूथ प्रबंधन तो पार्टी स्तर पर हो रहा है। सवाल उठता है कि दोनों प्रत्याशी क्या ईमानदारी के साथ जवाब दे रहे हैं? जो लोग चुनाव की रणनीति बनाते हैं उन्हें पता है कि मतदान वाले दिन बूथ पर प्रबंधन किस प्रकार से होता है। प्रत्यक्षदर्शियों को मतदान वाले दिन अलग से फंड रखना होता है। भले ही चुनाव खर्च की सीमा 70 लाख रुपए हो, लेकिन प्रबंधन का दावा करने वाले दलों को एक बूथ पर कम से कम 10 हजार रुपए तो खर्च करने ही होते हैं। यानि अजमेर संसदीय क्षेत्र के 1950 मतदान केन्द्रों पर एक दल का आंकड़ा करीब दो करोड़ रुपए का है। माना जाता है कि चुनाव में सबसे मोटा खर्च बूथ पर ही होता है। असल में मतदान वाले दिन ही दोनों दलों के संगठन की पोल खुलती है। जो जिलाध्यक्ष और ब्लॉक मंडल अध्यक्ष हर समय नेतागिरी करते हैं, वहीं मतदान से एक दिन पहले वितरण कार्य में लगे रहते हैं, ताकि अगले दिन बूथ के अंदर और बाहर कथित कार्यककर्ता बैठ जाए। चूंकि बेचारे प्रत्याशी को चुनाव जीतना होता है, इसलिए जिलाध्यक्ष और ब्लॉक अध्यक्षों से कोई सवाल भी नहीं कर सकता है। ऐसा नहीं कि ऐसी दशा सिर्फ अजमेर में ही है। ऐसे हाल राजस्थान और देशभर में होते हैं। किसी दल का नेता चाहे कितना भी दावा कर ले, लेकिन बूथ प्रबंधन की हकीकत प्रत्याशी को ही पता होती है। गंभीर बात तो यह है कि प्रत्याशी इस हकीकत को किसी को बता भी नहीं सकता। राजनीतिक दलों को इस हकीकत पर विचार करना चाहिए। हो सकता है कि कुछ कार्यकर्ता वाकई समर्पण भाव से बूथ पर कार्य करते हों, लेकिन ऐसे कार्यकर्ताओं की संख्या बहुत कम होगी। राजनीतिक दल भी लोकतंत्र का हिस्सा हैं। जो प्रत्याशी पैसा खर्च करता है वो फिर वसूलता भी है।