कांग्रेस के विधायक ने ही खोल रखा है गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा।
कांग्रेस के विधायक ने ही खोल रखा है गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा। डीजीपी रहे हरीश मीणा को अब पता चला कैसी होती है पुलिस। सचिन पायलट चुप।
टोंक पुलिस पर है हत्या का आरोप:
कांग्रेस विधायक मीणा का आरोप है कि पुलिस ने ट्रेक्टर चालक भजनलाल मीणा को पीट-पीट कर मार डाला। मीणा चाहते है कि टोंक के नगरफोर्ट के थाने के सभी कार्मिकों को सस्पेंड कर हत्या का प्रकरण दर्ज किया जाए। जबकि पुलिस का कहना है कि भजनलाल मीणा जब अवैध तौर पर ट्रेक्टर में बजरी भर कर ले जा रहा था तब पुलिस से हुई मुठभेड़ में मारा गया। टोंक के एसपी चूनाराम जाट अपने कार्मिकों के साथ खड़े हैं। ट्रेक्टर चालक भजनलाल की मौत गत 29 मई को हुई थी तभी से शव अस्पताल के मुर्दाघर में रखा हुआ है। विधायक मीणा और मृतक के परिजनों का कहना है कि जब तक मांगें पूरी नहीं हो जाती, तब तक अंतिम संस्कार नहीं होगा। विधायक का आमरण अनशन भी नगरफोर्ट के चिकित्सालय परिसर में ही हो रहा है।
पायलट भी टोंक से विधायक:
प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष और डिप्टी सीएम सचिन पायलट भी टोंक जिले से विधायक है, लेकिन पायलट अभी तक अपने विधायक से मिलने नहीं आए हैं। पायलट ने इस पूरे घटनाक्रम पर कोई टिप्पणी नहीं की है। पायलट की चुप्पी पर राजनीतिक क्षेत्रों में अनेक सवाल उठ रहे हैं। कहा जा रहा है कि टोंक के एसपी के पद पर चूनाराम की नियुक्ति पायलट की सिफारिश से ही हुई है। टोंक में पुलिस महकमें में कोई दखल होता है तो पहले पायलट की सहमति लेनी होगी। अब देखना है कि सीएम अशोक गहलोत इस मामले से कैसे निपटते हैं। गृह विभाग भी गहलोत के पास ही है।
अब पता चला कैसी है पुलिस:
हरीश मीणा राजनीति में आने से पहले पुलिस सेवा में थे। मीणा राजस्थान कैडर के अकेले आईपीएस रहे, जिन्होंने राजस्थान के डीजीपी के पद पर साढ़े चार वर्ष तक काम किया। अशोक गहलोत के दूसरे कार्यकाल में मीणा की नियुक्ति डीजीपी के पद पर हुई थी, लेकिन भाजपा के शासन में वसुंधरा राजे ने भी मीणा को ही डीजीपी बनाए रखा। 2014 में मीणा ने दौसा से भाजपा उम्मीदवार के तौर पर लोकसभा का चुनाव जीता, लेकिन 2018 में भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। इसे मीणा की तकदीर ही कहा जाएगा कि कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर देवली से विधायक भी बन गए। यह बात अलग है कि अशोक गहलोत ने मीणा को मंत्री नहीं बनाया, इससे मीणा के समर्थक नाराज हैं। हरीश मीणा जब डीजीपी के पद पर थे, तब बड़े-बडे़ अफसर सलाम करते थे, लेकिन आज एक थाने के कार्मिकों के खिलाफ कार्यवाही के लिए मीणा को आमरण अनशन करना पड़ रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि पुलिस कैसी होती है। शायद पुलिस की प्रवृत्ति का अहसास अब मीणा को भी हुआ होगा।
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