तो विपक्ष के नेता चार लाख हिन्दुओं को वापस कश्मीर बसाने के लिए इतनी एकता क्यों नहीं दिखाते।

तो विपक्ष के नेता चार लाख हिन्दुओं को वापस कश्मीर बसाने के लिए इतनी एकता क्यों नहीं दिखाते। ममता बनर्जी तो भाजपा के दिल्ली ऑफिस पर भी कब्जा कर लेंगी। 
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15 मई को चुनाव आयोग ने निष्पक्ष और भयमुक्त मतदान के लिए पश्चिम बंगाल में जो सख्त फैसले लिए है उनका विरोध कांग्रेस से लेकर बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष सुश्री मायावती भी कर रही हैं। 16 मई को विपक्षी दलों ने ऐसा प्रदर्शन किया, जैसे बंगाल में बहुत ज्यादती हो गई। यह बात अलग है कि 16 मई को यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बंगाल में दो रैलियां कर रहे हैं तो ममता बनर्जी भी दो स्थान पर सभाएं कर रही है। 16 मई की रात 10 बजे टीएमसी के साथ-साथ भाजपा भी कोई प्रचार नहीं कर पाएगी। यानि जो सख्ती टीएमसी पर की गई है, वह सभी राजनीतिक दलों पर लागू होगी। जहां तक दो बड़े अफसरों को हटाने का सवाल तो यह ममता दीदी भी जानती है कि आयोग ने क्यों हटाया है। लोकसभा के चुनाव पूरे देश में हो रहे हैं। किसी भी प्रांत से हिंसा की खबरें नहीं आ रही। सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही ङ्क्षहसा क्यो हो रही है? यह तो अच्छा हुआ कि चुनाव आयोग ने बंगाल की 42 सीटों के चुनाव सभी सात चरणों में कराए। यदि दो या तीन चरणों में कराए जाते तो मतदान में फर्जीवाड़े का अंदाजा  लगाया जा सकता है। ममता और टीएमसी के समर्थक माने जाने वाले गुंडातत्व जब केन्द्रीय सुरक्षा बलों के सशस्त्र जवानों को चुनौती दे रहे हैं तो फिर हालातों का अंदाजा लगाया जा सकता है। यदि 14 मई को कोलकाता में सीआरपीएफ के जवान नहीं होते तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमितशाह का बचना मुश्किल था। शाह के रोड शो में गुंडातत्वों ने पत्थर फेंकने के साथ-साथ आग के गोले भी फेंके। आखिर बंगाल में ऐसे कैसे गुंडातत्व है जो अद्र्धसैनिक बलों से भी नहीं डर रहे। असल में ऐसे गुंडातत्वों को भी पता है कि ममता बनर्जी के सीएम रहते उन पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं होगा। ऐसे ही हालात 25 वर्ष पहले कश्मीर के थे। ऐसे ही हालातों की वजह से चार लाख हिन्दुओं को कश्मीर छोडऩा पड़ा। आज ममता दीदी को बचाने के लिए विपक्षी दल लामबंद हो रहे हैं, लेकिन कश्मीर में पुन: हिन्दुओं को बसाने पर चुप है। बंगाल में ऐसे-ऐसे कृत्य किए जा रहे है जिससे हिन्दुओं को ही कटघरे में खड़ा किया जा सके। यानि जो रणनीति कश्मीर में अपनाई गई, वो ही अब बंगाल में अपनाई जा रही है। भौगोलिक दृष्टि से कश्मीर तो छोटा है, लेकिन पश्चिम बंगाल तो बड़ा प्रांत है। यदि सत्ता की वजह से बंगाल के हालात बिगाड़े जाएंगे तो पूरे देश को कीमत चुकानी पड़ेगी। बंगाल को संभालना बेहद मुश्किल होगा। अच्छा हो कि ममता बनर्जी बंगाल में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार करें। यदि बंगाल बचेगा तो सत्ता भी बचेगी। माना कि ममता बनर्जी इस समय बंगाल की सबसे ताकतवर नेता है। इस ताकत के मद में ही ममता का कहना है कि वे चाहेंगी तो भाजपा के दिल्ली ऑफिस पर कब्जा कर लेंगी। ममता का यह बयान दिखाता है कि उनके पीछे कौन सी ताकत है। ममता उस राजनीतिक दल के ऑफिस पर कब्जा करने की बात कह रही हैं जिसकी केन्द्र के साथ-साथ देश के 16 राज्यों में सरकारें हैं। इससे ममता की हिम्मत का अंदाजा लगाया जा सकता है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि जब कश्मीर से चार लाख  हिन्दुओं को प्रताडि़त कर घर छोडऩे पर मजबूर किया जाता है तो विपक्षी नेताओं की जुबान बंद हो जाती है और चुनाव आयोग थोड़ी सी सख्ती करता है तो ममता के समर्थन में विपक्षी दल एकजुट हो जाते हैं। ममता देश के प्रधानमंत्री को गुंडा कहती है तब भी विपक्षी दलों को बुरा नहीं लगता।
एस.पी.मित्तल) (16-05-19)
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