तो क्या सीएम अशोक गहलोत निकाय चुनाव में हाईब्रिड फैसले से पीछे हट जाएंगे?

तो क्या सीएम अशोक गहलोत निकाय चुनाव में हाईब्रिड फैसले से पीछे हट जाएंगे? प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने भी प्रतिष्ठा का सवाल बनाया। गहलोत को अब आचार संहिता लगने का इंतजार। 

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20 अक्टूबर को ब्लॉग संख्या 6135 में मैंने लिखा था कि राजस्थान के निकाय चुनाव में लागू हाईब्रिड फैसले का विवाद कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी तक पहुंच गया है। अब 23 अक्टूबर को खबर आई है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश के प्रभारी अविनाश पांडे ने प्रदेश के नगरीय विकास मंत्री शांति धारीवाल को निर्देश दिए हैं कि वे हाईब्रिड फैसले पर सीएम गहलोत और प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट से वार्ता करें। पांडे ने स्पष्ट किया है कि यह निर्देश में कांग्रेस के उच्च नेतृत्व से सलाह के बाद ही दे रहा हंू। पांडे को यह निर्देश इसलिए देने पड़े कि सचिन पायलट ने निकाय चुनाव में हाईब्रिड फैसले का विरोध किया। पायलट का कहना रहा कि पार्षद चुने बगैर ही निकाय प्रमुख चुनने का फैसला जन विरोधी है। कांग्रेस के कार्यकर्ता भी इस फैसले से नाराज हैं। पायलट के खुले विरोध के बाद ही यह विवाद सोनिया गांधी तक पहुंचा था। सवाल उठता है कि क्या अब सीएम अशोक गहलोत अपने हाईब्रिड फैसले से पीछे हट जाएंगे? अविनाश पांडे ने भले ही नगरीय विकास मंत्री को निर्देश दिए हों, लेकिन सब जानते हैं कि यह फैसला सीएम गहलोत की सहमति से हुआ है। धारीवाल ने तो नगरीय विकास मंत्री की हैसियत से सिर्फ घोषणा की है। सीएम क्या निर्णय लेंगे, यह अगले दो-तीन दिन में पता चल जाएगा, लेकिन बदली हुई परिस्थितियों में पायलट ने भी इस मुद्दे को अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है। इसलिए पायलट अपने विरोध के दायरे को लगातार बढ़ाते जा रहे हैं। पहली बार 19 अक्टूबर की झुंझुनूं में पायलट ने कहा था कि सरकार का यह फैसल गलत हैं। लेकिन 22 अक्टूबर को भरतपुर में पायलट ने फैसले को जन विरोधी बताते हुए सरकार से पुनर्विचार की मांग की। असल में पायलट को ज्यादा नाराजगी इस बात को लेकर भी है कि हार्ईब्रिड फैसला करने से पूर्व सरकार ने किसी भी स्तर पर उनसे विचार विमर्श नहीं किया।  उल्टे जब उनके दो समर्थक मंत्रियों ने विरोध किया तो नगरीय विकास मंत्री धारीवाल ने साफ कहा कि अब चाहे मंत्री विरोध करें या और कोई, सरकार अपने फैसले को नहीं बदलेगी। अब यह भी देखना होगा कि जो धारीवाल पायलट के समर्थक मंत्रियों को डांट रहे थे, वो क्या इसी मुद्दे पर पायलट से वार्ता करने जाएंगे? सवाल यह भी है कि क्या पायलट भी धारीवाल से वार्ता करेंगे? जबकि पायलट के समर्थकों को लगता है कि अशोक गहलोत सीएम की कुर्सी पर पायलट की बदौलत बैठे हैं। जानकारों की माने तो अब यह विवाद गहलोत और पायलट के बीच वार्ता होने पर ही निपटेगा। यदि  दोनों में वार्ता नहीं होती है तो फिर आने वाले दिनों में पायलट की स्थिति कमजोर होगी, क्योंकि कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अशोक गहलोत को ही सीएम बनाए रखने का निश्चिय कर लिया है। पायलट को मौजूदा हालातों में ही तालमेल बैठाना होगा।
गहलोत को आचार संहिता लगने का इंतजार:
सरकार के हाईब्रिड फैसले का प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष सचिन पायलट ने जो विरोध किया है, उस पर सीएम अशोक गहलोत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन 23 अक्टूबर को जयपुर में मीडिया से संवाद करते हुए गहलोत ने कहा कि उन्हें चुनाव आचार संहिता लागू होने का इंतजार है। यानि गहलोत ने इस बात के संकेत दिए हैं कि अब फार्मूले में कोई बदलाव नहीं होगा।
एस.पी.मित्तल) (23-10-19)
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