भाजपा में न खाता, न बही, संगठन कहे जो सही।

भाजपा में न खाता, न बही, संगठन कहे जो सही। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के संदर्भ में भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया की यह टिप्पणी बहुत मायने रखती है। यानि अब भाजपा की राजनीति में राजे अध्याय खत्म। वैसे भी कांग्रेस की मेहरबानी से सरकारी बंगले में बैठीं हैं। 

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10 अक्टूबर को राजस्थान प्रदेश भाजपा के नवनियुक्त अध्यक्ष सतीश पूनिया ने जयपुर में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की। हालांकि यह कॉन्फ्रेंस प्रदेश में फसलों की खराबी के संबंध में थी, लेकिन पत्रकारों ने राजनीतिक सवाल भी पूछे। एक पत्रकार ने जानना चाहा कि अब पूर्व सीएम वसुंधरा राजे की क्या राजनीतिक भूमिका रहेगी? क्या अब भाजपा युवाओं को कमान दी जाएगी? यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पूनिया के पद ग्रहण में 8 अक्टूबर को भी राजे शामिल नहीं हुई थीं तथा पूनिया की नियुक्ति राष्ट्रीय नेतृत्व ने अपने स्तर पर की। गत लोकसभा चुनाव में भी वसुंधरा राजे की प्रभावी भूमिका नहीं थी। राजे के बगैर ही भाजपा ने प्रदेश की सभी 24 सीटों पर जीत हासिल की। सतीश पूनिया भी मंजे हुए राजनेता हैं, इसलिए उन्होंने जो जवाब दिया, उसका अर्थ अब निकाला जा रहा है। पूनिया ने कहा- भाजपा में न खाता, न बही, संगठन कहे जो सही। पूनिया ने कहा कि संगठन पहले वसुंधरा राजे, अरुण चतुर्वेदी और अब मुझे प्रदेशाध्यक्ष बनाया है। कौन प्रदेशाध्यक्ष होगा, यह संगठन तय करता है। कार्यकर्ता की भूमिका भी संगठन ही निर्धारित करता है। पूनिया की इस टिप्पणी से प्रतीत होता है कि भाजपा की राजनीति में वसुंधरा राजे का अध्याय समाप्त हो गया है। 10 माह पहले विधानसभा चुनाव में परिणाम से पहले जिन वसुंधरा राजे के बगैर भाजपा में पत्ता भी नहीं हिलता था, उन्हीं वसुंधरा राजे के बगैर 8 अक्टूबर को सतीश पूनिया ने प्रदेशाध्यक्ष का पद संभाल लिया। राजे ने पूनिया को भेजे पत्र में कहा कि वे धौलपुर में राज निवास में दशहरे के धार्मिक कार्यक्रमों में व्यस्त हैं, इसलिए नहीं आ पा रही हंू। जबकि विधानसभा चुनाव के परिणाम से पहले वसुंधरा राजे के बगैर पद भार संभालने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था। अब संबठन ने ही तय कर लिया है कि राजे के बगैर ही आगे बढ़ा जाएगा। वसुंधरा के आने या नहीं आने से कोई फर्क पडऩे वाला नहीं है। सब जानते हैं कि विधनसभा चुनाव में मिली हार के बाद वसुंधरा राजे को भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया था, लेकिन दस माह में राजे ने उपाध्यक्ष के तौर भाजपा का कोई कार्यक्रम नहीं किया। 8 अक्टूबर को पूनिया को जो बधाई संदेश भेजा, उस पत्र में भी भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का उल्लेख नहीं है। यानि वसुंधरा राजे स्वयं को भाजपा संगठन से ऊपर समझती हैं। जब अपने लेटर हैड पर राजे राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का भी उल्लेख नहीं कर रही हैं तो फिर अमितशाह के नेतृत्व वाले भाजपा संगठन में राजे को अपनी हैसियत का अंदाजा लगा लेना चाहिए। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व भी जानता है कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए वसुंधरा राजे प्रदेशाध्यक्ष के पद को लेकर कितनी जिद की थी।
कांग्रेस की मेहरबानी पर निर्भर:
वैसे भी इन दिनों वसुंधरा राजे कांग्रेस की मेहरबानी पर निर्भर हैं। राजे को पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से जयपुर के सिविल लाइन में 13 नम्बर का जो बंगला अलॉट हुआ है उसे खाली करने के आदेश हाईकोर्ट ने दिए हैं। कोर्ट का कहना है कि पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से कोई सरकारी सुविधा नहीं ली जा सकती है। लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी राजे ने सरकारी बंगला खाली नहीं किया है, क्योंकि कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अब वसुंधरा राजे पर मेहरबान हैं। हाईकोर्ट के आदेश के बाद सीएम गहलोत ने कहा कि वसुंधरा राजे भाजपा की वरिष्ठ विधायक हैं, इस नाते 13 नम्बर बंगले में उनकी मौजूदगी को बनाए रखा जाएगा। यानि हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी कांग्रेस सरकार राजे से बंगला खाली नहीं करवाएगी। यह वही बंगला है जिस पर मुख्यमंत्री रहते हुए पूरे पांच वर्ष राजे ने अवैध कब्जा बनाए रखा। जयपुर में सिविल लाइन में सीएम के लिए बंगला संख्या 8 निर्धारित है। लेकिन राजे इस बंगले को कभी अपना निवास नहीं माना। इस बंगले का उपयोग सीएम दफ्तर के तौर पर ही किया। सीएम के पद पर रहते हुए बंगला संख्या 13 को ऐसे तैयार करवाया, जैसे वसुंधरा राजे हमेशा इसी बंगले में रहेंगी। चूंकि राजे सीएम गहलोत की मेहरबानी से सरकारी बंगले में रह रही हैं, इसलिए हाल में राजे ने सीएम के पुत्र वैभव गहलोत को राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष बनवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राजे के समर्थक भाजपा नेता अमीन पठान ने वैभव गहलोत का खुला समर्थन किया। अब अमीन पठान वैभव गहलोत की कार्यकारिणी में उपाध्यक्ष हैं। राजे जब सीएम थीं, तब पठान को राजस्थान हज कमेटी का अध्यक्ष बनाया और अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह कमेटी का अध्यक्ष भी बनवा दिया। पठान आज भी दरगाह कमेटी के अध्यक्ष हैं। यानि पठान के दोनों हाथ में लड्डू हैं। भाजपा नेता होने के नाते दरगाह कमेटी के अध्यक्ष है और उधर कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री के बेटे की अध्यक्षता वाले क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी हैं। भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व दोहरा चरित्र दिखाने वाले प्रदेश के नेताओं पर भी नजर बनाए हुए हैं। बदले हुए हालातों में पठान के खिलाफ दरगाह कमेटी के सदस्यों में बगावत के आसार हैं।
एस.पी.मित्तल) (11-10-19)
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