गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस का कोई वजूद नहीं।
वर्किंग कमेटी में राहुल गांधी का इस्तीफा मंजूर नहीं होगा।
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लोकसभा चुनाव के परिणाम के मद्देनजर कांगे्रस वर्किंग कमेटी की बैठक 25 मई को दिल्ली में हो रही है। माना जा रहा है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी इस्तीफे की पेशकश करेंगे। असल में यह एक सामान्य प्रक्रिया होगी। वर्किंग कमेटी राहुल के इस्तीफे को नामंजूर कर देगी और राहुल गांधी ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने रहेंगे। यह सही है कि राहुल गांधी के धुंआधार प्रचार के बाद भी कांग्रेस को मात्र 52 सीटें मिली हैं। लेकिन वर्किंग कमेटी के सदस्य से लेकर ब्लॉक अध्यक्ष तक जानते हैं कि गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस का कोई वजूद नहीं है। कांग्रेस में ऐसा कोई नेता नहीं है जो गांधी परिवार के सामने अध्यक्ष पद पर दावा कर सके। कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं के दिमाग की सुई गांधी परिवार के इर्द गिर्द ही घूमती है। पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हराव ने कांग्रेस को गांधी परिवार से बाहर निकालने की कोशिश की थी, सब जानते हैं कि नरसिम्हराव का क्या हाल हुआ। वैसे भी जो सुविधा और सरकार का लाव लश्कर गांधी परिवार को मिला हुआ है, वह देश के किसी भी राजनीतिक दल के नेता को नहीं है। श्रीमती सोनिया गांधी हो या राहुल-प्रियंका सभी को एसपीजी की सुविधा है। कानून के मुताबिक एसपीजी की सुविधा सिर्फ देश के प्रधानमंत्री को ही मिलती है। यानि इस समय जो सुरक्षा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिली हुई है, वहीं सुरक्षा गांधी परिवार के सदस्यों के पास है। आज राहुल गांधी या प्रियंका गांधी कहीं जाते हैं तो एसपीजी का दस्ता दो दिन पहले पहुंच कर सुरक्षा का जायजा लेता है। जो इंतजाम प्रधानमंत्री के लिए होते हैं, वहीं इंतजाम राहुल और प्रियंका के लिए भी। ऐसा रुतबा गांधी परिवार के बाहर के किसी नेता को नहीं मिलेगा। जब गांधी परिवार के सदस्यों का रुतबा अपने आप होता है तो फिर परिवार के बाहर से अध्यक्ष बनाने का क्या फायदा? कांग्रेस का कार्यकर्ता भी गांधी परिवार के सदस्यों को स्वीकार चुका है। सोनिया गांधी ने राहुल गांधी ने अपनी छोटी बहन प्रियंका गांधी को सीधे राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त कर दिया। जब कांग्रेस का कार्यकर्ता ही गांधी परिवार को कांग्रेस मान रहा है तब किसी को ऐतराज नहीं होना चाहिए। यूं देखा जाए तो सोनिया गांधी जब राष्ट्रीय अध्यक्ष थीं तब 2014 में कांगे्रस को 44 सीटें मिली थीं। राहुल गांधी ने तो 8 सीटों का इजाफा कर दिया। यह बात अलग है कि 52 सीटें मिलने के बाद भी लोकसभा में कांग्रेस को अधिकृत तौर पर प्रतिपक्ष के पद का पद नहीं मिल सकेगा। असल में प्रतिपक्ष का नेता बनने के लिए दस प्रतिशत सीटों का होना जरूरी है। यानि लोकसभा की 543 में से 55 सीटें मिलनी चाहिए। कांग्रेस ने राहुल गांधी के नेतृत्व में 52 सीटें जीती है। पिछली बार भी लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने उदारता दिखाते हुए कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खडग़े को प्रतिपक्ष का नेता स्वीकार कर लिया था। देखना होगा कि इस बार नए लोकसभा अध्यक्ष का क्या निर्णय लेते हैं। सुमित्रा महाजन ने तो इस बार चुनाव ही नहीं लड़ा तथा खडग़े कांग्रेस उम्मीवार के तौर पर कर्नाटक से चुनाव हार गए हैं।