परिसीमन से जम्मू कश्मीर में खत्म हो जाएगा अलगाववाद।
इसलिए है महबूबा को एतराज। कश्मीर घाटी भी अब मुख्यधारा से जुड़ेगी।
जम्मू कश्मीर की आबादी भी बढ़ी है। यहां उल्लेखनीय है कि 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों के लिए रखी गई है। यहां से बड़ी संख्या में शरणार्थी आए हुए हैं। परिसीमन में ऐसे शरणार्थी भी शामिल होंगे। यानि संविधान में संशोधन किए बगैर ही विधानसभा में 24 सीटों तक का इजाफा किया जा सकता है। यदि परिसीमन के बाद जम्मू कश्मीर और लद्दाख के क्षेत्र कश्मीर से बड़े हो जाएंगे। ऐसे में जम्मू और लद्दाख का कोई विधायक भी जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री बन सकता है। लेकिन यही वजह है कि महबूबा को परिसीमन पर एतराज हो रहा है। अभी महबूबा ने विरोध किया है, हो सकता है कि कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस भी विरोध करें, लेकिन अब जम्मू कश्मीर के लोगों की समझ में आ गया है कि अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों ने अपने राजनीतिक स्वार्थों के खातिर बेवकूफ बनाया है। जब जम्मू अथवा लद्दाख का कोई विधायक मुख्यमंत्री बनेगा तो अनुच्छेद 370 और 135ए के हटने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। इसके साथ ही कश्मीर घाटी देश की मुख्यधारा से जुड़ जाएगी। कहा जा सकता है कि कश्मीर में अलगाववाद को खत्म करनेके लिए लोकतांत्रिक और संवैधानिक तरीके से प्रयास शुरू हो गए हैं। जिन नेताओं ने अब तक कश्मीर के मुद्दे पर पूरे देश को डरा कर रखा हुआ था, ऐसे नेताओं के चेहरे पर से नकाब उतर रही है। अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों का काल समाप्त हो रहा है। अब दादा से लेकर पोता तक मुख्यमंत्री नहीं बनेगा, बल्कि जनता जिसे चाहेगी वह जम्मू कश्मीर का मुख्यमंत्री होगा।
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