पार्षद चुने बगैर ही निकाय प्रमुख का चुनाव लडऩे के गहलोत सरकार के फैसले पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट को अपनी राय प्रकट करनी चाहिए।

पार्षद चुने बगैर ही निकाय प्रमुख का चुनाव लडऩे के गहलोत सरकार के फैसले पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट को अपनी राय प्रकट करनी चाहिए। हालांकि पायलट समर्थक दो मंत्री विरोध जता चुके हैं। जयपुर, जोधपुर और कोटा में अब दो-दो नगर निगम। धारीवाल ने कहा अब नहीं बदलेगी व्यवस्था।

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राजस्थान में अशोक गहलोत के नेतृत्व में चल रही कांग्रेस की सरकार हालातों को देख कर निर्णय ले रही हैं। अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद शहरी क्षेत्र में भाजपा के पक्ष में जो माहौल बना है उसका असर कम करने के लिए पहले स्थानीय निकायों के प्रमुखों का चुनाव पार्षदों के द्वारा करवाने और बगैर पार्षद चुने भी निकाय प्रमुख का चुनाव लडऩे का फैसला किया। प्रदेश में जयपुर नगर निगम सहित 52 निकायों के चुनाव नवम्बर में होने हैं, जबकि निकायों के चुनाव अगले वर्ष अगस्त में होंगे। पार्षद ही प्रमुख का चुनाव करेंगे, यह फैसला कांग्रेस सरकार ने स्वयं का फैसला ही पलटा है। भाजपा के शासन में निर्वाचित पार्षद ही प्रमुख का चुनाव करते थे। लेकिन कांग्रेस सरकार ने भाजपा का फैसला पलटते हुए निकाय प्रमुख का चुनाव सीधे मतदाता से करवाने का निर्णय लिया था। लेकिन अब तो निकाय प्रमुख बनने के लिए पार्षद की अनिर्वायता भी समाप्त कर दी गई। गहलोत सरकार के इस फैसले का विरोध परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा ने किया है। इन दोनों मंत्रियों ने कहा कि यह फैसला फील्ड में काम करने वाले और पार्षद के चुनाव जीतने वाले कार्यकर्ता के साथ अन्याय हैं। सब जानते हैं कि ये दोनों मंत्री प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट गुट के हैं। असल में इन दिनों पायलट अपनी सरकार के साथ छापामार युद्ध लड़ रहे हैं। यही वजह है कि एक माह पहले जिन 6 बसपा विधायकों को कांग्रेस में शामिल करवाने की घोषणा करवाई गई उन्हें आज तक भी विधिवत सदस्यता नहीं दिलवाई गई है। हालांकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का यह कदम कांग्रेस सरकार को मजबूत करने वाला है, लेकिन बसपा विधायकों के मामले में पायलट की कोई राजनीतिक भूमिका नहीं रही। इसीलिए अब बसपा विधायकों की कांग्रेस संगठन में कोई सक्रियता नहीं है। सचिन पायलट प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष हैं। माना तो यही जाता है कि संगठन की नीतियों पर ही सरकार चलती है। इसलिए अब पायलट को प्रदेश की जनता को यह बताना चाहिए कि सरकार का फैसला क्या संगठन की सहमति से हुआ है? अपने समर्थक मंत्रियों से विरोध करवाकर पायलट अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि पार्षद का चुनाव जीते बगैर ही निकाय प्रमुख बनाने का निर्णय अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है। प्रदेश में जिस पार्टी की सरकार है उसके अध्यक्ष की राय तो प्रदेश की जनता पता होनी चाहिए। पायलट मौजूदा समय में सरकार में डिप्टी सीएम भी हैं। यानि पायलट सरकार के अंग भी हैं। ऐसे में उनकी राय बहुत मायने रखती है। सीएम अशोक गहलोत निकाय चुनाव जीतने के लिए चाहे जितने जतन कर लें, लेकिन यदि पायलट के नेतृत्व वाले कांग्रेस संगठन का सहयोग नहीं मिला तो जीत मुश्किल होगी।
तीन शहरों में दो-दो मेयर:
स्थानीय निकायों के प्रमुखों के चुनाव को लेकर राज्य सरकार ने जो नई व्यवस्था लागू की है उसके संदर्भ में 18 अक्टूबर को प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस कॉन्फ्रेंस में धारीवाल ने कहा कि जयपुर, कोटा और जोधपुर में अब दो दो नगर निगम होंगे। यानि इन तीनों शहरों के दो दो मेयर बनेंगे। धारीवाल ने कहा कि इन तीनों शहरों की आबादी दस लाख से अधिक है इसलिए यह नई व्यवस्था बनाई गई है। धारीवाल ने स्पष्ट कहा कि कोई मंत्री विरोध करे या विधायक अब यही व्यवस्था प्रदेश में लागू रहेगी। उन्होंने कहा कि इसके लिए किसी विधेयक में संशोधन करने की जरुरत नहीं है क्योंकि यह नियमों में बदलाव किया गया है। धारीवाल के रुख से स्पष्ट था कि परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास और खाद्य आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा ने जो विरोध किया है, उसे खारिज कर दिया गया है।
एस.पी.मित्तल) (18-10-19)
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