राहुल गांधी की ऐसी जिद्द और नाराजगी कांग्रेस को और नुकसान पहुंचाएगी।

राहुल गांधी की ऐसी जिद्द और नाराजगी कांग्रेस को और नुकसान पहुंचाएगी। नेता के नाते राहुल को तो मायूस कार्यकर्ताओं की हौंसला अफजाई करनी चाहिए।

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कांगे्रस में अब उल्टा हो रहा है। लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद नेतृत्व क्षमता दिखाते हुए राहुल गांधी को हार से मायूस कार्यकर्ताओं की हौंसला अफजाई करनी चाहिए, लेकिन अब हताश और मायूस कार्यकर्ता राहुल गांधी को मनाने में लगे हुए हैं। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी अब कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं रहना चाहते हैं। उनका कहना है कि गांधी परिवार के बाहर से किसी कांग्रेसी को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जाए। नया अध्यक्ष बनाने का कार्य भी राहुल ने हताश और मायूस नेताओं पर ही छोड़ दिया है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि राहुल की जिद्द के आगे मां श्रीमती सोनिया गांधी और बहन प्रियंका वाड्रा भी बेबस है। यही वजह है कि देश भर में कांग्रेस संगठन में हड़कंप मचा हुआ है। प्रदेशों में नेताओं के इस्तीफों की बाढ़ सी आ गई है। प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर संगठन को नियंत्रित करने वाला कोई नहीं है। समझ में नहीं आता कि राहुल गांधी क्यों नाराज है, जबकि हार की जिम्मेदारी उनकी भी है। राहुल गांधी हार की जिम्मेदारी तो ले रहे हैं, लेकिन संगठन में फिर से जान फूंकने की जिम्मेदारी से बच रहे हैं। 5 माह पहले तीन राज्यों में मिली सफलता का पूरा श्रेय राहुल गांधी को दिया गया। राहुल ने भी कहा कि जब हम विधानसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी को हरा सकते हैं तो लोकसभा चुनाव में भी हराने की स्थिति में है। पांचवें चरण के मतदान के बाद राहुल ने कहा कि भाजपा हार रही है इसलिए नरेन्द्र मोदी का चेहरा उतर गया है। जब चुनाव के दौरान राहुल में इतना आत्मविश्वास था तो अब मायूस और हताश क्यों हो रहे हैं ? चुनाव में हार-जीत तो चलती रहती है। नाराज होकर बैठने के बजाए राहुल को यह पता लगाना चाहिए कि मात्र 5 माह में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की इतनी बुरी हार क्यों हुई ? राहुल गांधी ने तो कहा था कि 72 हजार का फार्मूला कांग्रेस का बेड़ा पार करेगा। यदि राहुल गांधी ने तत्काल अपने रूख में बदलाव नहीं किया तो कांगे्रस को भारी नुकसान होगा।
गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस का वजूद नहीं:
राहुल गांधी को यह बात अच्छी तरह समझनी चाहिए कि गांधी परिवार के बगैर कांग्रेस का कोई वजूद नहीं है। कांग्रेस का आज जो राष्ट्रीय स्वरूप है उसके पीछे गांधी परिवार ही है। यदि कांग्रेस से गांधी परिवार अलग हो जाता है तो कांग्रेस कई नेताओं में बंट जाएगी। पहले भी शरद पंवार, ममता बनर्जी, जगमोहन रेड्डी आदि ने कांग्रेस से अलग होकर क्षेत्रीय दल बनाए है। जब राहुल गांधी भाजपा और नरेन्द्र मोदी की विचारधारा से लड़ने की बात कह रहे हैं तो फिर जंग का मैदान क्यों छोड़ रहे हैं ? अध्यक्ष पद छोड़कर तो राहुल गांधी स्वयं कांग्रेस को कमजोर कर रहे हैं। राहुल गांधी खुद कह रहे हैं कि लोकसभा चुनाव में बेटों को टिकट दिलवाने के लिए बड़े नेताओं ने इस्तीफे की धमकी तक दी। जब राहुल के अध्यक्ष पद पर रहते हुए कांग्रेस के घाघ नेता धमका रहे हैं तब राहुल यह कल्पना कैसे कर सकते हैं कि किसी अन्य को अध्यक्ष बनवा कर वे संगठन को मजबूत कर लेंगे ? राहुल का हकीकत समझनी चाहिए और जिद्द को छोड़कर फिर से अध्यक्ष का कार्य करना चाहिए।
एस.पी.मित्तल) (28-05-19)
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