प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं केदारनाथ की गुफा में तपस्या।
भगवान शिव का बल प्राप्त करेंगे।
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आजाद भारत के इतिहास में यह पहला अवसर है, जब देश का कोई प्रधानमंत्री अपने देश की सनातन संस्कृति के अनुरूप बाबा केदारनाथ की गुफा में तपस्या कर रहा है। 18 मई को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने हिमालय पहाड़ पर बैठे बाबा केदारनाथ के दर्शन किए और गर्भगृह में पूजा अर्चना करने के बाद मंदिर की परिक्रमा की। मंदिर के जीर्णोद्धार कार्यों का जायजा लेने के बाद प्रधानमंत्री पहाड़ी पर बनी एक गुफा में तपस्या करने के लिए चले गए। कहा जा रहा है कि रात को भी प्रधानमंत्री इसी गुफा में रहेंगे और 19 मई को बद्रीनाथ के दर्शन करेंगे। सब जानते हैं कि इन दिनों देश में चुनावी माहौल गर्म है। लोकसभा चुनाव के अंतिम दौर का मतदान 19 मई को होगा और 23 मई को नतीजे आ जाएंगे। 23 मई को पता चल जाएगा कि नरेन्द्र मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनेंगे या नहीं। इस बार लोकसभा का चुनाव मोदी बनाम अन्य हुआ है। 18 मई को जब मोदी बाबा केदारनाथ का बल और आशीर्वाद पाने के लिए गुफा में तपस्या कर रहे थे, तब दिल्ली में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ मुलाकात कर मोदी को दोबारा से प्रधानमंत्री बनने से रोकने की रणनीति बना रहे थे। आंध्र प्रदेश के सीएम चन्द्रबाबू नायडु ने दिल्ली में डेरा जमा लिया है। नायडु राहुल गांधी के साथ मिल कर मोदी विरोधियों को एकजुट करने में लगे हुए हैं। मोदी ने पिछले दो माह में 150 से भी ज्यादा चुनावी रैलियां की। एक दिन में तीन चार रैलियां करने के बाद यह समझा जा रहा था कि प्रधानमंत्री मोदी कुछ दिन आराम करेंगे या फिर दिल्ली में बैठकर रणनीति बनाएंगे। लेकिन मोदी तो 18 मई को सुबह ही हिमालय पर्वत पर पहुंच गए। भगवान शिव के प्रतीक बाबा केदारनाथ के मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद मोदी पहाड़ पर कोई एक किलोमीटर चढ़े। गढ़वाली ड्रेस में मोदी ने एक हाथ में छड़ी और एक हाथ में छतरी ले रखी थी। मोदी के गुफा में पहुंचने तक वर्षा होती रही। सतरंगी छतरी को पहले तो सुरक्षाकर्मी लेकर चल रहे थे, लेकिन मोदी के साथ दुर्गम पहाड़ पर करताल नहीं मिलने की वजह से मोदी ने छतरी को सुरक्षाकर्मी से ले लिया। कुछ लोगों को इसमें भी मजाक नजर आएगा। हो सकता है ऐसे लोग टेबल को पीटे भी। लेकिन भारतीय सनातन संस्कृति में मोदी के इस कदम का खास महत्व है। आप चाहे कितना भी परिश्रम कर लें, लेकिन यदि आप ईश्वर का आशीर्वाद नहीं होगा तो आपको सफलता नहीं मिलेगी। 18 मई को मोदी ईश्वर का आशीर्वाद लेने के लिए ही तपस्या करने हिमालय की गोद में पहुंचे। मुझे पता है कि अनेक लोग मोदी के इस धार्मिक कार्य का मजाक उड़ाएंगे, लेकिन जो लोग भारत की सनातन संस्कृति में भरोसा रखते हैं उन्हें पता है कि ईश्वर का आशीर्वाद होने पर कठिन से कठिन कार्य सरलता के साथ हो जाता है। सनातन संस्कृति को मानने वालों को इस बात पर गर्व होना चाहिए कि नरेन्द्र मोदी अपने देश की संस्कृति पर इतना भरोसा करते हैं। जब भगवान शिव का आशीर्वाद होगा तो फिर लोकसभा चुनाव के परिणाम की चिंता किसे होगी? भोले बाबा सबकी सुनते हैं, लेकिन सवाल यह है कि भोले की शरण में पहुंचता कौन है? गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि मनुष्य को अपना कर्म करना चाहिए, फल की इच्छा नहीं। जो कर्म करता है उसे ही फल मिलता है। जो कर्म ही नहीं करेगा, उसे फल कहां से मिलेगा। जमीन से 12 हजार फिट की ऊंचाई पर तपस्या करना कोई आसान कार्य नहीं है। अनेक राजनेता तो थकान मिटाने के लिए विदेश जाते हैं, जबकि मोदी तो थके शरीर में बल प्राप्त करने के लिए भोले बाबा की शरण में है।