जयपुर रेंज के जेल कार्मिकों की नेमप्लेट पर जाति का उल्लेख नहीं।
कैदियों के रिश्तेदार डीआईजी किशन सहाय के मोबाइल 9460928737 पर सीधे संवाद कर सकते हैं। क्या राजस्थान भर में यह व्यवस्था लागू होगी?
4 जून को मेरी मुलाकात भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी किशन सहाय से हुई। किशन सहाय मेरे फेसबुक मित्र हैं, इसलिए विचारों का आदान प्रदान होता रहता है। किशन सहायक जब 4 जून को सरकारी कार्य से अजमेर आए तो मुझे भी मुलाकात का अवसर मिला। किशन सहाय सरकारी सेवा में रह कर मानवता का पाठ पढ़ा रहे हैं। उनका मानना है कि कोई भी धर्म मानवता के विरुद्ध शिक्षा नहीं देता, ऐसे में यदि मनुष्य मानवता की सीख लेकर कार्य करेगा, तो अपने आप धर्म का अनुसरण हो जाएगा। वैसे भी मानवता से बड़ा कोई जाति धर्म नहीं होता है। किसी व्यक्ति की पहचान उसकी जाति या धर्म से नहीं, बल्कि उसके मानवीय गुणों से होती है। किशन सहाय मानवता का पाठ ही नहीं पढ़ाते, बल्कि अमल भी करते हैं। यानि उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं है। किशन सहाय इस समय जेल विभाग में जयपुर रेंज मेें डीआईजी के पद पर नियुक्त है। सरकार की व्यवस्था के अनुरूप राजस्थान की जेले तीन रेंज में जयपुर, जोधपुर और उदयपुर में विभाजित हैं और जयपुर रेंज सबसे बड़ी है। इसमें जयपुर और भरतपुर संभाग की जेले आती हैं। सर्वाधिक कैदी जयपुर रेंज की जेलों में ही हैं। चूंकि किशन सहाय मानवता के पक्षधर है, इसलिए जेलों में बंद कैदियों को स्वयं के मोबाइल नम्बर 9460928737 दे रखे हैं। कैदियों से कहा है कि मेरे नम्बर परिजन को देें और परिजन जब चाहें तब मोबाइल पर बात कर सकते हैं। उन्होंने बताया कि यदि कोई परिजन जेल में बंद कैदी के बारे शिकायत करता है तो उसकी शिकायत पर तत्काल कार्यवाही होती है। मैं जेल में बंद हर कैदी को मानवीय दृष्टिकोण से देखता हंू। मुझे पता है कि कैदी के परिजन माता-पिता, भाई-बहन, पत्नी, बच्चे आदि को कितनी तकलीफ होती है। अपराध की सजा देने का कार्य न्यायपालिका है, लेकिन मैं मानवता को सबसे बड़ा धर्म मानते हुए कैदी के परिजन का ख्याल रखता हंू। मेरा प्रयास होता है कि जेल कार्मिकों की वजह से किसी परिपजन को परेशानी नहीं हो।
नेमप्लेट पर जाति का उल्लेख नहीं:
जयपुर रेंज की जेलों में कार्यरत कार्मिकों की नेमप्लेट पर जाति का उल्लेख करने की सख्त मनाही है। जब हम मानवता की बात करते हैं तो जाति को महत्व क्यों दिया जाए? जेल के प्रहरी से लेकर डीआईजी तक की नेमप्लेट पर जाति का उल्लेख नहीं है। किशन सहाय को खुशी है कि कार्मिकों ने उनकी भावनाओं का ख्याल किया है। किशन सहाय अपनी बात बेबाक तरीके से रखने के लिए पुलिस महकमें में विख्यात हैं। फेसबुक पर दर्ज टिप्पणियों से कई बार राजनीतिक हलकों में हलचल हो जाती है। टोंक में गत 29 मई को ट्रेक्टर चालक हरिभजन की मौत पर भी फेसबुक पर किशन सहाय ने अपने विचार रखे। किशन सहाय का कहना रहा कि मृतक के परिजन को नौकरी आदि की सुविधा देने में कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए, यही तो मानवता है। किशन सहाय ने माना कि वे ज्वंलत मुद्दों पर अपने विचार रखते हैं, लेकिन कभी भी सेवा नियमों का उल्लंघन नहीं करते। वे सरकारी दायरे में रखकर अपनी विचार समाज के सामने रखते हैं।
क्या सरकार पहल करेगी?:
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को संवेदनशील माना जाता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आईपीएस किशन सहाय ने जो सकारात्मक पहल की है उसे क्या सरकार में लागू किया जाएगा? यदि सभी कार्मिकों की नेम प्लेट पर जाति का उल्लेख न हो तो यह अच्छा संदेश है। कुछ आईपीएस और आईएएस चाहें तो इस व्यवस्था को अपने स्तर पर लागू कर सकते हैं।
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